भानुप्रतापपुरा को कांग्रेस से छीनने भाजपा ने जो दांव चला वही उलटा पड़ा, आदिवासी समाज से तो नुकसान हुआ ही ओबीसी वोट भी हाथ से निकल गया

भानुप्रतापपुरा को कांग्रेस से छीनने भाजपा ने जो दांव चला वही उलटा पड़ा, आदिवासी समाज से तो नुकसान हुआ ही ओबीसी वोट भी हाथ से निकल गया
छत्तीसगढ़ सरकार भानुप्रतापपुरा को कांग्रेस से छीनने भाजपा ने जो दांव चला वही उलटा पड़ा, आदिवासी समाज से तो नुकसान हुआ ही ओबीसी वोट भी हाथ से निकल गया

डिजिटल डेस्क, रायपुर। 2023 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे भानुप्रतापपुर उपचुनाव में जिस तरह से भाजपा को शिकस्त मिली, उसने इसके रणनीतिकारों को नये सिरे से सोचने मजबूर कर दिया है। दरअसल, भानुप्रतापुर सीट कांग्रेस से छीनने भाजपा ने दो तरफा रणनीति बनाई। भाजपा को अपने ओबीसी वोट बैंक पर पूरा भरोसा था, इसी भरोसे उसने ब्रह्मानंद नेताम को टिकट दी। दूसरे उसने सर्वआदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर कोर्राम को बैक सपोर्ट दिया।

भाजपा के रणनीतिकारों का मानना था कि कोर्राम के कारण आदिवासी समाज के 90 हजार वोट एक तरफा गिर जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह वोट बंट गए। जिसका कांग्रेस को ज्यादा और भाजपा को बहुत कम फायदा हुआ। कोर्राम को केवल 23 हजार वोट मिले। भाजपा को जोर का झटका 70 हजार ओबीसी वोटर्स ने दिया जो कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया और भाजपा के ब्रह्मानंद 44 हजार मत ही प्राप्त कर सके। कांग्रेस की सावित्री मंडावी को इस सबका पूरा फायदा मिला और वे 65 हजार वोट प्राप्त कर, 21 हजार मतों के अंतर से अपने पति मनोज मंडावी की सीट बचा ले गईं।

जीत- हार के यह कारण भी रहे

उपचुनाव परिणाम को विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी की असामयिक मौत से पैदा हुई सहानुभूति, उनके द्वारा अपने निर्वाचन क्षेत्र में साढ़े तीन साल के दरम्यान कराए गए काम और भाजपा के अंदरूनी खींचतान ने भी प्रभावित किया। चुनाव दरम्यान भाजपा प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम पर झारखंड में दर्ज प्रकरण को उठाने का भी असर दिखा।

Created On :   9 Dec 2022 2:37 PM GMT

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