रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने वाले युवक को 3 वर्ष की जेल

Man jailed for 3 years for black marketing of Remdesivir
रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने वाले युवक को 3 वर्ष की जेल
रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने वाले युवक को 3 वर्ष की जेल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। रेमडेसिविर कालाबाजारी में दोषी पाए गए युवक को नागपुर की विशेष अदालत ने 3 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। मुख्य न्यायदंडाधिकारी एस.बी.पवार ने आरोपी महेंद्र रतनलाल रंगारी (28, निवासी दिघोरी नाका) को दोषी करार दिया है। हुड़केश्वर पुलिस में दर्ज मामले के अनुसार 17 अप्रैल 2021 को आरोपी ने रेमडेसिविर की कालाबाजारी की थी। उस वक्त शहर में कोरोना संक्रमण अपनी भीषणता दर्शा रहा था। रेमडेसिविर एक एेसा जीवनावश्यक इंजेक्शन बन गया था, जिसकी लगभग हर कोरोना मरीज को तलाश थी। लेकिन रेमडेसिविर की सीमित आपूर्ति के कारण कई असामाजिक तत्वों ने इसकी कालाबाजारी करना शुरू कर दी थी। पुलिस ने कई मामलों में पाया कि अस्पताल के चिकित्सक और स्टाफ की मदद से यह कालाबाजारी हो रही है। 

12 लोगों की हुई थी गवाही
इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए फौजदारी रिट याचिका दायर की थी। जिसके बाद विशेष न्यायालय को शीघ्र गति से रेमडेसिविर कालाबाजारी के प्रकरणों का निपटारा करने के आदेश दिए गए थे। इस मामले में एड. ज्योति वजानी को विशेष सरकारी वकील नियुक्त किया गया है, उक्त मामले में एड. लीना गजभिए ने उन्हें सहयोग किया। आरोपी की ओर से एड. मिलिंद खोब्रागडे ने पक्ष रखा।  मामले में 12 लोगों की गवाही हुई थी। सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने यह निर्णय दिया है। 

कोरोना की दूसरी लहर कितनी भयावह रही यह बात जमीनी स्तर से लेकर सरकारी आंकड़ों तक सामने आई है। स्थिति इतनी खराब रही कि मरीजों को अस्पताल में भी जगह नहीं मिली। मजबूरन घर में मरीजों को इलाज कराना पड़ा। घर में भी न ऑक्सीजन, न दवाई और न ही जीवन बचाने वाले इंजेक्शन मिले। इसमें सबसे अधिक मांग रेमडेसिविर इंजेक्शन की थी। इस इंजेक्शन के लिए मरीज के परिजन हफ्तों बाजारों में घूमते रहे। एक राज्य से दूसरे राज्य तक का सफर तय किया, फिर भी इंजेक्शन नहीं मिले।

 मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए कई लोगों ने इसकी कालाबाजारी भी की, इसमें कई चिकित्सक, परिचारिकाओं सहित पैरामेडिकल स्टाफ को भी गिरफ्तार किया गया। इसे रोकने के लिए जिलाधिकारी ने इसके वितरण की जिम्मेदारी जिलाधिकारी कार्यालय के अधीन कर दी। अस्पतालों में यदि मांग 50 की थी, तो उपलब्धि के अनुसार आपूर्ति सिर्फ 5 से 10 इंजेक्श्न की होती थी। अस्पताल में बेड नहीं मिलने के कारण मजबूरी में घर पर इलाज करा रहे मरीजों को इंजेक्शन ही उपलब्ध नहीं हो पाए। इसकी कमी के कारण सैकड़ों मरीजों की जान गई। कई लोगों ने अपने माता-पिता, भाई-बहन सहित अपने करीबी परिजनों को खोया।
 

Created On :   24 July 2021 2:37 PM IST

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