कोटे के अंदर कोटा: केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एससी-एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई असहमति, पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की कही बात

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एससी-एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई  असहमति, पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की कही बात
  • सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार करने की कही बात
  • सुप्रीम कोर्ट ने दलितों का जीवन नहीं जिया-सांसद आजाद
  • आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाला जाए-मायावती

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अनुसूचित जाति और जनजाति आरक्षण मामले में कोटे के अंदर कोटा के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने असहमति जताई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल करने की बात कही है।

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एससी एसटी में क्रीमी लेयर के बारे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर कहा, "सुप्रीम कोर्ट की जो ऑब्जरवेशन है उस पर हमारी भी असहमति है और इस असहमति को हमने प्रमुखता से दर्ज किया है। इस बात से हम स्पष्ट हैं कि अनुसूचित जाति का आधार छुआछूत है। इसका शैक्षणिक या आर्थिक आधार नहीं है। ऐसे में इसमें क्रिमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं हो सकता क्योंकि आज भी उदाहरण एक दलित युवक का दिया जाता है जिसे घोड़ी चढ़ने से रोका जाता है। कई ऐसे बड़े नाम हैं, जो बड़े पदों पर हैं लेकिन उनके भी मंदिर में जाने के बाद मंदिर को गंगा जल धुलवाया जाता है तो आज भी भेदभाव छुआछूत के आधार पर होता है। हम यानि लोजपा(रामविलास) इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल करने वाली है।

इससे पहले नगीना से आजाद समाज पार्टी कांशीराम के सांसद चंद्रशेखर आजाद सर्वोच्च अदालत के फैसले पर भड़के ,सांसद आजाद ने कहा फैसले देने वाले शीर्ष कोर्ट के जजों में कितने दलित जज थे। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने दलितों का जीवन नहीं जिया है। कोर्ट का ये फ़ैसला संविधान के ख़िलाफ़ है। सुप्रीम कोर्ट आरक्षण ख़त्म करना चाहता है। उन्होंने ये सब एक इंटरव्यू के दौरान कही जिसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर रिपोस्ट किया है। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। जितनी चिंता हमें हैं अपने SC-ST समाज की उतनी इन सरकारों को नहीं है। और जो लोग हाशिये पर है वो इनकी वजह से हैं।

वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने कहा सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक़ उत्पीड़न कुछ भी नहीं। क्या देश के ख़ासकर करोड़ों दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का हो पाया है। अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित?देश के एससी, एसटी व ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों/सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है सुधारवादी नहीं। वे इनके सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं वरना इन लोगों के आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की गयी होती।

Created On :   4 Aug 2024 12:07 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story