दिल्ली चुनाव नतीजा 2025: जनता क्यों हुई कमल का बटन दबाने पर 'मजबूर', केजरीवाल को दिल्ली से 'अनसब्सक्राइब' करने की जानें पांच बड़ी वजह

- बीजेपी को राज्य में मिली प्रचंड जीत
- नतीजे में बाद आप दिल्ली की सत्ता से बाहर
- कांग्रेस को फिर नहीं मिली एक भी सीट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। बीजेपी राज्य में प्रचंड जीत हासिल की है। राज्य में बीजेपी को 48 सीटें मिली हैं। इसी के साथ पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी दस सालों से चली आ रही सत्ता 8 फरवरी को खत्म हो गई। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि आम आदमी पार्टी अपने घर में कैसे चुनाव हार गई।
केजरीवाल लगातार अपनी पुरानी योजनाओं को लेकर दिल्ली में प्रचार कर रही थी। लेकिन दिल्ली की जनता को केजरीवाल की टीम इस बार लुभाने में विफल रही। बता दें कि, पिछले चुनाव में बीजेपी को 8 सीटें मिली थीं। लेकिन इस बार बीजेपी ने 48 सीटों पर जीत हासिल कर ली है। वहीं, 62 सीटों वाली आप 22 पर आकर अटक गई है।
ऐसे में सवाल उठता है कि लगातार दस साल से दिल्ली की सत्ता में काबिज रहने वाली आम आदमी पार्टी को इतनी बड़ी हार का सामना कैसे करना पड़ा? साथ ही, वह कौन से मुद्दे रहे जिस पर केजरीवाल और उनकी पार्टी घिरती चली गई। इसके अलावा विपक्ष के वे कौन से मुद्दे रहे जिन पर उसे वोट मिले हैं?
एंटी इंकम्बेंसी बना बड़ा फैक्टर
आम आदमी पार्टी की सरकार बीते दस साल से दिल्ली में रही। ऐसे में एंटी इंकम्बेंसी भी आम आदमी पार्टी के हार का बड़ा कारण रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर भले ही पार्टी ने बेहतर प्रचार कर अपना जनदेश बचाने की कोशिश की। लेकिन खराब एयर क्वॉलिटी और यमुना का प्रदूषित पानी को विपक्ष ने चुनावी मुद्दा बनाया। वहीं, विपक्षी पार्टी बीजेपी ने शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर यथास्थिति बनाए रखने की बात की। जिसके चलते वोट बैंक बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ। केजरीवाल ने लगातार बीजेपी पर आरोप लगाया कि केंद्र सरकार उन्हें काम करने नहीं दे रही है। ऐसे में जनता 'बहाने' की बजाय बीजेपी का बटन दबाना सही समझा।
शराब और 'शीशमहल' मुद्दे पर घिरते चले गए केजरीवाल
पिछले दो चुनाव में केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी या फिर अन्य विपक्षी पार्टी के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। जिसके चलते भी केजरीवाल अपने अच्छे काम को बताकर जनता के वोट बैंक पर सेंधमारी लगाने का कामयाब रहे। केजरीवाल की राजनीति शुरू के सात-आठ सालों में साफ-सुथरे नेता के तौर पर रही। जिसके बाद बीते दो-तीनों सालों में बीजेपी ने केजरीवाल के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार पर जमकर प्रहार किया। केजरीवाल पर आरोप लगे कि वे और उनके मंत्री ने शराब घोटाला किया है। जिसके बाद केजरीवाल और उनके मंत्री का गिरफ्तार होना भी जनता के बीच AAP के खिलाफ खराब माहौल बना दिया।
आबकारी नीति से जुड़ा कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस भी बड़ी वजह रही है कि केजरीवाल इस चुनाव में हार गए। बीजेपी ने आरोप लगाया था कि AAP सरकार दिल्ली को 'शराबियों का शहर' बनाना चाहती है। इस पूरे मामले में अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह और मनीष सिसोदिया के अलावा पार्टी के अन्य बड़े नेता गिरफ्तार हुए। जिसके चलते पार्टी का बैकबोन कमजोर हुआ। इसके अलावा 'शीशमहल' मुद्दा (केजरीवाल का घर) अरविंद केजरीवाल की इमेज पर डेंट लगाया। केजरीवाल के महंगे आवास पर जमकर सियासत हुई।
रेवड़ी की बौछार, फिर भी कैसे हुई हार?
फ्री बिजली, फ्री पानी, महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा की शुरुआत करने वाले केजरीवाल के इन वादों से आम लोग ऊब चुके थे। जनता नए चीज की तलाश में दिख रही थी। ऐसे में बीजेपी ने एक के बाद एक कई वादे किए। साथ ही, बीजेपी ने आम आदमी पार्टी की चली आ रही फ्री योजना को भी जारी रखने का वादा किया। जिसके चलते भी जनता बीजेपी की ओर शिफ्ट हुई। बीजेपी ने आप के सभी वादों को अपने घोषणा पत्र में कट-कॉपी-पेस्ट किया। इसके अलावा बीजेपी ने अपनी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, सड़कों और सीवरों की खराब हालत को मुद्दा बनाया।
आप में बड़े नेताओं की बगावत
इस बार चुनाव से पहले ही बीजेपी आप के हर नाराज नेताओं पर नजर रख रही थी। मौका मिलते ही पार्टी ने आप के सभी नाराज नेताओं को अपनी टीम में शामिल कर लिया। जनवरी महीने के आखिरी सप्ताह में आप के आठ मौजूदा विधायक बीजेपी में शामिल हुए। जिसके चलते माहौल बीजेपी को लेकर बना। बता दें कि, कैलाश गहलोत भी चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे। कैलाश आप के बड़े नेता थे।
कांग्रेस के साथ करना था AAP को गठबंधन
दिल्ली में आप को कांग्रेस के साथ गठबंधन कर ही लेना चाहिए। ऐसा चुनावी नतीजों से भी पता चल रहा है। आप के कई बड़े नेताओं की हार बड़ी वजह कांग्रेस बनी है। खुद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया कांग्रेस उम्मीदवार को मिले वोट के चलते हारे हैं। बता दें कि, कांग्रेस भले ही एक भी सीट पर नहीं जीत पाई। लेकिन उसने आप को 10 से 15 सीटों पर हराने में अहम भूमिका निभाई है। अगर गठबंधन होता तो दिल्ली की जनता के बीच बेहतर संदेश जाता। लोकसभा चुनाव के दौरान आप और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था। जिसके बाद विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां का अलग-अलग चुनाव लड़ना भी जनता के बीच गलत संदेश गया। इसके अलावा केजरीवाल और राहुल गांधी के बीच जुबानी जंग ने इंडिया गठबंधन पर भी सवाल खड़े किए। दोनों नेताओं की खुलकर लड़ाई सामने आने के चलते भी जनता ने दूसरे विकल्प पर भरोसा जताया।
Created On :   8 Feb 2025 9:05 PM IST