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सामाजिक नहीं कानूनन तलाक को मंजूरी जरूरी-हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, नागपुर। सामाजिक मान्यता से पहली शादी से तलाक की दलीलें मानने से हाईकोर्ट ने साफ इंकार कर दिया। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह के मामलों में यदि तलाक लेना हो, तो कानूनन तलाक को मंजूरी मिलना जरूरी है। यदि दंपति कोर्ट से नहीं सामाजिक मान्यताओं के आधार पर अलग होते हैं, तो उन्हें कोर्ट में यह साबित करना होगा कि यह मान्यता उनके समुदाय में लंबे समय से चली आ रही है और उसे कानून जितना ही महत्व प्राप्त है। इसे आधार बनाते हुए हाईकोर्ट ने केवल सामाजिक मान्यता के आधार पर तलाक मंजूर होने की दलीलें खारिज करके पारिवारिक न्यायालय के फैसले को कायम रखा। मामला शहर के ही एक दंपति के तलाक से जुड़ा था।
बिना तलाक लिए युवती ने किया दूसरा विवाह
मधु और रवि का विवाह 24 दिसंबर 2013 को नागपुर में सिंधी रीति रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था, लेकिन विवाह के कुछ ही दिनों के अंदर दोनों में विवाद होने लगे। रवि ने मामले में दावा किया है कि उनके विवाद के पहले भी मधु का मध्यप्रदेश में पहला विवाह हुआ था। पहले विवाह से गर्भवती होने के बाद मधु ने वह बच्चा गिरा दिया था। मधु पहली शादी से तलाक भी नहीं लिया था। इस पूरे मामले की जानकारी दिए बगैर मधु के परिजनों ने उसका विवाह कराया था। ऐसे में रवि ने मधु से तलाक के लिए हिंदू मैरेज एक्ट 1955 के तहत पारिवारिक न्यायालय में अर्जी दायर की थी। 29 जून को पारिवारिक न्यायालय ने रवि और मधु का तलाक मंजूर किया था। इसके खिलाफ मधु ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
सामाजिक मान्यता से तलाक का किया दावा
मधु ने पहले तो कोर्ट में अपनी पहली शादी की बात से ही साफ इनकार किया, लेकिन बाद में हुई पूछताछ में दलील दी कि उसने बाकायदा पहले विवाह से तलाक लिया था। सिंधी समाज के तौर तरीकों से समाज के पंचों की उपस्थिति में दोनों पक्षों की सहमति से यह तलाक हुआ था।
हाईकोर्ट का निरीक्षण
मामले में कोर्ट ने निरीक्षण दिया कि समाज की मान्यताओं के आधार पर हुए तलाक की वैधता पक्षों के सकारात्मक या नकारात्मक विचार से नहीं, बल्कि कोर्ट के फैसले के मुताबिक वैध या अवैध ठहराया जाता है। इस मामले में तलाक को केवल सामाजिक परंपराओं के नहीं, बल्कि हिंदू मैरेज एक्ट 1955 के तहत तलाक को कोर्ट से मंजूरी मिलना जरूरी है। नियमानुसार यदि कोई दंपति कोर्ट के अलावा किसी अन्य सामाजिक मान्यता के आधार पर अलग होता है, तो उसे यह साबित करना होगा कि वह मान्यता लंबे समय से चली आ रही है और उसे संबंधित समुदाय में कानून के नियमों जितना ही महत्व प्राप्त है, और यह मान्यता किसी कानून का उल्लंघन नहीं कर रही है। मामले में कोर्ट ने सभी पक्षों को सुना। मधु द्वारा पर्याप्त सबूत प्रस्तुत नहीं किए गए। ऐसे में कोर्ट ने यह अपील खारिज कर दी।
Created On :   25 March 2019 11:10 AM IST