बस्तियों के बीच श्मशान घाट, फैल रही संक्रामक बीमारियां

Nagpur : Graveyard near slum area spreading infectious diseases
बस्तियों के बीच श्मशान घाट, फैल रही संक्रामक बीमारियां
बस्तियों के बीच श्मशान घाट, फैल रही संक्रामक बीमारियां

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  पहले दहनघाट गांव और रहवासी क्षेत्र के बाहर होते थे। इसके तमाम कारणों से एक अहम संक्रामक बीमारियों से बचना भी है। दहनघाटों से निकलने वाले धुएं से लोग दूर होते थे। जनसंख्या बढ़ने और विकास के कारण दहनघाट अब बस्तियों के बीच आ चुके हैं। अब इनसे निकलने वाला धुएं के सीधे संपर्क में परिसर के लोग होते हैं। कई तरह की बीमारियों की आशंका को देखते हुए क्रेमेटर मशीन (शव दाहिनी) की सुविधा उपलब्ध कराई गई, लेकिन इनका उपयोग केवल 20 प्रतिशत ही होता है।

ये हैं वैज्ञानिक कारण
दहन घाट पर जलने वाले शवों से कई तरह के बैक्टीरिया और वायरस निकलते हैं, जो कि श्वास के द्वारा सीधे हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। शव की बची हुई राख भी हवा के माध्यम से उड़ती है, जो बीमारियों का प्रत्यक्ष माध्यम है। इसलिए प्राचीन मान्यता के अनुसार शव को जलाने के बाद उसके आस-पास भी खड़े रहने के लिए मना किया गया है। विकास के कारण दहनघाट रहवासी क्षेत्र के करीब पहुंच गए हैं, इसलिए प्राचीन मान्यताएं और वैज्ञानिक कारण औपचारिकताओं के रूप में हो गई हैं, जो पर्यावरण और मनुष्यों के लिए हानिकारक होती जा रही है।

पुणे में हो चुका है प्रयोग
इलेक्ट्रिक क्रेमेटरी मशीन का उपयोग हर पुणे में हो रहा है। धुएं को पूरी तरह फिल्टर कर चिमनी के द्वारा बाहर छोड़ा जाता है। इससे शरीर के जलने पर एश भी कम निकलती है। जितनी कम ऐश, उतनी ही कम बीमारियां होंगी।

शहर में चार मुख्य दहनघाट, जो सघन आवासी क्षेत्र में हैं
शहर में चार अंबाझरी, गंगाबाई, मोक्षधाम और मानकापुर मुख्य दहनघाट हैं। आज इनके आसपास ही बाजार और सघन रहवासी क्षेत्र है।
श्वास, चर्म रोग और खांसी की परेशानी सबसे ज्यादा : रहवासियों ने बताया कि शव जलने के बाद उसकी दुर्गंध से बहुत परेशानी होती है। खाना और घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी तो दो-तीन दिन तक दुर्गंध से परेशानी होती है। बच्चों को चर्मरोग होता है। बूढ़ाें को खांसी और श्वास की समस्या बहुत ज्यादा है।

इन बीमारियों से मरने वालों का दहन और भी खतरनाक
यदि कोई किसी की मृत्यु कैंसर या किसी अन्य संक्रामक बीमारी के कारण हुई है और उस शव को दहनघाट में जलाया जाता है तो वह और ज्यादा हानिकारक है। इसके लिए क्रेमेटरी का उपयोग करना चाहिए। क्रेमेटरी मशीन में विद्युत या अन्य ईंधन से मशीन चलाई जाती है और शव को जलाया जा सकता है और उसका धुआं भी फिल्टर कर पर्यावरण में छोड़ा जाता है।
-डॉ. मानस रंजन रे, पूर्व निदेशक, चितरंजन कैंसर नेशनल इंस्टीट्यूट ।

कई घाटों पर है सुविधा
शव दाहिनी की सुविधा कई घाटों पर दी गई है। अंबाझरी घाट पर शव दाहिनी का उपयोग करने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता लेकिन लकड़े का इस्तेमाल करने पर 2250 रुपए लिए जाते हैं। शव दाहिनी का उपयोग लगभग 20 प्रतिशत ही होता है। इसके प्रति जागरूकता लाने की आवश्यकता है।
सुनील कांबले, आरोग्य अधिकारी, मनपा

उपाय पर गौर जरूरी
हमारे यहां एक और मान्यता है कि शव को रात में नहीं जलाना चाहिए। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि रात में पेड़ों द्वारा कार्बनडाईआक्साइड गैस छोड़ने की प्रक्रिया शुरू होती है और शव से निकलने वाली जहरीली गैसें और बैक्टीरिया सीओटू के संपर्क में आकर और ज्यादा हानिकारक होती हैं। हमें यह देखना होगा कि इसका उपाय क्या है। इसके लिए हमें लकड़ी का उपयोग न कर मशीनों का उपयोग करना चाहिए। मशीनों से इस तरह की समस्याओं से बहुत जल्दी निजात मिल सकता है।
-कौस्तव चटर्जी, पर्यावरणविद
 

Created On :   2 April 2019 12:16 PM IST

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