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हजारों की भीड़ में डर और रोमांच का एहसास
डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा। वीरान जंगल में जमा होती हजारों की भीड़ के बीच खुले बदन झूमते लोग। तंत्र-मंत्र से इन लोगों के अंदर प्रवेश कर चुकी बुरी शक्तियों को निकालने का दावा करते तांत्रिक। यह उस अनूठे मेले का दृश्य है जो कि भूतों के मेले के नाम से हजारों सालों से छिंदवाड़ा जिले में लगता आ रहा है। दिन के उजाले से लेकर रात के अंधेरे में भी बीमार लोग खुले बदन झूमते हुए इस मेले में पहुंचते हैं। तांत्रिक मंत्रों के जरिए भूतबाधा दूर करते हैं, फिर वटवृक्ष में मंत्रों के साथ कील ढोंकी जाती है। मालनमाता के मंदिर में पूजन के बाद लोगों के ठीक होने का भी दावा किया जाता है। डर और रोमांच से भरे इस मेले में पहुंची दैनिक भास्कर की टीम ने इस मेले की तस्वीरें और वीडियो पाठकों के लिए जुटाए हैं।
छिंदवाड़ा शहर से ६३ किलोमीटर दूर खुमकाल पंचायत के ग्राम तालखमरा में तालाब के किनारे मालनमाता के मंदिर परिसर में यह अनूठा भूतों का मेला हजारों सालों से लगता आ रहा है। दीपावली के बाद एकादशी से शुरु होने वाला मेला १५ दिनों तक आयोजित होता है। उसके बाद यह स्थान साल भर वीरान रहता है। इस अघोषित मेले का आयोजन जय श्री मालन जन कल्याण समिति द्वारा किया जाता है। इस बार भी मेले में अटूट भीड़ पहुंच रही है।
सैकड़ों परिवार का चूल्हा भी मेले से चलता है
इस मेले में बीमार, परेशान लोगों के साथ मालन माता, दैय्यत बाबा में आस्था रखने वाले छिंदवाड़ा जिले के साथ बैतूल, महाराष्ट्र के भी लोग पहुंचते हैं। मेले में श्रृंगाल, खिलौने, फोटो स्टूडियो, किराना सामान से लेकर खानपान की तमाम व्यवस्थाएं रहती हैं। लोग परिवार के साथ भी इस मेले में पहुंचते हैं। सैकड़ों व्यापारी परिवार समेत इस मेले में व्यापार करने पहुंचते हैं।
जब पेड़ पर चढ़कर नाचने लगी महिला
मेले में पहुंची टीम ने देखा कि एक महिला बाजे-गाजे और तांत्रिकों के साथ खुले बालों में झूमते हुए वटवृक्ष के पास पहुंची। अचानक अजीब सी आवाज निकालकर चिल्लाने लगी। इधर एक जानकार तंत्रमंत्र से उसे ठीक करने में जुटा रहा। वह महिला देखते ही देखते जमीन पर लेटे हुए पेड़ के ऊपर चढ़कर नाचने लगी। पेड़ के पास खड़ा तांत्रिक मंत्रों के साथ वटवृक्ष पर कील ठोंकने लगा। कुछ देर बाद सब कुछ शांत हो गया। हालांकि इस मेला स्थल में चारों तरफ अलग-अलग तंबुओं में ऐसे नजारे देखने मिल रहे थे।
बामी से निकली थी मातारानी की मूर्तियां
हजारों साल पहले इस गांव में रहने वाले गरीब दादा के यहां दो बेटे थे। नागा और नागुआ इन दोनों भाइयों की जिद पर एक बांसुरी पिता ने बनाकर दी थी। जो कि इसी स्थान पर बांस की झाडिय़ों से ढंके बिलों में गिर गई थी। कुछ देर बाद इसी स्थान पर मालन माता की मूर्तियां दिखाई दी थी। तभी से मंदिर के प्रति लोगों की आस्था है। तालाब में स्नान कर माता के पूजन करने से भूतबाधा, बांझपन जैसे जटिल रोग दूर होते हैं।
- धीरन उईके, मेला समिति अध्यक्ष
इनका कहना है
हमारी संस्था देश भर में ऐसे मेले व आयोजनों में फैलने वाली भ्रामक जानकारी व अंधविश्वास को रोकने के लिए काम करती है। विज्ञान इन सब चीजों को नहीं मानता है।
झाड़-फूंक के नाम पर हो रहे अपराधों को लेकर महाराष्ट्र सरकार ने तो कानून में संशोधन किया है। मप्र सरकार को भी इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।
हरीश देशमुख, राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय अंधश्रृद्धा निर्मूलन समिति
Created On :   10 Nov 2022 5:55 PM IST