नारायण का राज या फिर ज्ञानेश्वर का कमाल, खंडवा का ताज किसके हाथ ?

The secret of Narayan or the wonder of Dnyaneshwar, in whose hands is the crown of Khandwa?
नारायण का राज या फिर ज्ञानेश्वर का कमाल, खंडवा का ताज किसके हाथ ?
मध्यप्रदेश उपचुनाव नारायण का राज या फिर ज्ञानेश्वर का कमाल, खंडवा का ताज किसके हाथ ?

डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश की एक लोकसभा सीट खंडवा पर उपचुनाव होने जा रहा है। प्रचार में ब्रेक लग गया है। चुनावी मैदान में कांग्रेस बीजेपी पार्टी के दिग्गजों ने प्रचार में एक दूसरे पर आरोप लगाते हुए हुंकार भरी। उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। कांग्रेस ने राजपूत समाज से पूर्व विधायक ठाकुर राजनारायण सिंह पुरनी तो भाजपा ने बुरहानपुर के पिछड़ा वर्ग के ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा है। बेदाग छवि वाले कांग्रेस के राजनारायण की उम्मीदवारी फायदेमंद साबित हो सकती है। इस समय 8 विधानसभा सीटों में से चार पर कांग्रेस, तीन पर बीजेपी और एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी का कब्जा है।

                                      

प्रत्याशी चयन रणनीति, जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दे चर्चा में है। कांग्रेस ने स्थानीय कार्ड तो बीजेपी ने पिछड़ा कार्ड खेला है। देखना ये होगा कि अब इन दोनों मुद्दों में से मतदाताओं कौन सी रणनीति को विजयी घोषित करते है । 

खंडवा संसदीय सीट पर अब तक हुए चुनाव और विजयी प्रत्याशियों के इतिहास पर गौर किया जाए तो पूर्व में हुए एक उपचुनाव सहित 17 आम चुनाव में नौ बार कांग्रेस तथा आठ बार भाजपा, सहयोगी भारतीय लोकदल और जनता पार्टी के प्रत्याशी विजयी हुए है। इनमें दिलचस्प बात यह है कि खंडवा लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने का 10 बार मौका बुरहानपुर के प्रत्याशी को मिला है। दो बार लोकसभा से बाहर के प्रत्याशी भी विजयी हुए हैं।

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कांग्रेस से राज नारायण 
खंडवा लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस से 70 वर्षीय राजनारायणसिंह पुरनी। ठाकुर राजनारायण सिंह कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं। लेकिन खास बात ये कि कांग्रेस ने 15 साल बाद किसी सामान्य सीट पर सामान्य उम्मीदवार को ही टिकट दिया। मांधाता से तीन बार से विधायक  रहे राजनारायण सिंह करीब 22 साल बाद चुनाव मैदान में है। वे यहां 1985 से 90 तक फिर 1998 से लेकर 2008 तक मंधाता विधायक रहें। 

बीजेपी से ज्ञानेश्वर पाटिल 
बीजेपी ने खंडवा लोकसभा उपचुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल पर भरोसा जताया है। 25 साल बाद बीजेपी ने इस सीट पर ओबीसी कोर्ड खेला है। ओबीसी आरक्षण विवाद के उठने से बीजेपी ने  पिछड़े वर्ग के पाटिल को मैदान में उतारकर ओबीसी वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। पाटिल बुरहानपुर के एक छोटे से ग्राम बोहोड़ा से आते हैं। अब देखना होगा कि वो भाजपा को यहां से चुनाव जीता पाते है या नहीं।
बीजेपी ने अपनी सीट को बचाने के लिए वहीं गई कांग्रेस कमबैक करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है।मध्य प्रदेश की खंडवा लोकसभा सीट प्रदेश की उन सीटों में से है, जिस पर भाजपा का दबदबा रहा है। खंडवा लोकसभा सीट से सांसद नंदकुमार चौहान सबसे ज्यादा बार जीतने वाले सांसद हैं, लेकिन उनके निधन से खाली खंडवा लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है। मतदान 30 अक्टूबर शनिवार सुबह से ही शुरू हो जाएगा। 1980 के बाद करीब 41 साल बाद इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है। इससे पहले 1979 में यहां उपचुनाव कराया गया था। जिसमें जनता पार्टी के कुशाभाऊ ठाकरे ने कांग्रेस के एस.एन ठाकुर को हराया था। 

खंडवा और बुरहानपुर की चर्चा
इस उपचुनाव में खंडवा और बुरहानपुर का मुद्दा प्रभावी रहा है। जिसके पीछे की वजह बीजेपी द्वारा लगातार पिछले 12 चुनावों में बुरहानपुर से उम्मीदवार उतारना रहा। कांग्रेस ने इस बार खंडवा से ही प्रत्याशी को उतारा है।  उपचुनाव में लोकल फॉर वोकल की मुहिम खूब चर्चा में रही। भितरघात की वजह से भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती है।

सीट का इतिहास
खंडवा सीट से सबसे ज्यादा नंद कुमार सिंह चौहान सबसे ज्यादा जीतने वाले सांसद रह चुके हैं। यहां की आम जनता ने उन्हें 6 बार चुनकर संसद भवन तक पहुंचाया था। खंडवा लोकसभा सीट पर सबसे पहले 1962 में चुनाव हुआ था, जिसमें कांग्रेस के महेश दत्ता ने जीत हासिल की थी। 1967 और 1971 में कांग्रेस ने कब्जा किया। साल 1977 में भारतीय लोकदल ने खंडवा से जीत हासिल की। 1980 में एक बार फिर कांग्रेस के शिवकुमार नवल सिंह सांसद बने। उसके बाद 1984 में कांग्रेस से कालीचरण रामरतन जीते लेकिन पहली बार 1989 में यहां से बीजेपी ने जीत हासिल की। हालांकि बीजेपी 1991 में कांग्रेस से फिर हार गई ।

1996 में बीजेपी की वापसी
1996 का साल बीजेपी के लिए सबसे भाग्यशाली रहा।  इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने नंदकुमार सिंह चौहान को मैदान में उतारा और उन्होंने यहां ऐसा कमल खिला जो करीब दो दशक से खिलता रहा। इसके बाद वे 3 चुनाव जीतने में कामयाब रहे लेकिन 2009 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस के अरूण यादव ने हरा दिया था। साल 2014 की मोदी लहर में एक बार फिर नंदकुमार सिंह चौहान कमल को खिलाने में कामयाब हुए। साल 2019 में नंद कुमार चौहान ने फिर जीत हासिल की।  अब उनके निधन से यह सीट खाली है। अब सीट पर उपचुनाव हो रहा है जिसके लिए मतदान 30 अक्टूबर को होगा।

Created On :   28 Oct 2021 5:38 PM IST

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