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कान्हा में एमपी का सबसे बड़ा 2.9 हेक्टेयर का बोमा
प्रदीप धोंगड़ी, सिवनी। यह है प्रदेश का सबसे बड़ा बोमा (बाड़ा)। जिसका कुल एरिया 2.9 हेक्टेयर का है। एशिया की सबसे बड़ी वाइल्ड सेंचुरी कान्हा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय शुक्ला के मुताबिक- कान्हा नेशनल पार्क में करीब तीन हेक्टेयर में तैयार किया गया बोमा, प्रदेश का सबसे बड़ा बोमा है। किसी भी नेशनल पार्क में इतना बड़ा बोमा नहीं है।
पहला कारण इन दिनों कान्हा में अभी तक की सबसे बड़ी वाइल्ड लाइफ शिफ्टिंग की प्रक्रिया चल रही है। 2016 से अभी तक यहां से 780 चीतल शिफ्ट किये जा चुके हैं। इसमें से भी एक बार में करीब सवा सौ चीतलों तक की शिफ्टिंग हुई है। चमंकि टारगेज बड़ा है इसलिए बोमा भी उसी अनुपात में तैयार कराया गया है।
वजह यह भी
बकौल केटीआर फील्ड डायरेक्टर संजय शुक्ला कान्हा किसी भी प्रोजेक्ट में मेन लीड रोल में रहता है। टाइगर रिजर्व व नेशनल पार्क में जो भी प्रयोग व गतिविधियां होनी होती हैं, उनका पहला एक्सपेरीमेंट कान्हा में ही होता है। इसीलिए यहां सबसे बड़ा बोमा तैयार कराया गया है। बकौल शुक्ला कान्हा के अलावा पेंच टाइगर रिजर्व में भी बोमा बनया गया है, लेकिन वह छोटा और अस्थायी है। जरूरत पड़ने पर इसे और बड़ा बनाया जा सकता है, लेकिन वह भी अस्थायी ही रहेगा।
पेंच से शिफ्टिंग
कान्हा से चीतलों की शिफ्टिंग भैंसानघाट और आसपास के क्षेत्रों में की जा रही है। कान्हा की तरह पेंच से भी सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में चीतलों को भेजा जा रहा है। पेंच में करीब एक हेक्टेयर में बने अस्थाई बोमा से अभी तक करीब ३०० चीतलों को पकड़ कर, चार शिफ्टों में सतपुड़ा भेजा जा चुका है।
वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों के अनुसार बोमा विधि चीतलों और बारहसिंगा को पकड़ने के लिए विशेष रूप से अपनाई जाती है। तीर के आकार में बोमा तैयार किया जाता है। चौड़े वाले हिस्से से चीतलों को भगाया जाता है और धीरे-धीरे चीतल एक जगह इकठ्ठा होने लगते हैं। अंतिम कोने तक पहुंचने के पहले वाहन कुछ इस तरह से खड़ा कर दिया जाता है कि उसका दरवाजा बोमा के अंतिम छोर पर जा कर खुले। जब चीतलों को कहीं ओर भागने को मौका नहीं मिल पाता, तो वे वाहन के दरवाजे को खाली जगह समझकर उसमें चले जाते हैं। चीतलों के अंदर पहुंचते ही वाहन का गेट तत्काल बंद कर दिया जाता है।
Created On :   7 July 2017 9:02 PM IST