नाबालिग आरोपियों के खिलाफ 90 दिनों में चार्जशीट दायर नहीं की तो मिल जाएगी जमानत

If No charge sheet filed in 90 days against minor accused will get bail
नाबालिग आरोपियों के खिलाफ 90 दिनों में चार्जशीट दायर नहीं की तो मिल जाएगी जमानत
नाबालिग आरोपियों के खिलाफ 90 दिनों में चार्जशीट दायर नहीं की तो मिल जाएगी जमानत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने हालिया फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी प्रकरण में पुलिस 90 दिनों के भीतर विधि संघर्षग्रस्त बालकों  के खिलाफ चार्जशीट दायर नहीं करती है, तो कोड ऑफ क्रीमिनल प्रोसिजर 167 (2) के तहत विधि संघर्ष ग्रस्त बालक भी जमानत के लिए अर्जी दायर कर सकते हैं। बता दें कि इस धारा के तहत वयस्क आरोपियों को जमानत के लिए अर्जी दायर करने की अनुमति मिलती है, अब तक विधि संघर्षग्रस्त बालकों  को इस धारा का लाभ नहीं मिलता था। लेकिन हाईकोर्ट ने इस धारा के हवाले से नागपुर बाल न्यायालय को चार विधि संघर्ष ग्रस्त बालकों की जमानत अर्जी पर पुनर्विचार करने के आदेश जारी किए, जिसके बाद बाल न्यायालय ने उन्हें जमानत दे दी। अधिवक्ता वर्ग का दावा है कि  महाराष्ट्र में यह पहली बार हुआ है। विधि संघर्षग्रस्त बालकों के अधिवक्ता चेतन ठाकूर ने बताया कि उन्होंने नागपुर खंडपीठ के समक्ष पटना हाईकोर्ट के चंदनकुमार विरुद्ध स्टेट ऑफ बिहार का फैसला प्रस्तुत किया, जिसके बाद नागपुर खंडपीठ ने भी खापरखेड़ा के नाबालिगों को जमानत प्रदान की। 

यह है प्रकरण 
मामला नागपुर जिले के खापरखेड़ा का है। घटना 16 दिसंबर 2017 की है। खापरखेड़ा के राजबाबा बार एंड रेस्टॉरेंट के सामने चार नाबालिग आरोपियों ने क्षेत्र के निवासी आकाश पानपत्ते की गोली मार कर हत्या कर दी थी। मामले में पुलिस ने क्षेत्र के ही बाबू नायडू को गिरफ्तार किया था। पुलिस में दर्ज मामले के अनुसार, आपराधिक गतिविधि में लिप्तता और रंजिश के चलते यह हत्याकांड हुआ था। नायडू ने क्षेत्र के ही चार नाबालिगों को इस हत्या की सुपारी दी थी। उसने इन नाबालिगों को हथियार भी उपलब्ध कराए थे। मामले में पुलिस ने चारों नाबालिगों को 19 दिसंबर 2017 को गिरफ्तार किया था। इसके बाद 90 दिनों तक जब पुलिस मामले में चार्जशीट प्रस्तुत नहीं कर पाई, तो नाबालिगों ने सीआरपीसी 167 (2)  के तहत बाल न्यायालय में जमानत के लिए अर्जी दायर की। लेकिन बाल न्यायालय ने यह कह कर उन्हें जमानत देने से इनकार किया कि यह धारा वयस्क अारोपियों के लिए लागू होता है, न कि विधि संघर्षग्रस्त बालकों के लिए। इसके बाद सत्र न्यायालय ने भी यह फैसला कायम रखा। हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के बाद कोर्ट ने बाल न्यायालय को जमानत अर्जी पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया था।

Created On :   19 Nov 2018 11:49 AM IST

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