सम्मान: अब जगी है उम्मीद , मोदी ही बना सकते हैं अनाथ-लावारिस बच्चों के लिए कानून
- पद्मश्री पुरस्कार लेने दिल्ली पहुंचे हैं शंकरबाबा पापलकर
- लावारिस बच्चों के संबंध में कानून बनाने की कर रहे हैं मांग
- अनाथों के नाथ से पहचाने जाते हैं पापलकर
डिजिटल डेस्क,, नई दिल्ली । खादी का सफेद कुर्ता-पजामा और पैरों में रबड़ की चप्पल पहने शंकरबाबा पापलकर बुधवार को अपने दो विकलांग बच्चों के साथ पद्म पुरस्कार लेने दिल्ली पहुंचे। इस दौरान उन्होंने पिछले छह साल से लगातार पद्म पुरस्कार ठुकराने और इस साल इसे स्वीकारने के पीछे की वजह दैनिक भास्कर के साथ साझा की। शंकरबाबा पापलकर ने कहा कि लावारिस बच्चों के संबंध में जिस कानून को बनाने की मांग वह कई दशकों से कर रहे हैं, उसे अब वे पूरा होते देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह काम सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं।
मानसिक रूप से विकलांग सैकड़ों बच्चों के पिता शंकरबाबा पापलकर ने कहा कि सरकार 18 साल की आयु तक के अनाथ बच्चों को रिमांड होम में रखती है। उसके बाद उन्हेंं बाहर कर देती है। देश में हर साल 1 लाख से अधिक अनाथ बच्चों को लावारिस छोड़ दिया जाता है और यह सिलसिला पिछले कई दशकों से चल रहा है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि इतनी बड़ी संख्या में लावारिस बच्चे कहां जाते होंगे और क्या करते होंगे? लिहाजा मेरी मांग है कि सरकार इन बच्चों की देखभाल आजीवन करे। अब दशकों पुरानी यह मांग पूरी होने की उम्मीद जगी है, क्योंकि इस संबंध में उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और भाजपा नेता सुनील देवधर ने भी आश्वस्त किया है। शंकरबाबा कहते हैं कि उन्हें भरोसा है कि प्रधानमंत्री मोदी ही इस मांग को पूरा कर सकते हैं। वे कहते हैं कि यदि नरेंद्र मोदी ने इस मांग को पूरा कर दिया तो वे उन तमाम अनाथ और लावारिस बच्चों के आर्शीवाद से फिर अगले 15 वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं।
बाबा के दो विकलांग बच्चे बनेंगे गवाह : शंकरबाबा पद्म पुरस्कार स्वीकार करने के लिए अपने परिवार के दो सदस्यों को साथ लाए हैं। इनमें एक 25 वर्षीया गांधारी पापलकर और दूसरा बहु विकलांग 25 वर्षीय योगेश पापलकर शामिल हैं। गांधारी को दोनों आंखों से दिखाई नहीं देता, लेकिन वह अचलपुर के सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काउंसिलिंग का काम करती है। गांधारी संगीत विशारद भी है। गांधारी ने कहा कि बाबा को पद्म पुरस्कार मिलने की खुशी वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती। आंखों से दिखाई नहीं देने के बावजूद वह अपने बाबा को पुरस्कार स्वीकारते कैसे देखेगी, यह पूछने पर वह कहती है कि जब पुरस्कार देने के लिए मेरे बाबा का नाम पुकारा जाएगा तो उसे पता चल जाएगा और तब वह दोनों हाथों से तालियां बजाएगी।
अंबादासपंत वैद्य बालगृह के संस्थापक शंकरराव पापलकर अपने इस पुणित कार्य में दैनिक भास्कर के योगदान का जिक्र किए बिना नहीं रहे। वे बताते है कि इस समय उनके बालगृह में 123 विकलांग बच्चे है, जिनमें 93 लड़कियां है। बालगृह चलाने के लिए वह सरकार से किसी तरह की सहायता नहीं लेते। उन्होंने बताया कि सैंकडों बच्चों का उन्होंने न केवल आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र बनवाए, बल्कि जनधन खाते भी खुलवाए हैं, जिनमें उनके पिता का नाम शंकरबाबा पापलकर दर्ज है। 30 बच्चों की शादियां करवाई है।
Created On :   8 May 2024 7:55 PM IST