मध्य प्रदेश के इस गांव में 200 साल बाद हुआ किसी का अंतिम संस्कार

After 200 years   last rites has done in this village of Madhya Pradesh
मध्य प्रदेश के इस गांव में 200 साल बाद हुआ किसी का अंतिम संस्कार
मध्य प्रदेश के इस गांव में 200 साल बाद हुआ किसी का अंतिम संस्कार

डिजिटल डेस्क नरसिंहपुर । जनपद पंचायत गोटेगांव के ग्राम चंदलोन में दाह संस्कार न करने की 200 साल से चली आ रही परंपरा कल टूट गई। यहां तमाम समझाइश और अनुनय-विनय के बाद एक 75 वर्षीय महिला की अंत्येष्ठि के दौरान दाह संस्कार की रस्म निभाई गई। उल्लेखनीय है कि यहां मृत व्यक्तियों को जमीन में दफनाने की परंपरा रही है। लगभग 200 साल से चली आ रही इस रीत के पीछे किवदंती देवीय प्रकोप बताया गया है।
समय के साथ गांव की तस्वीर जरुर बदली, लेकिन इस तथाकथित परंपरा का निर्वाह बदस्तूर जारी रहा। बुधवार को स्थानीय पंचायत पदाधिकारियों और गांव के सुधिा लोगों की पहल पर मृत बुजुर्ग महिला बैजंतीबाई पति बाबूलाल का अग्नि संस्कार कर इस पुरातन परंपरा की गांव से बेदखली कर दी गई।
समझाइश के बाद माने सभी
75 वर्षीय बुजुर्ग महिला के निधन उपरांत उनके अंतिम संस्कार को लेकर पूरे गांव में सरगर्मी रही। सरपंच बृजेन्द्र ठाकुर, सचिव नारायण चौधरी, जीआरएस प्रदीप पटेल ने गांव के लोगों को समझाया। इस दौरान ग्रामवासी रघुवीर पटेल, देवेन्द्र पटेल, केवल पटेल, रेवाराम गिरवर पटेल सहित अन्य लोगों ने इस पहल को आगे बढ़ाते हुए मृतक महिला के परिजनों को दाह संस्कार के लिए सहमत किया। फिर कही जाकर महिला का दाह संस्कार गांव के नवनिॢमत शांतिधाम में किया गया।
यह थी किवदंती
दाह संस्कार की परंपरा के पीछे गांव वालों ने बताया कि उनके यहां यह परंपरा कई पीढ़ीयों से चली आई है। उन्हें उनके बुजुर्गों ने इस संबंध में बताया था कि उनके गांव में ग्रामदेवी पंडितानी शवों का अग्नि की झार सहन नहीं कर पाती जिससे अग्नि संस्कार नहीं किया जाता। ग्रामीणों ने बताया कि लगभग दो सौ साल पहले गांव में किसी बुजुर्ग की मृत्यु पर उसका अग्नि संस्कार किया गया था इसके बाद अग्नि संस्कार करने वाले गांव लौटकर ही नहीं आए थे कि दूसरी मृत्यु हो गई। उसका अग्नि संस्कार किया और लौटने के पहले ही तीसरी मृत्यु हो गई। इस तरह मृत्यु का यह श्रृंखलाबद्ध सिलसिला लगभग एक सप्ताह तक चला जिसमें 50 से ज्यादा मौतें हुई थीं। गांव के बुजुर्गों ने अग्नि संस्कार न करने का फैसला किया था तभी से यह परंपरा जारी थी।
खुदाई में निकले थे कंकाल
लगभग 30 साल पूर्व गांव में नहर के लिए खुदाई हो रही थी, उस दौरान वहां काफी मात्रा में नर कंकाल निकले थे जिससे यह जनचर्चा का विषय बन गया था परंतु जब इस गांव की परंपरा के बारे में पता चला तो लोगों ने अंदाज लगाया कि खुदाई स्थल श्मशान घाट रहा होगा।
कोई नहीं करता था पहल
ग्राम देवी के प्रकोप के भय से दाह संस्कार की परंपरा को विराम देने की पहल कोई नहीं करता था। सभी को यह भय सताता था कि सबका यदि अग्नि संस्कार किया गया तो अनहोनी हो सकती है। अंतत: अब यह परंपरा समाप्त हो गई है और लोगों ने अनहोनी की कुशंका से राहत पाई है।

 

Created On :   15 Feb 2018 1:40 PM IST

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