एमपी चुनाव 2023: केंद्रीय मंत्री व सांसद सहित कांग्रेस के मौजूदा विधायकों की दांव पर प्रतिष्ठा
- 17 नवंबर को एमपी में होंगे विधानसभा चुनाव
डिजिटल डेस्क, नरसिंहपुर। नर्मदा पट्टी के इस कृषि प्रधान जिले में भाजपा ने कांग्रेस के कब्जे की 4 में से 3 सीटें छीनने तथा अपने कब्जे वाली नरसिंहपुर सीट को बचाने बड़ा दांव खेला है। उसने केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल तथा सांसद राव उदयप्रताप को भी मैदान में उतारा है। गोटेगांव में चिर परिचित चेहरे महेन्द्र नागेश को पहली बार तथा तेंदूखेड़ा में विश्वनाथ सिंह ‘मुलायम भैया’ को दोबारा अवसर दिया है। इसके इतर जिले में दूसरी पंक्ति बनाने की कोशिशों में जुटी कांग्रेस ने पुराने चेहरे यानि तीनों मौजूदा विधायक एनपी प्रजापति ,संजय शर्मा तथा सुनीता पटेल और नरसिंहपुर सीट पर पिछला चुनाव हारे लाखन सिंह पटेल पर ही दांव खेला है। जीत और अपने संगठन के भरोसे पर खरा उतरने का दबाव सभी प्रत्याशियों पर है लेकिन प्रह्लाद, उदयप्रताप, एनपी, संजय और सुनीता पर ज्यादा है। दबाव के साथ इन सभी के सामने कई चुनौतियां भी हैं जो इस बार मुकाबले को और कड़ा बनाए हुए हैं।
जानें कहां कैसा है मुकाबला
नरसिंहपुर : कद और बढ़ाने का चुनाव
2,32,324 मतदाताओं वाली नरसिंहपुर सीट पर दो पटेलों के बीच अपना कद और बढ़ाने का चुनाव है। भाजपा विधायक जालम सिंह की जगह उनके बड़े भाई दमोह सांसद तथा केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल का इस सीट पर पहला चुनाव है। महाकोशल व बुंदेलखंड सहित प्रदेश की अन्य सीटों पर लोधी तथा ओबीसी वोट पार्टी प्रत्याशियों की तरफ कर उन्हें जिताने की मुहिम में भी ये जुटे हैं। इनके मुकाबले कांग्रेस ने किसान नेता लाखन सिंह पटेल पर दोबारा दांव खेला है। इस प्रत्याशा में कि 2018 में उन्होंने कांग्रेस का वोट परसेंट करीब 16 फीसदी बढ़ाया था, उसमें वृद्धि करते हुए चुनाव जीत लेंगे। इस सीट पर 8 और प्रत्याशी हैं लेकिन पूरा मुकाबला आमने-सामने का है।
चुनौतियां
प्रह्लाद पटेल : एंटी इनकम्बेंसी के बीच 2013 से 2018 के बीच भाजपा का गिरा 7 प्रतिशत वोट रिकवर करना।
लाखन सिंह : आपस में सामंजस्य की कमी। रणनीतिक रूप से और चुनावी प्रबंधन में भी अपेक्षाकृत कमजोर।
गोटेगांव : बगावत से मुकाबला हुआ त्रिकोणीय
जबलपुर की सीमा से सटी 2,16,715 मतदाताओं वाली अजा वर्ग के लिए आरक्षित गोटेगांव सीट पर कांग्रेस मैदान में उतरने से पहले ही अंर्तद्वंद का शिकार हो गई। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने टिकट कटने को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया और संगठन को फैसला बदलने मजबूर कर दिया। नतीजन, कांग्रेस से पहले टिकट पाने वाले शेखर चौधरी बागी हो गए और निर्दलीय आ डटे। जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। शेखर पहले भाजपा में थे। 2008 में वे एनपी के खिलाफ चुनाव भी लड़े और हारे थे। भाजपा के नागेश का यह पहला चुनाव है। उन्हें इस उम्मीद में उतारा है कि वह पिछली बार का 12,583 वोटों का अंतर पाटते हुए यह सीट फिर से पार्टी की झोली में ला देंगे। अस्वस्थ एनपी प्रजापति को अपनी शारीरिक व राजनीतिक सेहत सहित प्रतिद्वंदियों से भी लडऩा पड़ रहा है।
चुनौतियां
एनपी प्रजापति : हर बार परिणाम बदलने के चक्र को तोडऩा। त्रिकोणीय मुकाबले में पार्टी के वोटों का बटवारा रोकना। जीत के 8 फीसदी के अंतर को बढ़ाना।
महेन्द्र नागेश : कांग्रेस के साथ-साथ कभी अपने रहे प्रतिद्वंदी से भी मुकाबला। पार्टी के गिरे दस फीसदी वोट को वापस हासिल करना।
