सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर साईंबाबा और अन्य पांच की रिहाई पर रोक लगाई

Supreme Court stays the release of Professor Saibaba and five others
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर साईंबाबा और अन्य पांच की रिहाई पर रोक लगाई
अगली सुनवाई 8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर साईंबाबा और अन्य पांच की रिहाई पर रोक लगाई

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली । नक्सलियों से कथित संबंध के आरोप से बरी किए गए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साईंबाबा और अन्य पांच को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली। शीर्ष अदालत ने मामले में शनिवार को विशेष सुनवाई कर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के प्रोफेसर साईबाबा और अन्य पांच को बरी करने के आदेश पर रोक लगा दी है। लिहाजा छह आरोपियों को अगले आदेश तक जेल में ही रहना होगा। शीर्ष अदालत ने मामले को 8 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने सजायाफ्ता साईबाबा और अन्य पांच को बरी करने के आदेश पर रोक लगाने की महाराष्ट्र सरकार की अपील पर लगभग 3 घंटे तक सुनवाई की। इस दौरान पीठ ने कहा कि बरी किए गए आरोपियों के अपराध बहुत गंभीर प्रकृति के हैं और इन्हें सबूतों की विस्तृत समीक्षा के बाद दोषी ठहराया गया था। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने मामले के मेरिट पर विचार नहीं किया है। गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 45 के तहत केंद्र सरकार की मंजूरी के अभाव में बरी कर दिया। लिहाजा हाईकोर्ट के आक्षेपित फैसले को निलंबित करने की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि अभियुक्त द्वारा स्वास्थ्य आधार पर जमानत के लिए की गई अर्जी को हाईकोर्ट पहले खारिज कर चुका है, लेकिन अभियुक्त जमानत की अर्जी करने के लिए स्वतंत्र है। पीठ ने साईबाबा की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें मेडिकल आधार पर उन्हें जेल में रखने के बजाय घर में नजरबंद रखे जाने की गुहार लगाई थी। मामले में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आरोपी की इस मांग का जमकर विरोध करते हुए कहा कि हाल में अर्बन नक्सलियों द्वारा नजरबंद करने की प्रवृत्ति देखी गई है, लेकिन उनके द्वारा घर के भीतर से ही (फोन द्वारा भी) सब कुछ किया जा सकता है।

लिहाजा हाउस अरेस्ट कभी भी एक विकल्प नहीं हो सकता। साथ ही कहा कि केंद्र सरकार द्वारा मंजूरी नहीं दिए जाने के आधार पर आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता है। वहीं साईबाबा की ओर से पेश वकील आर बसंत ने कहा कि उन्होंने सम्मानजनक जीवन व्यतीत किया। साईबाबा 90 फीसदी तक विकलांग हैं और उन्हें शौचालय जाने के लिए लोगों की आवश्यकता पड़ती है। उन्हें कई बीमारियां है, जो न्यायिक रूप से स्वीकार्य हैं। वे अपनी व्हील चेयर तक सीमित हैं और उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। पीठ से अनुरोध है कि हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित नहीं करें। उनकी चिकित्सा स्थिति को देखते हुए उन्हें जेल में रखने के बजाय घर में नजरबंद रखा जाए। आर बसंत ने कहा कि हमने मामले के गुण-दोष के आधार पर पूरा तर्क दिया है। हाईकोर्ट केवल एक पहलू (मंजूरी के) पर विचार करता है। कृपया मेरी दुर्दशा देखें, हमारी कैद लंबी हो जाएगी।
    

Created On :   15 Oct 2022 7:45 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story