उत्तर प्रदेश चुनावों के बाद क्या प्रियंका गांधी को मिलेगी कांग्रेस में बड़ी भूमिका?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांगेस के संकटमोचक के नाम से विख्यात रहे कद्दावर नेता अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी के भीतर उसी तरह की भूमिका में उभर कर सामने आई हैं और सभी फरियादी अपनी शिकायतें लेकर उनके दरवाजे पर पहुंच रहे हैं। हाल ही में, जब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पार्टी पर निशाना साधा तो उत्तराखंड संकट को दूर करने के लिए प्रियंका गांधी ने लिए कदम बढ़ाया और इस असंतुष्ट नेता को शांत किया। यह पहली बार नहीं है जब गांधी भाई- बहन ने पार्टी में संकट को कम करने के लिए प्रबंधक की भूमिका का निर्वहन किया है।
उन्होने पंजाब में पिछले दिनों उपजे राजनीतिक संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं और अमरिंदर सिंह को वहां से हटाने और नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी में स्थापित करने के पीछे उन्हीं की अहम भूमिका थी। इसके बाद जब राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ असंतुष्टों ने मोर्चा खोल दिया तो उन्होंने राहुल गांधी के मिलकर प्रदेश सरकार में सचिन पायलट के वफादारों को समायोजित करने के लिए अशोक गहलोत पर दबाव बनाया था।
विश्लेषकों को लगता है कि उत्तर प्रदेश चुनावों के बाद, कांग्रेस को प्रियंका गांधी को एक बड़ी भूमिका की पेशकश करनी होगी और यह इस लिहाज से भी जरूरी है क्योंकि जो नेता राहुल गांधी के साथ तारतम्य रखने में अपने आपको असहज मानते हैं ,वे अपनी बात प्रियंका गांधी को खुले मन से कह सकते हैं। इसके अलावा, असंतुष्ट नेताओं और जी-23 समूह के नेताओं को साधने में भी वह मुख्य भूमिका निभा सकती हैं क्योंकि जिस प्रकार लखीमपुर खीरी घटना के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश में इस मामले को उठाया वह कांग्रेस की छवि सुधारने में काफी हद तक बेहतर रहा क्योंकि अन्य पार्टियों को भी इस मसले को उठाना पड़ा था। इसके लिए राजनीतिक क्षेत्र में प्रियंका गांधी की जोरदार तारीफ भी हुई।
प्रियंका गांधी ने इतने कम समय में ज्वलंत मसलों को उठाकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मौजूदगी का अहसास लोगों को करा दियाऔर पार्टी को इसका फायदा भी आगामी विधानसभा चुनावों में मिल सकता है। पार्टी उन्हें भविष्य के चुनावों में स्टार प्रचारक के रूप में देख रही है और उनका, लड़की हूं लड़ सकती हूं (मैं एक लड़की हूं और लड़ सकती हूं) नारा देश में लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। प्रदेश में बड़े पैमाने पर लोगों को पार्टी की सदस्यता दिलाने में उनका अभियान काफी सार्थक सिद्ध हुआ है और पार्टी इसे भाजपा की धर्म तथा जाति आधारित राजनीति के जवाब में देख रही है।
जिस समय कांग्रेस महासचिव प्रचार अभियान में उतरी उस समय देश का ध्यान कोविड महामारी की ओर था फिर भी हाथरस और सोनभद्र मामले को जोरदार तरीके से उठाकर उन्होंने अपने विरोधी खेमे को अपनी ताकत का अहसास करा दिया। जिस समय लोग कोरोना के कारण अपने अपने प्रदेशों को लौट रहे थे तो उस दौरान उन्हें उनके घरों तक भेजने के लिए प्रियंका ने बसों का इंतजाम कराकर प्रभावित लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने की पेशकश कर दरियादिली का परिचय दिया। किसान आंदोलन के दौरान भी वह सबसे आगे रहीं, लेकिन फिर देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर बरपा और लोगों को लॉकडाऊन का सामना करना पड़ा अगले साल की शुरूआत में उत्तराखंड और पंजाब के साथ उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं, और इसे देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व इस बात पर बहस कर रहा है कि क्या प्रियंका को पार्टी में अधिक बड़ी या राष्ट्रीय स्तर की भूमिका सौंपी जानी चाहिए।
इस मुद्दे पर कांग्रेस के कई नेता सामने आ रहे हैं और ऐसे ही एक शख्स हैं आचार्य प्रमोद कृष्णम, जो कहते रहे हैं कि प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाए। इसके अलावा कईं अन्य नेता जो राहुल गांधी के कामकाज से खुश नहीं हैं, उनका सुझाव है कि सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष के पद पर बरकरार रखा जाए और प्रियंका को उत्तर भारत का प्रभारी उपाध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। जब कांग्रेस पर नेतृत्व का संकट आया, तो सोनिया गांधी की सहायता के लिए नेताओं की एक टीम सामने आई थी और पिछले साल सितंबर में ए.के. एंटनी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, के.सी. वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक और रणदीप सिंह सुरजेवाला को लेकर एक समिति बनाई गई थी हैं। पटेल की मृत्यु के बाद, हालांकि, समिति की कभी-कभी बैठकें होती रही हैं। कांग्रेस के संविधान में उपाध्यक्ष के लिए कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन अतीत में राहुल गांधी, अर्जुन सिंह और जितेंद्र प्रसाद इस पद पर थे।
कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि प्रियंका गांधी के काम करने का अंदाज बहुत ही सहज है। वह लोगों की बातों को बहुत ध्यान से सुनती हैं और इसी खूबी के कारण उन्होंने राजस्थान और पंजाब के संकट को हल करने की दिशा में वहां के असंतुष्ट नेताओं की बातों को भी सुना था कांग्रेस इस समय कई राज्यों - उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर और गुजरात में अंदरूनी कलह में फंस गई है, और इनमें 2022 में चुनाव भी हैं, जबकि मध्यप्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 2023 में चुनाव होने हैं । इसे देखते हुए अगर उन्हें पार्टी संगठन में बड़ी भूमिका दी जाती है तो यह पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
कांग्रेस में कुछ नेताओं का यह मानना है कि राहुल गांधी बिना किसी पद के भी पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं। इन नेताओं का कहना है कि वह विभिन्न मुद्दों पर सरकार पर निशाना साधते रहे हैं। यहां तक कि उनके आलोचक भी कोरोना महामारी और आर्थिक संकट जैसे मसलों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगातार किए गए हमलों के लिए उनकी साख को स्वीकार करते हैं। पार्टी राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, कर्नाटक में संकट का सामना कर रही है और छत्तीसगढ़ में टी एस सिंहदेव के समर्थक इस बात के लिए दबाव डाल सकते है कि पांच राज्यों के चुनावों के बाद उन्हें छत्तीसगढ़ की कमान सौंप दी जाए हालांकि, उनके समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि पार्टी को उस नेता को दिया अपना आश्वासन पूरा करना चाहिए जिसने राज्य की आदिवासी बहुल बेल्ट में पार्टी को सीटें जिताने में जोरदार भूमिका निभाई थी। इसी तरह, राजस्थान में गुर्जर नेता सचिन पायलट बदलाव पर जोर दे रहे हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी से चले जाने के बाद अब पार्टी उन्हें खोने का जोखिम नहीं उठा सकती हैं।
(आईएएनएस)
Created On :   26 Dec 2021 5:36 PM IST