सरकार तो बदलती ही है, आर्थिक संपन्न बनें संस्थाएं -भागवत

Mohan bhagwat said social organizations should not depend on government
सरकार तो बदलती ही है, आर्थिक संपन्न बनें संस्थाएं -भागवत
सरकार तो बदलती ही है, आर्थिक संपन्न बनें संस्थाएं -भागवत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि सामाजिक संस्थाओं को सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। शुरुआती दौर में राजा, महाराजाओं की सरकार भी बदलती थी। अब हर पांच साल में सरकार बदलती है।  

महामहोपाध्याय डॉ. वा.वि. मिराशी शतकोत्तर रजत जयंती समारोह और ‘संशोधन क्षितिज’ वार्षिकांक का सरसंघचालक के हाथों विमोचन किया गया। इस अवसर पर विदर्भ संशोधन मंडल के पदाधिकारियों ने अपने भाषण में मंडल के आर्थिक स्थिति पर व्यथा रखी थी। इस पर बोलते हुए सरसंघचालक ने सामाजिक संस्थाओं को आर्थिक मदद के लिए सरकार पर निर्भर न रहते हुए समाज से उसे जुटाने पर जोर दिया। डॉ. भागवत ने कहा कि सरकार कभी भी बदलती है। आजकल की सरकार हर पांच साल में बदलने की संभावना रहती है। इस कारण समाज से आर्थिक शक्ति निर्माण करने की सलाह दी।

इस अवसर पर उपस्थितों ने मार्गदर्शन किया। डॉ. मदन कुलकर्णी ने विदर्भ संशोधन मंडल का कार्य व वा.वि. मिराशी के विषय में जानकारी दी। इस अवसर पर उपस्थित मान्यवरों ने भी मार्गदर्शन किया। डॉ. राजेंद्र वाटाणे ने प्रास्ताविक से कार्यक्रम की जानकारी दी। डॉ. राजेंद्र नाईकवाडे ने संचालन किया। 

बहुजन हिताय हो ज्ञान 
धंतोली स्थित देवी अहिल्या मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में विदर्भ संशोधन मंडल के विश्वस्त पराग पांढरीपांडे, अध्यक्ष डॉ. मदन कुलकर्णी, प्राचार्य म. पांडे, शिक्षणतज्ञ डॉ. कुमार शास्त्री उपस्थित थे। संशोधन कार्य पर बोलते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि संशोधन महर्षि बहुत बड़ा शब्द है। आधुनिक समय में ऐसे ऋषि बहुत कम मिलते हैं। हमारे यहां ऋषि को दाढ़ी बढ़ाकर जंगलों में घूमने वाला समझा जाता है। लौकिक जीवन छोड़कर ज्ञान-साधना की ओर ध्यान आकर्षित करने वाले भी ऋषि होते हैं।  मौजूदा समय में ज्ञान प्राप्त करने का उद्देश्य अलग-अलग है। ज्ञान स्वार्थ, सुख के लिए अथवा ‘बहुजन हिताय’ हो सकता है।

ज्ञान मुक्ति का मार्ग है। मूलत: ज्ञान का प्रयोजन मुक्त होना और सबको मुक्ति का मार्ग बताना है।  अंग्रेजों ने भारत में बड़े पैमाने पर संशोधन किए हैं। उनके संशोधन के आधार पर आज भी देश में जातीय जनगणना और भारत का भूगोल चलता है। लेकिन, उनका संशोधन स्वार्थी था। ऐसे ज्ञान अथवा संशोधन को ‘ज्ञानी’ नहीं कहा जा सकता है। डॉ. मिराशी जैसे महामहोपाध्याय का आदर्श समाज अंगीकार करे और परोपकार के लिए संशोधन करे।

Created On :   16 April 2019 1:03 PM IST

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