विकास महामंडल का ‘विकास’ ही हो गया ‘ठप’
डिजिटल डेस्क, वर्धा। पिछड़ावर्ग के लाथार्थियों को विभिन्न योजनाओं का लाभ दिया जा सके, इस उद्देश्य से शासन द्वारा विभिन्न महामंडल की स्थापना की गई है। जिसके तहत जिले के सामाजिक न्याय भवन की ईमारत में पांच विभागों के कार्यालय कार्यरत हैं। परंतु शासन की अनदेखी के चलते विकास महामंडल का “विकास” ही पूरी तरह से ठप हो गया है। सभी विकास महामंडल का कामकाज पूरी तरह से प्रभारी के भरोसे चल रहा है। उसपर भी प्रभारी प्रबंधक पर एक या दो नहीं बल्कि तीन से चार विभाग की जिम्मेदारी है। ऐसे में कुछ कार्यालयों में ठेका कर्मी जैसे-तैसे काम चला रहे है, परंतु कुछ कार्यालयों में हालात काफी गंभीर है।
ओबीसी वित्त व विकास महामंडल : महाराष्ट्र राज्य अन्य पिछड़ावर्गीय वित्त, विकास महामंडल में जिला प्रबंधक के तौर पर वी. एस. खोड़े कार्यरत हैं। परंतु उन पर भी गोदिंया व भंडारा का अतिरिक्त प्रभार है। तीनों जिलों को संभालते हुए वर्धा के कार्यालय में सप्ताह में दो या तीन दिन मौजूद रहती है। वहीं अकाउंटंट पर भी नागपुर, गोंदिया का चार्ज है। दूसरी ओर वसूली निरीक्षक का पद रिक्त है। ऐसे में इस कार्यालय का पूरा कामकाज ठेका कर्मचारी रितेश अंबुलकर पर हैं। कर्मियों के अभाव में पूरा कामकाज प्रभावित होकर एक वर्ष में मात्र 14 प्रकरण इस कार्यालय से मंजूर हुए हंै। महात्मा फुले पिछड़ावर्गीय विकास महामंडल : इस कार्यालय में तीन पद मंजूर हंै। जिसमें प्रबंधक के तौर पर एम पी नेटे कार्यरत हंै। इस जिला प्रबंधक पर यहां के दिव्यांग वित्त व विकास महामंडल का अतिरिक्त प्रभार है। वहीं सहायक लेखाधिकारी पर वर्धा, नागपुर का प्रभार है। वे तीन दिन कार्यालय में रहते हैं। वहीं अन्य चार ठेका कर्मचारी होकर उनके भरोसे कामकाज चल रहा है। परिणामस्वरूप गत एक वर्ष में यहां मात्र 60 प्रकरण मंजूर हुए हैं।
साहित्यरत्न अन्नाभाऊ साठे आर्थिक विकास महामंडल : इस कार्यालय में भी तीन पद मंजूर हंै। प्रबंधक के तौर पर मिलिंद वानखेड़े कार्यरत हैं। परंतु उनपर वर्धा, चंद्रपुर, गड़चिरोली का प्रभार है। ऐसे में वे भी दो दिन ही वर्धा कार्यालय को दे पाते हैं। लिपिक भी प्रभारी होकर उन पर नागपुर व वर्धा की जिम्मेदारी है। एक सिपाही कार्यरत है व एक ठेका कर्मचारी है। मनुष्यबल के अभाव में वर्षभर में मात्र 40 लोगों को कर्ज बांटा गया है। वसंतराव नाईक विकास महामंडल : इस विभाग की बात करें तो यहा किशोर वाणी प्रबंधक के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। परंतु उन पर मूल रूप से अमरावती में प्रादेशिक व्यवस्थापक के पद पर कार्यरत हंै। लेकिन उन पर अमरावती, यवतमाल, वर्धा व भंडारा जिले का भी प्रभार है। जिससे सप्ताह में एक ही दिन वे वर्धा कार्यालय में मौजूद रहते हैं। सिपाही, लिपिक का पद तो रिक्त ही है। ठेका कर्मचारी है जो उन्हंे किसी तरह से सहायता करते है। गत डेढ़ वर्ष से इसी तरह की अवस्था होकर भी अबतक प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है।
Created On :   29 April 2023 3:50 PM IST