अंतिम सलाम: साइनबोर्ड पेंटर से टॉप सांग राइटर तक राहत इंदौरी
डिजिटल डेस्क, इंदौर। कोई व्यक्ति अपनी मेहनत, प्रतिभा और हौसले से अपनी हैसियत कैसे बदल सकता है उसका एक बेहतरीन उदाहरण गीतकार डॉ. राहत इंदौरी हैं। वे एक साइनबोर्ड पेंटर से कॉलेज के अध्यापक बनते हैं। इसके बाद देश के नामचीन शायर में शुमार होते हुए बॉलीवुड के मशहूर गीतकार बन जाते हैं। आज (मंगलवार, 11 अगस्त) उर्दू की समकालीन दुनिया के वही मशहूर शायर राहत इंदौरी नहीं रहे। उन्होंने 70 साल की उम्र में उन्होंने मध्यप्रदेश के इंदौर के अरविंदो अस्पताल में अंतिम सांस ली। उन्हें निमाेनिया होने के बाद 10 अगस्त की देर रात अस्पताल में भर्ती किया गया था। बाद में वे कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। शाम 5 बजे के करीब उन्हें कार्डिएक अरेस्ट आया और फिर उन्हें बचाया नहीं जा सके। इसके बाद उन्हें देर रात इंदौर में ही सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया है।
"लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है"
"सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है."
कपड़ा मिल कर्मचारी के घर जन्म हुआ
राहत इंदौरी का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ। वे इस दंपती की चौथी संतान हैं। राहत को छुटपन से ही पेंटिंग में रूचि थी। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी। इस वजह से 10 साल से भी कम उम्र में उन्होंने साइनबोर्ड पेंटर के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। चित्रकारी उनकी रुचि के क्षेत्रों में से एक थी और बहुत जल्द ही बहुत नाम अर्जित किया था। वे कुछ ही समय में इंदौर के व्यस्ततम साइनबोर्ड पेंटर बन गए। उनके असाधारण डिज़ाइन कौशल, शानदार रंग संयोजन और कल्पनाशील की वजह से उनके काम को लोग बहुत पसंद करते थे। उनके पास इतना ज्यादा काम आने लगा कि ग्राहकों को महीनों इंतजार करना पड़ता था। अगर आप कभी इंदौर जाएं तो वहां की कई दुकानों के लिए बनाए गए कई साइनबोर्ड्स आज भी आप देखे सकते हैं।
"उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर-मंतर सब, चाक़ू-वाक़ू, छुरियां-वुरियां, ख़ंजर-वंजर सब"
"जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं, चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब"
"मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है, फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब"
"आख़िर मैं किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते हैं, कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब"
हॉकी और फुटबॉल टीम के कप्तान रहे
राहत की प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। राहत अच्छे खिलाड़ी भी थे। वे स्कूल व कॉलेज में हॉकी और फुटबॉल टीम के कप्तान भी रहे। इसके बाद 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया। 1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
"मैं जब मर जाऊं, मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना"
उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य किया
राहत ने शुरुवाती दौर में आईके कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू दकया। उनके छात्रों के मुताबिक वे कॉलेज के अच्छे व्याख्याता थे। वो मुशायरों में शामिल होने लगे और पूरे भारत से और विदेशों से निमंत्रण आने लगे। राहत ने जल्द ही लोगों के दिलों में अपने लिए एक खास जगह बना ली। वे जल्द ही उर्दू साहित्य की दुनिया के प्रसिद्ध शायरों में शामिल हो गए।
"बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिए"
महेश भट्ट ने सर फिल्म में दिया ब्रेक
राहत इंदौरी को गीतकार के रूप में सबसे पहले महेश भट्ट ने फिल्म सर (1992) में मौका दिया। इस फिल्म के कई गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे। इनमें राहत का लिखा गीत जिसे कुमार सानू और अलका याज्ञनिक ने गाया था "आज हमने दिल का हर किस्सा तमाम कर दिया, हम भी पागल हो गए तुम को भी पागल कर दिया" सबसे ज्यादा हिट हुआ था।
"अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए"
चोरी-चोरी जब नजरे मिली
फिल्म निर्माता व निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी फिल्म करीब 1998)के गीत राहत इंदौरी से ही लिखवाए थे। बॉबी देओल और नेहा के लीड रोल वाली फिल्म तो फ्लॉप हो गई थी लेकिन इसके गाने बेहद कर्णप्रिय थे। कुमार सानू और संजीवनी का युगल गीत चोरी-चोरी जब नजरे मिली खूब चला था।
"शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे"
लोकप्रिय गीत
- पास वो आने लगी जरा-जरा : मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी (94), कुमार सानू, अलका याग्निक, अनु मलिक
- दिल का दरवाजा खुला है राजा : मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी
- तुम सा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है : खुद्दार( 94) कुमार सानू, अलका याग्निक
- रात क्या मांगे एक सितारा : खुद्दार (94)
- खत लिखना हमें खत लिखना : खुद्दार (94)
- मेरे ख्याल मेरे ही दिल मेरी नजर प्रेम शक्ति (94)
- तूझे प्यार करते-करते : नाजायज (95)
- देखो-देखो जानम हम दिल अपना तेरे लिए लाए : इश्क (97)
- नींद चुराई मेरी किसने ओ सनम : इश्क (97)उदित कविता कुमार सानु, अनु मलिक
- हम तुमसे मोहब्बत करते हैं : प्रेम अग्न (98)
- ढलने लगी है रात कोई बात कीजिए :(2003)
- दो कदम और सही : मीनाक्षी (2004)
- यह रिश्ता क्या कहलाता है : मिनाक्षी, एआर रहमान, रीना भारद्वाज
- मेरी चाहत का समंदर तो देखो : जुर्म (2005)
- हम अपने गम को सजा कर बहार : द जेंटलमैन (94) विनोद राठौर-साधना सरगम, अनु मलिक
- बूमरो बूमरो श्याम रंग बूमरो : मिशन कश्मीर (2000) सुनिधि चौहान-जसपिंदर, शंकर, एहसान लॉय
- एम बोले तो मैं मास्टर : मुन्ना भाई एमबीबीएस (2003)
- दिल को हजार बार रोका रोका-रोका : मर्डर (2004) अलीशा चिनॉय, अनु मलिक
Created On :   12 Aug 2020 1:44 AM IST