मध्य प्रदेश: भारत के सपूत महाराज जीवाजीराव एम. सिंधिया

मध्य प्रदेश: भारत के सपूत महाराज जीवाजीराव एम. सिंधिया

डिजिटल डेस्क, ग्वालियर। जब भारत पर संकट बड़ा था, तब पानीपत में भगवा गाड़े मर्द मराठा खड़ा था, यह कथन सदियों से सिंधिया परिवार के दिल के अत्यंत क़रीब रहा है, आख़िर क्यों? उत्तर है, पानीपत की लड़ाई मेंअफ़ग़ानों के ख़िलाफ़ अद्भुत शौर्य दिखाया सिंधिया योद्धाओं ने, और लगभग सभी शहीद हो गए, तत्कालीन सिंधिया शाही के प्रमुख 16 साल के जनकोजीराव सिंधिया, अफ़ग़ानों द्वारा बंदी बना लिए गए, और युद्ध के एक दिन बाद अफ़ग़ानों द्वारा उनको अनेक दुखदाई वेदनाएँ देने के बाद शहीद कर दिया गया, और इसी रण मैदान सेएक लहू लोहान मराठा खड़ा हुआ, जिसने आने वाले कुछ ही साल में एक पैर से अपाहिज हो जाने के बाद भी, मुग़लों के अलग अलग समय रहीं चारों दार-उल-हुकू मतों, आगरा, फ़तहपुर सिक्री, दिल्ली और लाहौर को फ़तह कर हिंदवी स्वराज्य को फिर स्थापित कर दिया और अंग्रेजों को वडगाँव में भारी शिकस्त दी, इस मराठे का नाम था महादजी सिंधिया या माधवजी सिंधिया।

जीवाजीराव का बालपन और जवानी

अपने पूर्वजों की शौर्य के ऐसे क़िस्से पड़ पड़ कर जीवाजीराव सिंधिया बड़े हुए, जहाँ दत्ताजी राव सिंधिया का वाक्य “बचेंगे तो और लड़ेंगे!” उनको अथक परिश्रम करनेकी प्रेरणा देता था, वहीं युवा जनकोजिराव सिंधिया की शहादत उनको हार न माननेका संदेश देती थी। साबाजी सिंधिया का पेशावर पर भगवा गाड़ना और महादजी सिंधिया की दिल्ली फ़तह उनको सिंधिया परिवार की महानता की याद दिलाती थी, और अपने पिता माधो राव सिंधिया का जीवन उनको जन सेवा की सीख देता था। जीवाजी नेनिश्चय किया कि, वह भी एक महान सिंधिया शासक बन कर दिखाएंगे। उन्होंने एक ग्राम रजिस्ट्रार के रूप में अपना सिविल कैरियर शुरू किया था, पहले ही महाराज नहीं बने थे। अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने उज्जैन के शंकरपुर गाँव का सर्वेक्षण किया था, सभी चार्ट और कागजात स्वयं तैयार किए थे। और अपना सैन्य करियर जीवाजीराव ने महारानी की अपनी इन्फैंट्री में, एक रुपये महीने की कमाई पर एक सैनिक के रूप में शुरू किया था, जब वह के वल चार साल के थे। अथक परिश्रम का महत्व उनको समझाने हेतु उन के शिक्षकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

महाराज के तौर पर जीवाजीराव

जीवाजीराव सिंधिया कई मामलों में भारत के सबसे प्रगतिवादी नेताओं में से एक थे, जहाँ उनके पूर्वज जयाजीराव और माधोराव ने, रेलवे और सड़कों का तेज़ गति से विकास किया था, वहीं जीवाजीराव ने सिंधिया रियासत जो भारत की पाँच प्रमुख रियासतों में से एक थी, उसके आर्थिक विकास को पंख लगा दिए, आप सोच रहें होंगे कैसे? जवाब है नागरिक उडयन के द्वारा, जीवाजीराव उड्डयन में गहरी रुचि रखते थे, और ग्वालियर में नागरिक उडयन का विकास करने और इसे एम्पायर एयर मेल सर्विस और बंबई-दिल्ली हवाई मार्ग का जंक्शन बनाकर दुनिया के नक्शेपर लाने की उनकी इच्छा रंग लाई थी। ट्रांस-इंडिया रूट पर एम्पायर एयर मेल सर्विस में काम करने वाले सीप्लेन ग्वालियर में रुकने लगे, टाटा एयरवेज़ द्वारा बंबई ग्वालियर दिल्ली हवाई यात्रा शुरू की गई थी, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड सेभी हवाई यात्रा ग्वालियर में शुरू की गई थी, इन सब में भारी योगदान जीवाजीराव द्वारा दी गई वित्त सहायता और हवाईअड्डों (माधोसागर और महाराजपुर) के विकास का था।

