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रेड लाइट एरिया के इन नौनिहालों की बदली तकदीर, कोई बना इंजीनियर कोई वकील

लिमेश कुमार जंगम ,नागपुर। रेड लाइट एरिया का नाम सुनते ही बदनाम बस्ती का चित्र सामने आ जाता है । यहां के बच्चों के उज्जवल भविष्य का सपना जहां खुद उनकी मां नहीं देख सकती वहीं एक समाजसेवी ने हकीकत में कर दिखाया। रेड लाइट एरिया के नौौनिहालों को पारिवारिक माहौल में लाकर उन्हें इंजीनियर,वकील से लेकर उच्च शिक्षित बनाने वाले शख्स हैं राम इंगोले। रेड-लाइट के वे मासूम लगातार अपमान का दंश झेल रहे थे। ऐसे में 1980 के दशक में जब वारांगनाओं के पुनरुत्थान के लिए जांबुवंतराव धोटे ने आंदोलन छेड़ा, तो बतौर कार्यकर्ता राम इंगोले का रोम-रोम पसीज गया। नन्हें बच्चों के भविष्य को लेकर व्याकुल हुए राम ने समाज सेवा का बीड़ा उठाया। पिता, परिवार और समाज के प्रखर विरोध के बावजूद वे रेड-लाइट की गंदी गलियों में पहुंच गए। यहीं से शुरू हुई संघर्ष की कहानी, जो 38 साल से लगातार जारी है।
रेड-लाइट एरिया के 60 बच्चों को इसी संघर्ष ने कहां से कहां पहुंचा दिया। इसमें से कई आज नामी इंजीनियर हैं, तो कोई वकील, तो कई अन्य प्रतिष्ठित पेशों में। शुरुआत में कोई भी वारांगना अपने बच्चों को राम इंगोले को सौंपने को तैयार नहीं थी। साफ नीयत, अथक प्रयास व समझाइश की पुरजोर कोशिशों के बाद कुछ वारांगनाओं ने अपने बच्चों को सौंपा। धीरे-धीरे आंकड़ा 30 तक पहुंच गया और फिर शुरू हुआ नौनिहालों का आश्रम। यहां रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा उत्तम शिक्षा, अच्छे संस्कार दिए गए। आज यहां की 5 युवतियां विविध क्षेत्रों में नामी इंजीनियर बनकर अपने हुनर का लोहा मनवा रही हैं। अन्य अनेक बच्चे भी विविध क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं।
होस्टलों ने भी फेरा था मुंह
जब वारांगनाओं के बच्चों का जीवन सुधारने की नीति बना कर राम इंगोले ने अनेक छात्रावासों से संपर्क किया, इनकी व्यथा बयां की और बच्चों को आसरा देने की अपील की, तब कोई भी छात्रावास इन बच्चों को स्वीकारने व रखने के लिए तैयार नहीं था। सामान्य सामाजिक वातावरण में जीने का हक किसी ने नहीं दिया। लंबे संघर्ष के बाद कुछ हॉस्टल संचालक तैयार हो गए, परंतु वारांगनाओं का बच्चों से संपर्क एवं बच्चों का रेड-लाइट में आवागमन उनके शैक्षणिक व सामाजिक जीवन को छलनी कर रहा था।
हॉस्टल नहीं, परिवार चाहिए था
हॉस्टल में वारांगनाओं के बच्चों का दाखिला दिलाने के बावजूद उनमें कोई खास बदलाव नहीं आया। बुरी आदतें पीछा नहीं छोड़ रही थीं। इन बच्चों को हॉस्टेल के कठोर नियमों के बजाय प्रेम देने वाले परिवार की जरूरत थी। उनकी मनोदशा को भांपते हुए राम इंगोले ने एक ऐसे घर की संकल्पना को साकार किया, जहां अनेक बच्चे एक पारिवारिक माहौल में पले-बढ़ें और संस्कारिक हों। देश का यह पहला प्रयोग था, जहां वारांगनाओं के बच्चों को हॉस्टल के बजाय घर उपलब्ध हुआ।
तिरस्कार ने जीना मुश्किल किया
जब बच्चों को लेकर एक मकान में जीवन की शुरुआत की तो परिवार, मित्र व समाज ने पुरजोर विरोध किया। भद्दी प्रतिक्रियाएं और तिरस्कारों ने जीना मुश्किल कर दिया था। बावजूद राम इंगोले ने हार नहीं मानी। वे लगातार घर बदलते रहे, लेकिन उन मासूम बच्चों का साथ नहीं छोड़ा। मकान मालिक पहले तैयार हो जाते, लेकिन जैसे ही समाज से विरोध के स्वर उठते, तो वे मकान छोड़ने के लिए बाध्य कर देते। संकुचित सोच ने हर कदम पर सताया।
आखिरकार आ ही गई बदलाव की बयार
समाज मन धीरे-धीरे बदलने लगा। लोगों की सोच में परिवर्तन दिखने लगा। लंबे संघर्ष के बाद समाज भी इन बच्चों के दर्द को समझने लगा, तो राम इंगोले की तकलीफें थोड़ी कम हुईं। संघर्ष की इस यात्रा के गवाह बने बच्चों ने भी संयम और समझबूझ से खुद को काबिल बनाया। पढ़ाई पर ध्यान देकर संस्कारों को आत्मसात किया। वे गरीब, भूख और लाचारी को जानने लगे। बच्चे कभी किसी भिखारी को, तो कभी प्लास्टिक चुनने वाले बच्चों को अपने साथ ले आते। उन्हें भोजन कराते। बीमार को उपचार कराते। आसरा देते। धीरे-धीरे यह परिवार एक सामाजिक काफिले में तब्दील हुआ। इन बच्चों ने स्वयं ही पांचगांव के खान कामगारों के बच्चों के लिए एक पेड़ के नीचे संडे स्कूल शुरू की। आज इस नियमित व निवासी स्कूल में करीब सवा सौ बच्चे पढ़ते हैं।
आत्मविश्वास व सम्मान की जीत
राम इंगोले ने पूर्व के 30 और मौजूदा 30 बच्चों को इस काबिल बनाया है कि वे आत्मविश्वास और सम्मान की जिंदगी जी रहे हैं, जो बच्चे पढ़कर आगे बढ़े हैं, वे आज विविध क्षेत्रों में शोहरत कमा रहे हैं। 5 युवतियां इंजीनियर बन चुकी हैं। 2 एमएसडब्ल्यू, 2 एमकॉम, 2 बीएससी, 2 पॉलिटेक्निक, अन्य एमफिल, बीए, एमए आदि उच्च शिक्षा पाकर समाज के मुख्य प्रवाह में आ चुके हैं। अधिकांश बच्चों ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझा और इस काफिले को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। आम्रपाली उत्कर्ष संघ, विमलाश्रम घरकुल, नवीन देसाई निवासी स्कूल आज प्रख्यात हैं। सैनिक भर्ती में युवाओं को नि:शुल्क भोजन, कौशल्य प्रशिक्षण, महिला उत्थान, स्वास्थ्य जागृति आदि क्षेत्र में इन बच्चों ने सराहनीय काम किया है। राम इंगोले के नेतृत्व में प्रेमलता जाधव, विनोद कोचर, रामेश्वर भूते इस संघर्ष में मदद कर रहे हैं। समाज से उपेक्षित इन बच्चों की सहायता के लिए अब लोग आगे आने लगे हैं।
Created On :   27 April 2018 2:17 PM IST