शेखर चौधरी : दोहरी दलगत छवि के बीच तीसरी ताकत के रूप में स्थापित करने का दबाव। कांग्रेस के साथ भाजपा से मुकाबला। अपना 26 प्रतिशत वोट बैंक बढ़ाना।
गाडरवारा : सांसद और विधायक में मुकाबला
होशंगाबाद तथा रायसेन जिले की सीमा से सटी 2,12,856 मतदाताओं वाली इस सीट पर पड़ोसी जिलों की राजनीतिक आबोहवा भी प्रभाव डालती है। इसे देखते हुए ही भाजपा ने इस बार यहां अपने होशंगाबाद सांसद राव उदय प्रताप को मैदान में उतारा है। सामने हैं, इनके अपने ही कौरव समाज की कांग्रेस प्रत्याशी सुनीता पटेल। कांग्रेस के प्रदेश संगठन ने ‘लंबी ना..ना’ के बाद अपनी विधायक सुनीता पटेल के नाम पर मुहर लगाई। यानी महिला कार्ड के साथ कांग्रेस फिर मैदान में आई है। अन्यथा भाजपा के पूर्व विधायक गोविंद सिंह पटेल के बेटे गौतम तो टिकट की प्रत्याशा में अपने पिता की सहमति से कांग्रेस में आ ही चुके थे। यहां आमने-सामने का सीधा मुकाबला है।
चुनौतियां
सुनीता पटेल : जिन कांधों पर चढ़ कर उन्होंने तीसरी बार में मैदान मारा वे आज प्रतिद्वंदी की ताकत बने हुए हैं। पांच साल की नगण्य उपलब्धि। अपनों की नाराजगी।
राव उदय प्रताप : गोविंद सिंह खेमे की नाराजगी। समाज के वोटों का बंटवारा। पिछले ढाई साल छोड़ क्षेत्र से दूरी। कांग्रेस का दस साल में 27 फीसदी बढ़ा वोट प्रतिशत।
तेंदूखेड़ा : मुकाबला विधायक और सीएम के बीच
जिले के सबसे कम 1,08,881 मतदाताओं वाली इस सीट पर पिछले 36 घंटे में मुकाबला विधायक वर्सेस सीएम हो चुका है। कांग्रेस व भाजपा ने पुराने जीते-हारे प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। भाजपा से कांग्रेस में आए संजय शर्मा को वापस लाने प्रयास विफल होने पर भाजपा ने 2018 में उनके 5 प्रतिशत वोट काटने वाले विश्वनाथ सिंह को मैदान में उतारा और मोर्चा संभाला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने। मंगलवार को डोभी की सभा में जिस तरह से सीएम ने बिना नाम लिए कांग्रेस प्रत्याशी पर हमलावर रहे, उसने सारी बात साफ कर दी। इस चुनाव में पहली बार सीएम ने किसी के लिए धनबल और बाहुबल जैसे शब्दों का प्रयोग किया। शराब बंदी और गड़बड़ करने वालों के घर पर बुल्डोजर चलाने की बात कहने से भी साफ हो गया कि इस बार यहां कैसा चुनाव होगा। सरकारी शुगर मिल खोलने की घोषणा ने भी मुकाबले को कड़ा कर दिया है।
चुनौतियां
संजय शर्मा : जनप्रतिनिधि के बजाय विशुद्ध व्यवसायी की बन चुकी छवि। जिला संगठन के एक खेमे से दूरी। तेजी से घटता वोट प्रतिशत।
विश्वनाथ सिंह : विकास ना होने से भाजपा के प्रति जनता की नाराजगी। हार के बाद क्षेत्र में निष्क्र्रिय रहना। गन्ना किसानों की बढ़ती समस्या।
ये हैं मुद्दे
जिले की चारों सीटों पर खड़े 33 प्रत्याशियों में से अकेले नरसिंहपुर सीट के भाजपा प्रत्याशी प्रह्लाद पटेल अपने खुद के वादे और घोषणा पत्र लेकर जनता के सामने पेश हुए हैं। इसमें स्थानीय जरूरतों के अनुरुप मेडिकल कॉलेज खोलने और मिनी स्मार्ट सिटी के रूप में नरसिंहपुर को विकसित करना प्रमुख रूप से शामिल है। इनके अलावा शेष तीन भाजपा प्रत्याशी केन्द्र व राज्य सरकार की योजनाओं को लेकर जनता के सामने जा रहे हैं तो चारों कांग्रेस प्रत्याशी पीसीसी चीफ कमलनाथ द्वारा घोषित गारंटियों को लेकर अपना प्रचार युद्ध लड़ रहे हैं। सडक़, पुल-पुलियों की जरूरत जैसे जनता से जुड़े मुद्दे किसी के पास नहीं हैं। गन्ना किसानों को रिकवरी के आधार पर भुगतान, फूड प्रोसेसिंग यूनिट सहित दस साल पहले स्वीकृत उद्योग नगरी के मामले में भी दोनों प्रमुख दल कुछ नहीं बोल पाए हैं।
Created On :   9 Nov 2023 3:47 PM IST