गेहूं के औसत थोक मूल्यों में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 23 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में गेहूं के औसत थोक मूल्यों में लगभग 23 प्रतिशत की महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2021 में गेहूं का अखिल भारतीय औसत थोक मूल्य 2,212 रुपये प्रति क्विंटल था और नवंबर 2022 के दौरान बढ़कर 2,721 रुपये प्रति क्विंटल हो गया।
मंत्रालय ने हाल ही में संसद के जवाब में कहा कि गेहूं का उत्पादन 2020-21 में 109.59 मिलियन टन से घटकर 2021-22 में 106.84 मिलियन टन (अखिल भारतीय स्तर पर चौथा अग्रिम अनुमान) हो गया है और मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश हरियाणा और राजस्थान जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में मार्च और अप्रैल, 2022 के दौरान भीषण गर्मी की वजह से 2021-22 में गेहूं की अखिल भारतीय उपज 2020-21 में 3,521 किलोग्राम/हेक्टेयर से घटकर 3,507 किलोग्राम/हेक्टेयर हो गई।
रबी बाजार सीजन 2022-23 में गेहूं की खरीद 187.92 लाख मीट्रिक टन थी, जो 2021-22 की तुलना में 433.44 लाख मीट्रिक टन कम थी, क्योंकि इस अवधि के दौरान गेहूं का बाजार मूल्य एमएसपी से अधिक था। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2022 से गेहूं का एमएसपी 2,015 रुपये पर स्थिर है। इससे पहले एमएसपी 1,975 रुपये प्रति क्विंटल था।
मंत्रालय के अनुसार, सरकार का लक्ष्य सार्वजनिक और निजी भागीदारी के माध्यम से किसानों के बीच गर्मी प्रतिरोधी किस्मों के उपयोग को बढ़ावा देना और सीधे किसानों को बीज उपलब्ध कराना है। इन किस्मों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए, आईसीएआर के तहत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड बरेली रिसर्च (आईआईडब्ल्यूबीआर), करनाल ने बीज उत्पादन के लिए निजी कंपनियों के साथ डीबीडब्ल्यू 187 और डीबीडब्ल्यू 222 के लिए 191 एमओए के लिए 250 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। संस्थान ने फसल सीजन 2021-22 के दौरान डीबीडब्ल्यू 187 के 2,500 क्विंटल से अधिक बीज और डीबीडब्ल्यू 222 के 1,250 क्विंटल से अधिक बीज वितरित किए हैं।
यह योजना न केवल उपज को प्रभावित करने वाले सभी गैर-निवारक प्राकृतिक जोखिमों जैसे बाढ़, जलप्लावन, भूस्खलन, सूखा, शुष्क दौर, ओलावृष्टि, चक्रवात, कीट/बीमारी, प्राकृतिक आग और बिजली गिरने, तूफान, आंधी, बवंडर, थानीय जोखिमों (ओलावृष्टि, भूस्खलन, जलप्लावन, बादल फटने और प्राकृतिक आग) के कारण खेत स्तर की उपज के नुकसान के खिलाफ भी और चक्रवात, चक्रवाती / बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि आदि के कारण कटाई के बाद के नुकसान के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करती है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) को 2007-08 में गेहूं सहित फसलों के उत्पादन को क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता में वृद्धि, मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता को बहाल करने और कृषि स्तर की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था। एनएफएसएम-गेहूं को 10 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 124 जिलों में लागू किया जा रहा है। एनएफएसएम-गेहूँ के अंतर्गत आने वाले हस्तक्षेपों में उन्नत पैकेज पद्धतियों पर क्लस्टर प्रदर्शन, फसल प्रणाली पर प्रदर्शन, एचवाईवी/हाइब्रिड के बीज वितरण, उन्नत कृषि मशीनरी/संसाधन संरक्षण मशीनरी/उपकरण, कुशल जल अनुप्रयोग उपकरण, पौध संरक्षण उपाय, पोषक तत्व प्रबंधन/उपकरण, मृदा सुधारक, प्रसंस्करण और कटाई के बाद के उपकरण, किसानों को फसल प्रणाली आधारित प्रशिक्षण आदि शामिल हैं।
(आईएएनएस)
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Created On :   10 Dec 2022 6:30 PM GMT