क्या मोदी का जवाब बनने वाले हैं नीतीश? सियासत के मैदान में ये है समानताएं और अंतर
- विपक्ष के चेहरे के लिए एकाएक क्यों उछला नीतीश कुमार का नाम?
डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह नाम राष्ट्रीय राजनीति में लगभग 30 सालों से प्रासंगिक बना हुआ है। उन पर विपक्ष अवसरवादिता के लगातार आरोप लगाता रहा है। अब उसको अवसरवादिता कहें या राजनीतिक शतरंज की बिसात पर बिहारी बाबू की चाल, जिसकी वजह से वर्षों से राजनीति में उनका दमखम कायम है। नीतीश कुमार के पिता कविराज राम लखन सिंह आयुर्वेदिक चिकित्सक थे और मां परमेश्वरी देवी गृहणी थी। निम्न मध्यमर्गीय परिवार में पैदा होने से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री बनने तक का नीतीश कुमार का सफर बेहद रोचक है।
नीतीश का सियासी सफरनामा
जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, सतेंद्र नारायण सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर जैसे लोगों से नीतीश कुमार काफी प्रभावित थे, इसीलिए उनका झुकाव राजनीति की तरफ हो गया। जब इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति की शुरुआत की तो उनके आह्वान पर 1974 में नीतीश कुमार ने भी आगे बढ़ कर हिस्सा लिया। नीतीश कुमार कुछ बड़ा करना चाहते थे इसीलिए पेशे से इंजीनियर नीतीश कुमार ने सियासत में एंट्री ली।
जेडीयू और बीजेपी गठबंधन ने पहली बार 2005 में लालू-राबड़ी के 15 साल के किले को ध्वस्त करते हुए बिहार में सरकार बनाई।
सियासत में बने रहने के लिए नीतीश कुमार के "हथकंडे"!
जॉर्ज फर्नाडिस जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और नीतीश कुमार उनकी ही पार्टी के नेता थे। लेकिन नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनने के बाद 2007 में जॉर्ज फर्नाडिस को उनकी ही पार्टी में किनारे कर दिया था। यह नीतीश कुमार की सत्ता में अपनी ताकत को बनाये रखने के लिए किसी के खिलाफ पहली चाल थी। उसके बाद बीजेपी नीतीश कुमार की सियासत का बिहार में शिकार हुई।
विपक्ष का नेता बनने के लिए नीतीश की क्षमताओं पर एक नजर
भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष के पास नीतीश कुमार के अलावा बेदाग छवि वाला शायद ही कोई नेता बचा हो। विपक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसके पास प्रधानमंत्री मोदी जैसे ताकतवर चेहरे को टक्कर देने वाला कोई चेहरा नहीं है। शायद इसलिए बार बार विपक्ष मोदी के जवाब में नीतीश का नाम उछालता है।
नीतीश की कमजोर कड़ियां, नहीं दे सकते मोदी को चुनौती!
नीतीश कुमार भले ही बिहार की सियासत की पिछले 15 वर्षों से धुरी बने हुए हैं, लेकिन यह भी एक सच है कि लोकसभा चुनाव में बिना मोदी के नीतीश कुमार बिहार में ही बुरी तरह फेल रहे। नीतीश कुमार बिहार में जातियों को नहीं साध पाये इसीलिए नीतीश कुमार कभी भी बिहार में अपने दम पर सरकार नहीं बना पाए। नीतीश कुमार मोदी की तरह ऐसी छवि नहीं बना पाए, जिसमें सारी जातियां समा जाए। मोदी का गुजरात मॉडल देश ही नहीं दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बना, तो वहीं नीतीश कुमार का बिहार मॉडल अपनी कमियों की वजह से चर्चा में रहा।
Created On :   9 Aug 2021 4:15 PM IST