मध्य प्रदेश में अन्य दलों के दस्तक से बीजेपी और कांग्रेस में किसे होगा नफा-नुकसान?
- एमपी में बीजेपी और कांग्रेस के सामने नई 'संकट'
- नई दलों की एंट्री से किसे होगा नफा-नकुसान?
- प्रदेश की सियासत में नए दलों का बढ़ता दबदबा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस लगातार तैयारियों में जुटी है। लेकिन इन दोनों पार्टियों के लिए नई चुनौती बनी हुई है। चुनौती प्रदेश में अन्य पार्टियों का बढ़ता दबदबा है। जिसका वजूद पहले एमपी में नहीं था। इस लिस्ट में आम आदमी पार्टी (आप), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जैसे राजनीतिक दल शामिल हैं। इन सभी के अलावा बसपा और सपा की भी नजर एमपी पर बनी हुई है। उत्तर प्रदेश से सटे एमपी क्षेत्र में इन दोनों पार्टियों का दबदबा बहुत ज्यादा है। ये सभी दल अगर चुनावी मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी और कांग्रेस को नुकसान होना तय माना जा रहा है। लेकिन ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा। आंकड़े भी इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं।
कांग्रेस के सामने 'एआईएमआईएम' चुनौती
2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में मुसलमानों की अबादी 6.6 फीसदी है। एआईएमआईएम पिछले साल निकाय चुनाव के जरिए एमपी की राजनीति में पहली बार दस्तक दी है। इस दौरान पार्टी ने राज्य की कुछ पार्षद सीटों पर जीत हासिल की। जिसके बाद से ही पार्टी नेताओं के हौसले बुलंद है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी मप्र की चुनिंदा सीटों पर अपने प्रत्याशी को उतारने की तैयारी में लगे हुए हैं। ओवैसी की नजर राज्य के मुस्लिम बहुल इलाकों पर है। ऐसे में पार्टी अगर अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारती है, तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस पार्टी को होगा। क्योंकि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास मुस्लिम वोटर का एक बहुत बड़ा जनाधार है। राज्य में ज्यादातर मुस्लिम वोटर्स कांग्रेस को ही वोट करते आ रहे हैं।
राज्य के बड़े शहरों भोपाल, इंदौर, जबलपुर के अलावा राऊ-महू जैसे कस्बाई क्षेत्र में भी अल्पसंख्यकों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन सभी के अलावा राज्य में दो दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक समुदाय के 30 से 40 हजार वोटर्स हैं। मोपाल मध्य में 1.11 लाख, भोपाल उत्तर 87 हजार, बुरहानपुर में 96 हजार, जबलपुर पूर्व 77 हजार, इंदौर-5 में 69 हजार, नरेला 68 हजार और रतलाम में 51 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं।
3 दर्जन सीटें ऐसी है जहां मुस्लिम वोटर्स निर्णायक साबित होते है। फिलहाल इन सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस की स्थिति बराबर है। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो तब इन 33 सीटों में से 18 बीजेपी और 15 कांग्रेस के पास रही। लेकिन निकाय चुनाव के नतीजे से ये दोनों दल प्रभावित है। क्योंकि निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने बुरहानपुर और उज्जैन में कांग्रेस के समीकरण को बिगाड़ दिया।
कांग्रेस और बीजेपी के सामने 'आप' बनी मुसीबत
पिछले साल निकाय चुनाव में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन के करने के बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के भी हौसले बुलंद हैं। बीते साल केजरीवल ने मप्र की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। हालांकि आप की प्रदेश इकाई ने बताया कि फिलहाल पार्टी राज्य के शहरी क्षेत्र में ही चुनाव लड़ेगी। केजरीवाल की पार्टी ने पिछले साल के निकाय चुनाव में सिंगरौली महापौर के सीट पर अपना कब्जा जमाया है। साथ ही पार्टी ने राज्य के 17 पार्षद सीटों पर जीत हासिल किया है। पार्टी यदि केवल शहरी क्षेत्र में ही अपने प्रत्याशी को उतारती है तो बीजेपी और कांग्रेस के जनाधार में सेंध लगना तय माना जा रहा है। इसका नुकसान भी राज्य की दो प्रमुख पार्टियों को ही होगा। कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी पहले से संकट के तौर पर रही है। पहले दिल्ली और उसके बाद पंजाब में कांग्रेस को 'आप' से ही झटका लगा है। इसलिए कांग्रेस भी 'आप' के हर एंगल पर काम कर रही है।
'बीआरएस संकट'
भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के अध्यक्ष एवं तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की भी नजर हिंदी बेल्ट वाले राज्यों पर है। बीआरएस पार्टी एमपी में दस्तक दे चुकी है। पार्टी अपने हिसाब से क्षेत्र के प्रमुख नेताओं को टारगेट कर रही है। जिसमें पार्टी ने कामयाबी भी हासिल की है। इनमें रीवा के पूर्व सांसद बुद्धसेन पटेल (भाजपा), सतना (सपा) के धीरेंद्र सिंह, पूर्व विधायक डॉ. नरेश सिंह गुर्जर (बसपा), सतना जिला पंचायत के सदस्य विमला बारी के अलावा अन्य नेता शामिल हैं। अगर पार्टी इन नेताओं के साथ राज्य की सियासत में पूरी ताकत के साथ उतरती है तो चुनावी समीकरण और भी ज्यादा दिलचस्प हो जाएगा।
Created On :   8 Jun 2023 6:00 PM IST