शिक्षा से लेकर रोज़गार तक ग्वालियर रियासत में जीवाजीराव के राज्य में इन सभ पर ध्यान दिया जाता था, सरदार पटेल के दाहिने हाथ कहे जाने वाले अफ़सर वी. पी. मेनन जी ने अपनी किताब इं टीग्रेशन ऑफ़ द इण्डियन स्टेट्स में, जीवाजीराव की बड़ी तारीफ़ की है, उनको एक प्रगतिवादी और राष्ट्रवादी महाराज बताया है, मेनन लिखते हैं “वह (महाराज जीवाजीराव सिंधिया) प्रगतिशील दृष्टिकोण रखते हैं और अत्यंत सुखद व्यवहार करते हैं, स्वभाव से सतर्क और अपने बड़ों के प्रति सम्मान रखने वाले एक युवा व्यक्ति हैं। वह हमेशा समय के साथ चलेहैं। उन्होंने दिसंबर 1946 की शुरुआत में, जिम्मेदार सरकार (Elected government) देनेके अपनेइरादेकी घोषणा की थी, और मई 1947 में उन्होंने आसानी से लोकप्रिय प्रतिनिधियों की एक अंतरिम सरकार के साथ-साथ संविधान बनाने वाली संस्था (Constituent assembly) को अपना समर्थन दिया। वह पांच, 21 तोपों की सलामी वालेराज्यों के शासकों में एकीकरण के लिए सहमत होने वाले पहले शासक थे, एक ऐसा कदम जो देश की भलाई के अलावा किसी अन्य कारण सेप्रेरित नहीं था।”

जीवाजीराव की काफ़ी हद तक वी. पी. मेनन जैसी सराहना, जवाहरलाल नेहरू नेभी की थी, और उनकी सराहना में हिंदू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे भी पीछे नहीं थे, जीवाजीराव ने डॉ. मुंजे की भोंसला मिलिट्री अकै डमी नासिक बनाने में सहायता की थी। जहाँ सरदार पटेल महाराज जीवाजीराव सिंधिया के दोस्त थे वहीं जन संघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मेज़बानी भी ग्वालियर में जीवाजीराव सिंधिया महाराज ने की थी। सरदार पटेल की मृत्योपरांत उनकी तस्वीर अपने पैसों से बनवा भारतीय संसद को जीवाजीराव सिंधिया ने ही भेंट की थी।

मध्य भारत के राज प्रमुख के तौर पर जीवाजीराव

जीवाजीराव ने जिस प्रकार अपने मित्र सरदार पटेल की, केवल मध्य भारत के ही नहीं, अन्य रजवाड़ों को भी भारत में जोड़ने में मदद की थी, उससे सरदार को यह पता चल गया था, की राष्ट्रवादी महाराज जीवाजीराव मध्य भारत के पहले राज प्रमुख बनाए जाते हैं, तो यह भारत के हित में होगा। मध्य भारत राज्य 28 मई 1948 को बनाया गया और महाराज जीवाजीराव सिंधिया को इसका राज प्रमुख बनाया गया, जिन्होंने एक राज आज्ञा द्वारा लीलाधर जोशी को पप्रीमियर नियुक्त किया, उस समय कैबिनेट में प्रीमियर संग 11 मंत्रियों की नियुक्ति महाराज जीवाजीराव सिंधिया ने की थी। न केवल जीवाजीराव ने मध्य भारत की सेवा की अपितु, 1950 में असम में भूकंप और उसके बाद आई बाढ़ के पीड़ितों की मदद के लिए 'राजप्रमुख असम राहत कोष' की स्थापना की थी, मध्य भारत के राजप्रमुख के रूप में। आज़ाद भारत की सरकार को सभी महराजाओं में से सबसे ज़्यादा आर्थिक सहायता महाराज जीवाजीराव सिंधिया ने की थी, और देश के आर्थिक विकास हेतु अपनी कई ज़मीनें और महल भारत सरकार को दे दिए। अपने वीर पुरखे “द ग्रेट मराठा” महादजी सिंधिया से प्रभावित जीवाजीराव सिंधिया भारत माता के महान सपूत थे उन्हें हमारा कोटि कोटि नमन।

लेखक:

अरुणांश बी. गोस्वामी

प्रमुख, सिंधिया शोध केंद्र

जल विलास महल, ग्वालियर (मध्यप्रदेश)

Created On :   23 Jun 2023 1:22 PM GMT

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