- Home
- /
- 35 हजार का पलायन, मतदान के दिन...
35 हजार का पलायन, मतदान के दिन इन्हें लाने की सता रही चिंता
संजय देशमुख, भैसदेही(बैतूल )। मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार का शोर आज शांत हो रहा हैं। बैतूल जिले में महाराष्ट्र- मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित भैसदेही विधानसभा क्षेत्र है। यहां भाजपा और कांग्रेस के लिए चिंता दूसरी है। इस निर्वाचन क्षेत्र में 35 हजार से अधिक लोग रोजगार के लिए महाराष्ट्र में पलायन कर गए हैं। इन मतदाताओं को मतदान के लिए गांव कैसे लाएं? इस पर दोनों दल के स्थानीय नेता चिंतन कर रहे हैं। दरअसल इस आदिवासी बाहुल्य इलाके में ग्रामीणों के घरों के चूल्हे महाराष्ट्र के भरोसे जल रहे हैं। महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित पहले गांव खोकई से लेकर मेघा, चिठ्ठाणा, कोथलकुंड, सावलमेंढ़ा, तेढ़ीइमली, काकड़पानी, उदामा, निरोगमगी, येरापुर, जिरी, डेडवा कुंड, मालेगांव। गांवों के नामों की लंबी फेहरिस्त है। जहां ग्रामीण दो जून के लिए महाराष्ट्र पर आश्रित हैं। पलायन करने वाले ग्रामीणों के दर्शन उनके सगे-संबंधियों को होली-दिपावली जैसे त्योहार में ही होते हैं। इन गांवों की बदहाली की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। अस्थायी तौर पर प्रतिदिन सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित सिरसगांव, करसगांव, अचलपुर, परतवाड़ा और दूसरे कस्बों में जा रहे हैं, जिनकी दूरी 50 किमी के दायरे में है।
महाराष्ट्र में मिलती है दोगुनी मजदूरी
पलायन के पीछे एक ठोस वजह है, गांव में काम नहीं है, अगर मिलता भी है तो दिन भर बहाए गए पसीने के बदले में सूखी रोटी ही नसीब हो सकती है। पिछले पांच साल से सूखे जैसी स्थिति है। तुअर, सोयाबीन और कपास की फसल तबाह हो रही है। खेतों को सिंचित करने के संसाधन नहीं है। कभी बारह माह बहने वाली बैतूल जिले की मेघा नदी सूखी पड़ी हुई है। जानवरों के लिए चारे की समस्या मुंह बाहे खड़ी है। कुल मिलाकर खाने के लाले पड़े हैं। बैतूल जिले में महिला मजदूर को 100 रुपए तो पुरुष को 150 रुपए मजदूरी मिल रहे हैं। महाराष्ट्र में यह मेहनताना दोगुनी से अधिक है। वहां महिला को 250 रुपए तो पुरुष को 350 रुपए तक नसीब हो रहे हैं।
विधायक रहते हैं 120 किमी दूर
भैसदेही विधानसभा क्षेत्र अनूसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है। चारों और पहाड़ों से घिरा है। भाजपा के महेन्द्र सिंह चौहान और कांग्रेस के धरमु सिंह सिरसाम के बीच मुकाबला हो रहा है। यहां कांग्रेस सबसे ज्यादा छह बार तो भाजपा पांच बार जीत दर्ज कर चुकी है। गांवों में चुनाव की कोई रौनक नजर नहीं आती है। भाजपा के विधायक महेन्द्र सिंह चौहान जीतने के बाद यदा-कदा ही नजर आए हैं। विधायक महोदय का निवास भी 110 किमी दूर दामजीपुरा गांव मेें है। समस्या बतानी है तो इतना लंबा सफर तय करना पड़ता है। चिठ्ठाणा गांव के सुनील धुर्वे, श्याम राठौड ने बताया कि 35 हजार से ज्यादा लोग इस समय गावों से बाहर है। दोनों दलों के स्थानीय नेता कह रहे हैं कि बसों का इंतजाम करते हैं, कुछ करो। यहां विधायक ने गुणाबाबा मंदिर का जीर्णोद्वार, दुर्गा मंड़ल में चौपाल तथा दरगाह में हैंडपंप लगवा देने का आश्वासन दिया था। आज तक पूरा नहीं हुआ।
घरों में सुबह ही लग जाते हैं ताले
सुबह 9 बजे के करीब कुछ गांवों में पहुंचे तो अलग ही नजारा देखने को मिला। महिला- पुरुषों के खचाखच भरी जीप और दूसरे वाहनों को देखकर आश्चर्य हुआ। जगह नहीं होने पर कुछ तो वाहनों की छत पर दुबक कर बैठे हुए थे। पूछने पता चला कि, महाराष्ट्र के सीमावर्ती शहरों में दिहाड़ी के लिए जा रहे हैं। इन मजदूरों में घर की महिलाएं-बुजुर्ग व किशोर सभी उम्र के शामिल हैं। सवारी ढोने वाले वाहन चालक रोज गांवों में जाकर ग्रामीणों को वाहनों ठूंसकर ले जाते हैं और शाम को वापस लाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। इसलिए गांवों के अधिकतर घरों में ताले लगे हुए नजर आए।
नदी किनारे बनती है कच्ची शराब
मेघा नदी के किनारे सूखी नदी का फोटो लेने पहुंचे तो कुछ लोग भट्टियों पर शराब बनाते नजर आए। कैमरे को देखते ही वहां से चले गए। बेरेसिंह कंगाले कहते हैं कि रोजगार नहीं होने से युवा इस अवैध धंधे की ओर बढ़ रहे हैं।
Created On :   26 Nov 2018 10:27 AM IST