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कांग्रेस के लिए जीत का सिलसिला बरकरार रखने तो भाजपा के सामने गढ़ में सेंध लगाने की चुनौती
डिजिटल डेस्क, रायपुर। आदिवासी आरक्षण को लेकर गरमाई सूबे की सियासत के बीच हो रहे भानुप्रतापपुर उपचुनाव कांग्रेस तथा भाजपा के लिए शक्ति परीक्षण का बड़ा अवसर है। जिता बड़ा अवसर, उतनी बड़ी चुनौतियां क्योंकि यह उपचुनाव 2023 के विधानसभा चुनावों में जनता का मिजाज कैसा रह सकता है, यह भी सामने लाएंगे। दोनों ही दलों के सामने जीत दोहरी चुनौती है। कांग्रेस पर दबाव ज्यादा है क्योंकि उसे अपनी यह सीट जीतने के साथ अपने दिवंगत विधायक (विधानसभा उपाध्यक्ष) मनोज मांडवी की प्रतिष्ठा को बचाना है। प्रदेश के गठन के बाद से भानुप्रतापपुर सीट पर अब तक हुए 5 चुनावों में से तीन मनोज मंडावी ने ही जीते। उनके निधन के बाद ये सीट खाली है। इसके इतर बड़ा दबाव इस बात को लेकर भी कांग्रेस पर है कि 2018 के बाद से प्रदेश में अब तक जितने भी उपचुनाव हुए हैं, सभी मेें वह जीती है। लिहाजा जीत का सिलसिला बरकार रख, मिशन 2023 के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं तथा नेताओं में वह उत्साह का नया संचार कर सकती हे। साथ ही यह भी बता सकती है कि विपक्षी दल भाजपा द्वारा गरमाया जा रहा आरक्षण का मुद्दा हो या फिर महिला अपराध और शराबबंदी जैसे मुद्दे इसका जनता पर असर नहीं पड़ा है।
हर हाल में जीत जरूरी
भाजपा के लिए 5 दिसंबर को होने जा रहे इस उपचुनाव में हर हाल में जीत हासिल करने का कहीं अधिक दबाव है। क्योंकि इस जीत से उसकी प्रतिष्ठा तो जुड़ी ही हुई है, वह कांग्रेस इस गढ़ में सेंध लगा कर यह भी बता सकती है कि 2023 के लिए वह पूरी तरह से तैयार है और जनता उसके साथ है। उपचुनावों में कांग्रेस की जीत के सिलसिले को भी उसे ब्रेक करना है। चूंकि उस पर जीत का दबाव ज्यादा है इसलिए वह प्रत्याशी चयन में बहुत अधिक सावधानी बरत रही है। युवा तथा शिक्षित परमानंद तेता के साथ अुनभवी तथा 2003 और 2008 में इस सीट पर जीत हासिल कर चुके देव लाल दुग्गा तथा ब्रम्हानंद नेताम पर भी वह विचार कर रही है। कांग्रेस की तरफ से लगभग तय है कि वह मनोज मंडावी की पत्नी को ही चुनाव लड़ाएगी और सहानुभूति की लहर को भुनाने की कोशिश करेगी।
Created On :   10 Nov 2022 2:19 PM IST