परीक्षाओं की सूची से क्षेत्रीय भाषाओं को हटाने का विवाद गहराया, सरकार के भीतर मनभेद

Controversy deepens the removal of regional languages from the list of examinations, differences within the government
परीक्षाओं की सूची से क्षेत्रीय भाषाओं को हटाने का विवाद गहराया, सरकार के भीतर मनभेद
झारखंड परीक्षाओं की सूची से क्षेत्रीय भाषाओं को हटाने का विवाद गहराया, सरकार के भीतर मनभेद
हाईलाइट
  • भाजपा आंदोलन की रणनीति बनाने में जुटी

 डिजिटल डेस्क,रांची। झारखंड में सरकारी नौकरी की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से मगही, मैथिली, भोजपुरी और अंगिका भाषा को हटाये जाने का विवाद गहराता जा रहा है। राज्य की प्रमुख विपक्ष पार्टी भाजपा इस मुद्दे पर आंदोलन की रणनीति बनाने में जुटी है वहीं राज्य सरकार के भीतर भी इसे लेकर अलग-अलग राय है।

सरकार में साझीदार कांग्रेस के कई विधायकों का कहना है कि इन चारों भाषाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं से बाहर रखा जाना गलत है। राज्य में ये चारों भाषाएं बोलने वालों की बड़ी तादाद है जिनका समर्थन खोने से पार्टी को सियासी नुकसान तय है। राज्य सरकार के मंत्री और गढ़वा के झामुमो मिथिलेश ठाकुर ने इसे लेकर सबसे पहले मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि भोजपुरी और मगही को राज्य कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में शामिल करने पर विचार किया जाना चाहिए। कांग्रेस विधायकों ने पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात के दौरान इस मुद्दे पर उन्हें अपनी चिंता से अवगत कराया था। सीएम हेमंत सोरेन इस मुद्दे पर अब तक अडिग दिख रहे हैं। ऐसे में भाषा के सवाल पर झारखंड में आनेवाले महीनों में सियासी बवाल बढ़ना तय माना जा रहा है।

झारखंड सरकार ने वर्ष 2021 को नियुक्ति वर्ष घोषित किया है। सरकार बार-बार संकल्प जाहिर करती रही है कि राज्य में रिक्त पदों पर बड़े पैमाने पर नियुक्ति की जायेगी, लेकिन छिटपुट नियुक्तियों को छोड़ दें तो पहले कोरोना और उसके बाद नियुक्ति नियमावलियों के पेंच के चलते नियुक्ति परीक्षाएं आयोजित नहीं की जा सकी हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पिछले एक महीने से नियुक्तियों के मसले पर रेस हुए तो लगभग 20 विभागों ने नये सिरे से नियुक्ति नियमावलियां तैयार कर ली हैं और यह माना जा रहा है कि जल्द ही विभिन्न नौकरियों के लिए वैकेंसी जारी करने का सिलसिला शुरू हो जायेगा। लेकिन इसके साथ यह भी तय माना जा रहा है कि नयी नियमावलियों के अनुसार नियुक्तियों में क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में मगही, मैथिली, भोजपुरी और अंगिका भाषा के बाहर रखे जाने से पूरे राज्य में बवाल मचेगा।

झारखंड के कई ऐसे जिले हैं जहां भोजपुरी, मैथिली, मगही और अंगिका बोलनेवालों की तादाद इतनी ज्यादा है कि वे सियासी समीकरणों को प्रभावित करने की स्थिति में रहते हैं। पलामू, गढ़वा, जमशेदपुर, धनबाद और बोकारो जिलों में जहां भोजपुरी भाषियों की बड़ी संख्या है। वहीं हजारीबाग, चतरा और कोडरमा में मगही बोलने वाले खासी संख्या में हैं। इसी तरह देवघर, गोड्डा, रांची एवं अन्य जिलों में मैथिली और भोजपुरी बोलने वाले लोगों की अच्छी आबादी है। चार भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा की सूची से बाहर रखे जाने के फैसले को सियासी नफा-नुकसान के नजरिए से देखें तो यह झारखंड में सरकार की अगुवाई करनेवाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के सियासी मिजाज को सूट करता है।

झामुमो राज्य में आदिवासियों और मूलवासियों के हक के मुद्दे पर मुखर रहा है, लेकिन सरकार में शामिल दो अन्य पार्टियों कांग्रेस और राजद के लिए यह फैसला सियासी नजरिए से कतई मुफीद नहीं है। कांग्रेस ने विगत विधानसभा चुनाव में अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया था। इसके पांच से छह विधायकों को पता है कि इस मुद्दे पर जनभावनाओं ने उबाल लिया तो आगे के चुनावों में उनके लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। राजद का राज्य में मात्र एक विधायक है, लेकिन पार्टी जिस तरह से झारखंड में अपने जनाधार को बढ़ाने की कवायद में जुटी है, उसमें उसके लिए इस मुद्दे पर झामुमो के साथ खड़ा रहना संभव नहीं है।

बहरहाल, इस मुद्दे पर विरोध के स्वर अब तेज होने लगे हैं। गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सरकार के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि सीएम हेमंत सोरेन बेरोजगार युवाओं के साथ छल कर रहे हैं। बेरोजगारों के सब्र की परीक्षा ली जा रही है। उनमें निराशा है उनके पेट की आग और आह दोनों झामुमो पार्टी को समाप्त कर देगी।

जमशेदपुर के विधायक सरयू राय का कहना है कि राज्य के बड़े क्षेत्र के निवासियों के लिए मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका जैसी भाषाएं ही उनकी मातृभाषा हैं। विधि विभाग इस मसले पर सरकार को सही परामर्श दे। अन्यथा इससे अनावश्यक मुकदमेबाजी बढ़ेगी। नियोजन में राज्य के बाहर के स्कूलों से पढ़ाई के बारे में अनुसूचित और गैर अनुसूचित वर्गों में भेद करने का सरकार का निर्णय भी कानूनी तौर पर वैध नहीं। यह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन भी है। भवनाथपुर के भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही ने भी सरकार से तत्काल यह फैसला वापस लेने की मांग की है।

23 नवंबर को भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक हो रही है। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस मुद्दे पर बड़े आंदोलन की रणनीति तय हो सकती है। कुल मिलाकर झारखंड में उठा भाषा विवाद आनेवाले दिनों में बड़े सियासी बवाल में तब्दील हो सकता है।

 

(आईएएनएस)

Created On :   22 Nov 2021 9:00 PM IST

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