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बड़े-बुजर्गों के बाद अब बच्चों को भी संक्रमित कर रहा ब्लैक फंगस, अहमदाबाद में एक 13 साल के बच्चे में पाया गया संक्रमण
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डिजिटल डेस्क, अहमदाबाद। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच ब्लैक फंगस एक नई मुसीबत बन गई है। अब तक तो ये बड़े बुजर्गों को ही संक्रमित कर रहा था लेकिन अब बच्चों को भी इसने अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। अहमदाबाद में 13 साल के एक बच्चे में ब्लैक फंगस का मामला सामने आया है। चांदखेडा के खुशबू चिल्ड्रन अस्पताल में इस बच्चे का ऑपरेशन किया गया। इससे पहले ये बच्चा कोरोना संक्रमण से उबरा था।
बता दें कि कोरोना की दूसरी लहर में म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस वजह से कई राज्यों ने इसे महामारी घोषित किया है। गुजरात भी इसमें शामिल है। गुजरात के चार महानगरों के सिविल अस्पतालों में 1100 से ज्यादा मरीजों का इलाज चल रहा है। अकेले अहमदाबाद सिविल अस्पताल में फिलहाल 470 से ज्यादा मरीज भर्ती हैं। इसके अलावा यहां रोजाना 20 से ज्यादा सर्जरी की जा रही हैं।
क्या है म्यूकरमायकोसिस?
म्यूकरमायकोसिस एक दुर्लभ संक्रमण है। ये म्यूकर फफूंद के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है। ये फंगस हर जगह होती है। मिट्टी में और हवा में। यहां तक कि स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी ये फंगस पाई जाती है। ये फंगस साइनस, दिमाग़ और फेफड़ों को प्रभावित करती है और डायबिटीज़ के मरीज़ों या बेहद कमज़ोर इम्यूनिटी वाले लोगों के मरीज़ों में जानलेवा भी हो सकती है। म्यूकरमायकोसिस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक है।
स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल बन रही वजह
कोविड-19 के मरीजों में फफड़ों की सूजन को कम करने के लिए स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल किया जाता है। जब शरीर का इम्यून सिस्टम कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अतिसक्रिय हो जाता है तो उस दौरान शरीर को कोई नुक़सान होने से रोकने में स्टेरॉइड्स मदद करते हैं। लेकिन इससे शरीर की इम्यूनिटी कम हो जाती है। डायबिटीज़ या बिना डायबिटीज़ वाले मरीज़ों में शुगर का स्तर बढ़ा देते हैं। यही वजह है कि कोविड-19 से रिकवर हुए मरीजों को म्यूकरमायकोसिस संक्रमण हो रहा है।
क्या है म्यूकरमायकोसिस के लक्षण?
म्यूकरमायकोसिस से संक्रमित लोगों में ये लक्षण पाए जाते हैं - नाक बंद हो जाना, नाक से ख़ून या काला तरल पदार्थ निकलना, आंखों में सूजन और दर्द, पलकों का गिरना, धुंधला दिखना और आख़िर में अंधापन होना। मरीज़ के नाक के आसपास काले धब्बे भी हो सकते हैं। कई मरीज़ डॉक्टर्स के पास देर से आते हैं, तब तक ये संक्रमण घातक हो चुका होता है और उनकी आंखों की रोशनी जा चुकी होती है। ऐसे में डॉक्टर्स को संक्रमण को दिमाग़ तक पहुंचने से रोकने के लिए उनकी आंख निकालनी पड़ती है।
Created On :   21 May 2021 4:54 PM IST