गांव की गद्दी से होकर निकलेगा सूबे की सियासत का रास्ता, चुनौतियों और अटकलों के बीच फंसे कमलनाथ और शिवराज के बीच टक्कर
- शिवराज v/s कमलनाथ
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश में भले ही गांव और शहर की सरकारों के चुनाव हो रहे है लेकिन चर्चा पूरे सूबे की सियासत और उसके काम की नीति नियमों और नेताओं की हो रही हैं, हो भी क्यों नहीं क्योंकि प्रदेश की जनता ने दो साल से अधिक का दुखदायी कष्टदायी कोविड महामारी का समय अपने गांव में ही बिताया। इस दौरान सूबे की जनता ने सत्ता की मार, और पेट ने भूखे का दंश झेला है। सात साल बाद हो रहे चुनाव में घात लगा कर बैठे मतदाता सियासतदारों को मतों के जरिए जवाब देने को तैयार हैं।
माना जा रहा है इन चुनावों के जरिए कांग्रेस बीजेपी मध्यप्रदेश में अपनी अपनी मजबूती स्थापित करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहेगी। इससे पहले हम आपको दोनों पार्टियों के सियासी दबदबे पर प्रकाश डालते हैं। तीन दशक पहले 1993 से लेकर 2003 तक दस सालों तक पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का दबदबा था। उसके बाद सत्ता में बीजेपी आई तब से अब तक शिवराज सरकार का दबदबा कायम हैं। लेकिन इन चुनावों में दोनों ही दलों के लिए बड़ी चुनौती हैं। दोनों दलों में जिम्मेदारी के नेतृत्व को लेकर बीच बीच में अटकले लगाई जाती रही हैं। इसलिए दोनों दलों ने अपने ही नेता को फिर से बेहतर प्रदर्शन करने के लिए पूरा मौका दिया हैं। कांग्रेस ने कमलनाथ को, भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को। अब देखना यह है कि कौन इस मौके का सही से फायदा उठा पाता है, और चुनावी नतीजों में पार्टी के पक्ष में नतीजे दिला पाता है। स्थानीय चुनावों के ये नतीजे ही 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
संख्या के आधार पर जिला पंचायत अध्यक्ष पदों पर साल दर साल बीजेपी का ग्राफ उंचाई की सीढ़ियों चढ़ता गया। 2005 में बीजेपी के 27 जिला पंचायत अध्यक्ष , 2010 में 38, 2015 में 40 हो गए थे। हालांकि कुछ समय बाद 6 जिला पंचायत अध्यक्षों ने बीजेपी छोड़ दी थी। इनमें नरसिंहपुर से संदीप पटेल, भोपाल के मनमोहन नागर और रीवा के अभय मिश्रा अहम चेहरे रहे।
स्थानीय मुद्दों की बात की जाए तो कोरोना काल में उपजे मुद्दों के साथ साफ सफाई और सड़क व नाली के मुद्दे, बड़े बड़े नगरों के साथ साथ छोटे छोटे शहरों के मोहल्ले और गलियों में पीने के पानी से लेकर पानी के निकासी की व्यवस्था, 2018 में एससी एसटी विरोध प्रदर्शन और 2022 में हुए खरगोन सांप्रदायिक दंगे और उन्हें लेकर कार्रवाई, शिक्षा व्यवस्था, बढ़ते टैक्स के साथ बढ़ती महंगाई बढ़ती बेरोजगारी के साथ साथ बीच बीच में आई बिजली संकट की मार चुनावी मैदान में खूब शोर कर रहे हैं। एक तरफ विकास की थाप पर भ्रष्टाचार का डंडा सियासी दल को चुनावी न्यायालय के कठघरे में खड़ा कर रहा है।
कमलनाथ और शिवराज के लिए चुनौती
कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान के लिए चुनौती ये है कि दोनों ही इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करना चाहते हैं। क्योंकि, दोनों ही दलों के लिए ये इम्तिहान सिर्फ नगर सरकार का नहीं है बल्कि ये 2023 का सेमीफाइनल भी है। इसी के अंकों के आधार पर विधायकों का रिपोर्ट कार्ड तैयार होगा। कमलनाथ को ये साबित करना है कि 2018 वाली ऊर्जा कांग्रेस के पास अब भी बाकी है। और, शिवराज को ये साबित करना है कि 17 साल की उनकी सरकार का दबदबा और होल्ड बरकरार है। जिसके दम पर वो उन अटकलों को भी खत्म कर सकते हैं कि शिवराज का चेहरा कभी भी बदला जा सकता है। दोनों को कसौटी पर खरा उतरने के लिए कड़ी मेहनत करनी है।
Created On :   18 Jun 2022 6:54 AM GMT