यूपी की सियासत: बीजेपी पूरा करेगी मायावती का एक दशक पुराना सपना? रालोद प्रमुख जयंत और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की बढ़ सकती हैं मुश्किलें!
- यूपी की सियासत में नए मुद्दे की एंट्री
- बीजेपी सांसद ने यूपी से अलग राज्य बनाने की मांग की
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए एक बार फिर उत्तर प्रदेश को बंटाने की बात उठने लगी है। केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता संजीव बालियान ने रविवार (1 अक्टूबर) को एक जनसभा को संबोधित किया। जिसमें उन्होंने कहा कि वह यूपी के पश्चिम प्रदेश यानी पश्चिमांचल की मांग का खुलेतौर पर समर्थन करते हैं। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि अगर यूपी का पश्चिमी क्षेत्र अलग राज्य बनता है तो उसकी राजधानी मेरठ होगी।
फिलहाल उत्तर प्रदेश चार हिस्सों में पूर्वांचल, पश्चिमांचल, बुंदेलखंड और अवध प्रदेश में बंटा हुआ है। बालियान की मांग से पहले भी यूपी से अलग राज्य बनाने की मांग की जा चुकी है। साल 2011 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार यूपी में थी। तब की मुख्यमंत्री मायावती ने इस मामले को विधासनभा में पेश किया था, जो ध्वनिमत के साथ पारित भी हो गया था। जानकारी के लिए बता दें कि, बसपा के इस प्रस्ताव का कोई खास असर नहीं देखने को मिला क्योंकि राज्यों के बंटवारे में अहम भूमिका संसद और केंद्र सरकार की होती है। बसपा सुप्रीमो को उस समय न हीं केंद्र और न ही संसद का साथ मिला था।
मायावती भी कर चुकी हैं समर्थन
मायावती सरकार के इस फैसले को समाजवादी पार्टी ने खुलेतौर पर विरोध किया और उस समय सपा का कहना था कि यूपी को बंटना किसी शर्त पर समाजवादी पार्टी नहीं सहेगी। सपा ने मायावती के इस फैसले को सिरे से नकार दिया था। लेकिन कांग्रेस और बीजेपी ने कभी खुलकर इस बात का विरोध नहीं किया। कहा जाता है कि दोनों ही पार्टियां दबे जुबान से ही सही कहीं न कहीं मायावती के साथ थी। इसके अलावा साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी से एक अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर जब सीएम योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि, हम तोड़ने नहीं बल्कि जोड़ने में विश्वास रखते हैं।
पश्चिमी यूपी में कुल 26 जिले
भाजपा सांसद संजीव बालियान के बयान को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। साथ ही इनके बयान से सियासी रार छिड़ने की संभावना भी जताई जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस बयान को लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनाया जा सकता है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने हिसाब से इस मुद्दे पर बैटिंग कर सकते हैं। पश्चिमी यूपी में कुल 26 जिले आते हैं। जिनमें मेरठ, बुलन्दशहर, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, हापुड, बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, मोरादाबाद, बिजनोर, रामपुर, अमरोहा, संभल, बरेली, बदायूँ, पिलीभीत, शाहजहाँपुर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, मथुरा, अलीगढ, एटा, हाथरस, कासगंज, इटावा, औरैया और फर्रुखाबाद शामिल हैं।
लोकसभा सीट को लेकर पश्चिमी यूपी बेहद ही खास
लोकसभा सीट के तौर पर पश्चिमी यूपी में देंखे तो उनमें शाहजहांपुर, बरेली, बदायूं, अमरोहा, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, संभल, सहारनपुर, रामपुर, पीलीभीत, नगीना, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, मेरठ, मथुरा, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी, कैराना, हाथरस, फिरोजाबाद, फर्ररुखाबाद, फतेहपुर सीकरी, इटावा, बुलंदशहर, बिजनौर, बागपत, अमरोहा, आंवला, अलीगढ़ और आगरा शामिल है।
बीजेपी का क्या है प्लान?
लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिमी यूपी का मुद्दा उछलना राजनीतिक तौर पर कोई छोटी बात नहीं है। कहा जा रहा है कि, यह मुद्दा सपा, रालोद के साथ बसपा को भी मुश्किलें में डाल सकती है। पिछले आम चुनाव की बात करे तो बीजेपी पश्चिमी यूपी के सात सीटों पर हार गई थी। जिनमें सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद और रामपुर की सीट शामिल थी। सियासत को सही तरह से समझने वालों का कहना है कि, बीजेपी इस मुद्दे को उठाकर वेस्ट यूपी में अपना जादू चलना चाहती है।
सपा, बसपा और रालोद की नई टेंशन!
इन सबके अलावा यूपी की सियासत पर नजर रखने वालों का यह भी कहना है कि यह मामला पश्चिमी यूपी से जूड़ा हुआ है। ऐसे में रालोद और पार्टी प्रमुख जयंत चौधरी बीजेपी के खिलाफ नहीं जा सकते हैं। जबकि मायावती सरकार में यूपी के बंटवारे के खिलाफ रही सपा, रालोद के साथ है। अगर वो इस चीज का विरोध करती है तो दोनों पार्टियों में गतिरोध बढ़ सकता है जिसका नतीजा गठबंधन पर सीधे तौर पर पड़ेगा। साथ ही बसपा के सामने भी बड़ी मुसीबत आ सकती है क्योंकि कभी उसने भी विधानसभा में विधेयक लाकर यूपी से एक अलग राज्य बनाने की मांग की थी।
Created On :   2 Oct 2023 12:34 PM IST