गजेटियर में छिंदवाड़ा: अयोध्या के हाथी व्यापारी ने बसाया छिंदवाड़ा, आजादी के पहले नागपुर संभाग का था हिस्सा

अयोध्या के हाथी व्यापारी ने बसाया छिंदवाड़ा, आजादी के पहले नागपुर संभाग का था हिस्सा
  • सिवनी और बैतूल का बड़ा हिस्सा भी था छिंदवाड़ा में शामिल
  • साल 1931 से पहले सिर्फ तीन तहसीलें थी छिंदवाड़ा में
  • प्राकृतिक सुंदरता ने हर किसी को अपनी ओर मोहित किया

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे महानगरों के बाद आज छिंदवाड़ा का नाम मध्यप्रदेश के सबसे समृद्ध जिलों में शामिल है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता ने हर किसी को अपनी ओर मोहित किया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अयोध्या के एक हाथी व्यापारी ने छिंदवाड़ा बसाने की नींव रखी थी? यहां मौजूद सागौन के जंगल, कोयले के भंडार ने अंग्रेजों को अपनी ओर आकर्षित किया और ब्रिटिश काल में छिंदवाड़ा के विकास की शुरुआत हुई।

1907 और 1960 में आए गजेटियर में छिंदवाड़ा के जन्म से जुड़ा इतिहास सामने आया है। जिसमें बताया गया है कि फैजाबाद-अयोध्या से आए हाथी व्यापारी रतनसिंह रघुवंशी ने यहां के गौली प्रमुख को हराकर छिंदवाड़ा की स्थापना की थी।

1834 में नागपुर राज्य के विलय पर छिंदवाड़ा जिला बना। यह पहले नागपुर संभाग का हिस्सा था। लेकिन 1931 में सिवनी जिले के विलय के बाद ये नर्मदा संभाग में स्थानांतरित हो गया। 1948 में कमिश्नर डिवीजन के उन्मूलन तक छिंदवाड़ा नागपुर संभाग में बना रहा। 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद छिंदवाड़ा जबलपुर संभाग का हिस्सा बना। इसके पहले सिवनी और बैतूल का बड़ा हिस्सा भी छिंदवाड़ा में ही शामिल था।

शुरुआत में सिर्फ दो तहसीलें थी छिंदवाड़ा में

कभी छिंदवाड़ा में सिर्फ दो तहसीलें हुआ करती थी, वो छिंदवाड़ा और सौंसर थी। 1917 में अमरवाड़ा तहसील का गठन किया गया। 1951 में सिवनी जिले के उन्मूलन और इसके छिंदवाड़ा जिले में विलय के कारण सिवनी और लखनादौन तहसील इसका हिस्सा बन गई। 1956 में सिवनी जिले के पुनर्गठन तक जिले में पांच तहसीलें हुआ करती थी।

नाम को लेकर अलग-अलग दावा

छिंदवाड़ा नाम को लेकर अलग-अलग दावे किया जाते हैं। जिले के इतिहासकार मानते हैं कि छिंदवाड़ा में छिंद के पेड़ अधिक होने के कारण इसका नाम छिंदवाड़ा रखा गया। हाल ही में 1960 के गजेटियर का हिंदी अनुवाद मोहित सूर्यवंशी द्वारा किया गया। गजेटियर में जिक्र है कि पहले दौलतराव सिंधिया के यहां रहने के कारण इसे ‘सिंदवाड़ा’ कहा गया। जिसे बाद में छिंदवाड़ा में बदल दिया गया। ‘वाड़ा’ शब्द मराठा काल में प्रचलित था।

ब्रिटिश काल में छिंदवाड़ा, यहां क्यों आकर्षित हुए अंग्रेज

- छिंदवाड़ा की प्राकृतिक सुंदरता आज की तरह पहले भी मनमोहक थी। सतपुड़ा के घने जंगलों के अलावा यहां प्राकृतिक जलस्त्रोतों ने अंग्रेजों को आकर्षित किया। तामिया के अलग-अलग क्षेत्र इसका बड़ा उदाहरण है। अंग्रेजों द्वारा इस दौरान यहां जगह-जगह गेस्ट हाऊस भी बनाए गए।

- कहा जाता है कि छिंदवाड़ा में उच्च प्रजाति के सागौन के पेड़ थे। जिसमें सिल्लेवानी और पातालकोट जैसे क्षेत्र में सागौन की बेहतर प्रजातियां पाई जाती थी। ब्रिटिश काल में रेल निर्माण कार्य शुरु हुआ। इस दौरान रेल पटरियों को बिछाने में सागौन की लकड़ियों का उपयोग होता था।

-ब्रिटिश काल के दौरान कोयलांचल से कोयला निकालना शुरु कर दिया गया था। रेल पटरियों का निर्माण भी यहां के कोयला को परिवहन करने के लिए सर्वप्रथम किया गया। कोयले जैसे खनिजों का भरपूर भंडार होने के कारण छिंदवाड़ा का सड़क, रेल जैसे मार्गों का निर्माण भी ब्रिटिश काल में शुरु कर दिया गया था।

Created On :   23 July 2024 4:52 AM GMT

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