भगवत गीता पर आचार्य सुधांशु महाराज का उद्बोधन
![Speech of Acharya Sudhanshu Maharaj on Bhagvat Gita Speech of Acharya Sudhanshu Maharaj on Bhagvat Gita](https://d35y6w71vgvcg1.cloudfront.net/media/2023/01/speech-of-acharya-sudhanshu-maharaj-on-bhagvat-gita_730X365.jpg)
डिजिटल डेस्क, नागपुर । विश्व जागृति मिशन के तत्वावधान में आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज का शीतकालीन सत्संग समारोह रेशिमबाग के कविवर्य सुरेश भट्ट सभागृह में जारी है। आचार्य श्री ने सत्संग कार्यक्रम में आज श्रीमद भगवत गीता के ग्यारहवें अध्याय विराट रूप दर्शन की विवेचना करते हुए कहा कि श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन गुरु-शिष्य हैं। अर्जुन अपने गुरु श्री कृष्ण से प्रश्न पूछते हैं और श्रीकृष्ण अपने शिष्य अर्जुन की जिज्ञासाओं का समाधान करते हैं।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस संसार में कर्म करना जरूरी है। जब तक सांस चलती है तब तक जीवन में कर्म योद्धा बनकर जीना पड़ेगा। डरपोक, भगोड़ा और काम चोरों के लिए इस वास्तविक संसार में कोई जगह नहीं है। योद्धा व्यक्ति जीवन भर अपने साहस के साथ-साथ अच्छे-अच्छे कार्य करता है और वीरों की भांति एक बार मरता है। परंतु जो कायर है, डरपोक है, वह रोज माता है।
इसलिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि जियो तो कर्मठ का जीवन जियो. कर्म योद्धा ही धर्म की स्थापना करते हैं. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा कि तुम कर्म करो और कर्म के द्वारा धर्म की स्थापना करो. श्रीमद्भगवद्गीता हमें जीवन भर कर्म योद्धा बनकर धर्म की स्थापना करने का उपदेश देती है। जो सज्जन हैं उन्हें अपने जीवन में और संसार में धर्म की स्थापना करना है. पहले अपने स्वयं के जीवन में धर्म की स्थापना करो फिर परिवार में, और फिर समाज में. हमारी सहनशीलता, लापरवाही और आलस्य हमें धर्म की स्थापना नहीं करने देती है. हम रोज सोचते हैं कि इस दुनिया में या हमारे पड़ोस में कुछ भी हो हमें क्या करना है. हमारे ऊपर आएगी जब देखेंगे. सज्जनों की यह निष्क्रियता बुराई को बढ़ाती है इस दुनिया में जो भी बुराइयां पनप रही हैं वह सज्जनों की निष्क्रियता के कारण, सज्जनों के धर्मोचित कर्म नहीं करने के कारण हो रही है. सज्जन व्यक्ति जिस दिन धर्म की स्थापना के लिए एकत्र हो जाते हैं तो बुराई को समाप्त होना पड़ता है. इसलिए सज्जनों को निष्क्रियता त्याग कर, आलस्य त्याग कर धर्म सम्मत कर्म योग कर्म युद्ध करना चाहिए. हर व्यक्ति अपने जीवन में योद्धा है और अपने गुरु से प्रश्न पूछने चाहिए जो भी जिज्ञासा आए हैं, उन्हें शांत करना चाहिए परंतु गुरु से लोग निरर्थक प्रश्न करते हैं. अपनी समस्याओं के बारे में प्रश्न करते हैं जो आप स्वयं भी समन कर सकते हैं गुरु से ऐसे प्रश्न करो कि उनके उत्तर से आपका जीवन बदल जाए. गुरु के आदेश को आत्मसात करो, अपने जीवन में उतारो, अपनी कमजोरियों को दूर करो, तभी धर्म की स्थापना हो सकती है. भगवान से रोज प्रार्थना करो कि हे भगवान आपने मुझे जो भी दिया है मैं उसके लिए कृतज्ञ हूं और निरंतर अंतिम सांस तक कर्म करते रहो।
Created On :   7 Jan 2023 3:38 PM IST