किसानों ने संभाली कमान, सुनाई सफलता की दास्तां
डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के किसान सम्मेलन में 16 सफल किसानों ने तकनीकी सत्र को संभाला। किसानों ने अपनी सफलता को अन्य किसानों के साथ साझा किया। श्रोताओं के रूप में कई विशेषज्ञ, कृषि जानकारों के साथ ही आयोजक डॉ. प्रकाश ईटनकर और नींबू वर्गीय अनुसंधान संस्था के निदेशक डॉ. दिलीप घोष भी उपस्थित थे। इस सत्र का संचालन डॉ. राजकुमार खापेकर ने किया। पैनल में कल्याण की शिवाजी लोक विद्यापीठ के कैप्टन लक्ष्मीकांत कलंत्री, जूलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. मिलिंद शिनखेड़े, केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डॉ. सुखदेव नंदेश्वर, डॉ. प्रगतिशील किसान सुनील कोंबे, ज्ञानेश्वर भानसिंगे, रविन्द्र मेटकर, कपस उत्पादक प्रकाश पाटील, भगवान रामटेके, उत्तम माटे, साधना पाटील, मिनाक्षी सहारे, डॉ. ए. डी. जाधव, मिर्च उत्पादक प्रतिमा गोखले समेत अन्य उपस्थित थे।
सरकारी अधिकारी बने मार्गदर्शक : गोपाल भक्ते
संतरा उत्पादक किसान गोपाल भक्ते ने बताया कि सरकारी कृषि कार्यालय के अधिकारियों को अपनी भूमिका में बदलाव कर किसानों का मार्गदर्शक बनने की जरूरत है। कार्यालय से किसानों की खेती की स्थिति को नहीं समझा जा सकता है। विदर्भ के संतरा उत्पादकों के सामने अब भी कब, क्यों, कहां और कैसे की स्थिति बनी हुई है। प्रति एकड़ खेती में संतरा का उत्पादन महज 7 टन ही हो रहा है, लेकिन अब संतरा उत्पादकों को सोशल मीडिया से जोड़कर समन्वय कर रहे हैं। हमारा संकल्प है कि प्रति एकड़ 30 टन तक पैदावार करें।
बांबू से जैविक खेती संभव : कृष्णा चदलवाड़ा
गड़चिरोली के किसान कृष्णा चदलवाड़ा के मुताबिक बांबू प्रसंस्करण से जैविक खेती के लिए कृषि भूमि की उर्वरकता को प्राप्त किया जा सकता है। साल 2017-18 में राज्य सरकार ने बांबू को प्रोत्साहन देना आरंभ किया है, लेकिन हमनें कई सालों की मेहनत से बांबू को बेहद गर्म कर जिंक, सिलिकॉन और कार्बन को निकालकर जमीन की उर्वरता को प्राप्त किया है। बांबू के तेल व कार्बन से जैविक खेती को बेहद लाभदायक बनाया गया है।
कोरोना ने बदली राह : छाया देशमुख
अमरावती जिले की कपास उत्पादक महिला किसान छाया देशमुख का कहना है कि अद्म्य इच्छाशक्ति से अभाव को रोजगार में बदला जा सकता है। पिछले कई साल से भाेजनालय के माध्यम से छात्रों के पेट भरने का काम करती रही हूं। कोरोना संक्रमण के दौरान भोजनालय बंद होने से आजीविका के साधन बंद हो गए थे। ऐसे में पिता की खेती में दो जानवरों से 20 लीटर दूध के साथ व्यवसाय को आरंभ किया। अब दूध उत्पादन के साथ ही जैविक खेती भी कर रही हूं। इसके साथ ही माइक्रो ट्रेनिंग सेंटर से जुड़कर 250 से अधिक किसानों का मार्गदर्शन भी करती हूं।
दुग्ध उत्पादन से भी उन्नति संभव : चंद्रशेखर जोगाहेट्टी
वर्धा जिले के कारंजा के छोटे से गांव की आबादी 250 नागरिकों की है, लेकिन मेरे गांव में आबादी से चार गुना दुधारू गायें मौजूद हैं। 6 साल पहले तक गांव वालों को दूध का संकलन केवल संस्थाओं को देना आता था, लेकिन अब किसानों को डेयरी विकास बोर्ड के सहयोग से माइक्रो ट्रेनिंग सेंटर में मार्गदर्शन मिल रहा है। दूध व्यवसाय आरंभ करने की प्रक्रिया, दूध उत्पादन की गुणवत्ता, जानवरों को देने वाले आहार, हरी घास को सालभर सुरक्षित रखने की योजना बनाई जा रही है। लॉकडाउन में भी हमने खेतों में हरी घास का उत्पादन कर दुग्ध व्यवसाय को नियमित रूप से जारी रखा है। हमारा लक्ष्य पूरे गांव से 2.50 मीट्रिक टन घास उत्पादन करना है।
मेहनत और जिद से मिलती है सफलता : रविन्द्र मेटकर
देश में कृषि क्षेत्र में प्रतिष्ठित बाबू जगजीवनराम कृषि पुरस्कार से सम्मानित अमरावती के किसान रविन्द्र मेटकर ने कहा कि जीवन के सभी क्षेत्र समेत कृषि विकास में भी मेहनत और जिद से सफलता मिलती है। 16 साल की उम्र में बगैर कृषि भूमि के रोजंदारी से काम की शुरुवात की। एम कॉम तक पढ़ाई करने के बाद मां की जमा पूंजी से 1 एकड़ जमीन खरीद कर पोलट्री फार्म का व्यवसाय शुरू किया था। वर्ष 2000 में 5 लाख रुपए का बैंक से कर्ज लेकर मुर्गी पालन व्यवसाय को बढ़ाया, लेकिन साल 2006 में बर्ड फ्लू के चलते पूरा व्यवसाय चौपट हो गया। कर्जबाजारी के कारण नौकरी करनी पड़ी। वर्ष 2010 में पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए बैंक ने कर्ज दिया। वर्तमान में 50 एकड़ खेती में 1 लाख 80 हजार मुर्गियों के साथ व्यवसाय चल रहा है। रोजाना करीब 4 लाख रुपए के खर्च समेत 50 कर्मचारियों को रोजगार भी दिया है।
Created On :   6 Jan 2023 4:17 PM IST