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शिरडी में रोज चढ़ते हैं ढाई हजार किलो फूल, अब फेंकते नहीं सुखाकर बनाई जा रही अगरबत्ती
डिजिटल डेस्क, नासिक। शिरडी के साई मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूल अब कूड़े में नहीं फेंके जाते। फिर से मंदिर के काम आ जाते हैं। हालांकि इस बार उनका रंग-रूप बदल जाता है। वे अब फूल से खुशबूदार अगरबत्ती में बदल दिए जाते हैं। साई मंदिर में रोज करीब ढाई हजार किलो फूल चढ़ाए जाते हैं। इन फूलों से अगरबत्ती बनाने का प्रोजेक्ट 11 महीने पहले ही शुरू किया गया है। तब से अब तक 45 लाख रुपए की अगरबत्ती बेची जा चुकी है। इसकी 10% रकम मंदिर ट्रस्ट को दी जाती है। एक ओर प्रोजेक्ट से शिरडी ट्रस्ट हर महीने लाखों कमा रहा है, वहीं शिरडी के करीबी गांवों की भी कमाई बढ़ी है।
वहां से भी रोज बड़ी मात्रा में फूल शिरडी पहुंचाए जाने लगे हैं। ये फूल ज्यादातर गेंदा और गुलाब के होते हैं। इस प्रोजेक्ट में सिर्फ महिलाएं काम कर रही हैं। करीब 400 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। प्रोजेक्ट में शामिल जनसेवा फाउंडेशन की फाउंडर शालिनीताई विखे पाटिल ने बताया कि ‘फूलों से अगरबत्ती बनाना सीखने के लिए हमारी टीम इजरायल गई थी। वहां हमने पूरा प्रोसेस देखा। हालांकि हमारी चिंता ये थी कि खराब फूलों का क्या इस्तेमाल हो। इसके बाद अगरबत्ती बनाने का आइडिया आया।
40 हजार अगरबत्ती बनती हैं हर रोज
साई मंदिर से मिले फूलों को जनसेवा फाउंडेशन लोणी गांव पहुंचाता है। यहां फूलों को रंगों के अनुसार छांटा जाता है। फिर तीन दिन तक सोलर ड्रायर में इन्हें सुखाया जाता है। सूखे फूलों की पत्तियों को पीसकर पावडर बनाते हैं। इसके बाद पेस्ट बनाकर अगरबत्ती बनाई जाती है। फिर इन्हें गुलाब के प्राकृतिक रंग में भिगोकर एक बार फिर सोलर ड्रायर में सुखाते हैं। सूखने के बाद 30 ग्राम के पैक में पैकिंग की जाती है। यहां हर रोज करीब 40 हजार अगरबत्ती बनाई जाती हैं।
प्रोजेक्ट संचालिका धनश्री विखे पाटील के मुताबिक प्रोजेक्ट में काम करने वाली महिलाएं दिनभर फूल और तुलसी के पत्तों को छांटते हैं। इससे उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। वहीं, बाजार में बिकने वाली अन्य अगरबत्तियों में कोयले के पावडर का इस्तेमाल होता है, जिससे कैंसर जैसी बीमारी खतरा का होता है।
सीईअाे रूबल अग्रवाल के मुताबिक रोज लाखों श्रद्धालु शिरडी आते हैं। यहां वे बड़ी मात्रा में फूल और मालाएं चढ़ाते हैं। दुविधा ये थी कि इन फूलों का क्या किया जाए। फिर इन फूलों से अगरबत्ती बनाने का निर्णय लिया। अभी तक इन फूलों को नष्ट करने में रु. लगते थे, लेकिन अब इन्हीं से कमाई हो रही है।
Created On :   8 Oct 2018 6:43 PM IST