सावरकर पर लगातार हमले करना राहुल की रणनीति या चूक? जानिए उनके इस दांव का महाराष्ट्र की सियासत में क्या पड़ेगा असर

Rahuls constant attack on Savarkar strategy or mistake? Know what will be the effect of his bet in the politics of Maharashtra
सावरकर पर लगातार हमले करना राहुल की रणनीति या चूक? जानिए उनके इस दांव का महाराष्ट्र की सियासत में क्या पड़ेगा असर
नई दिल्ली सावरकर पर लगातार हमले करना राहुल की रणनीति या चूक? जानिए उनके इस दांव का महाराष्ट्र की सियासत में क्या पड़ेगा असर

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 2019 के मानहानि केस में गुजरात के सूरत की एक अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद संसद द्वारा उनकी लोकसभा सदस्यता आयोग्य घोषित कर दी गई थी। जिसके बाद दिल्ली के पार्टी कार्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला था। इस दौरान राहुल ने कहा था कि 'भले मेरी सदस्यता छीन लो, मुझे जेल में डाल दो, लेकिन मैं डरने वाला नहीं हूं। मेरा नाम सावकर नहीं है, मेरा नाम गांधी है और गांधी किसी से माफी नहीं मांगते हैं।' 

राहुल द्वारा सावरकर पर दिए इस बयान से देश की सियासत गरमा गई है। उनके इस बयान पर जहां बीजेपी हमलावर वहीं महाराष्ट्र में उनके सहयोगी नेता उद्धव ठाकरे भी उनसे खासे नाराज हैं। उद्धव ने तो राहुल के इस बयान पर ये तक कह दिया है कि अगर राहुल द्वारा सावरकर पर ऐसे ही बयानबाजी जारी रही तो वो कांग्रेस के साथ अपना गठबंधन तोड़ देंगे। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने मल्लिकारजुन खड़गे द्वारा बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में हिस्सा भी नहीं लिया। बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब राहुल ने सावरकर पर निशाना साधा है इससे पहले भी कई बार वह ऐसा कर चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राहुल गांधी क्यों बार बार सावरकर पर निशाने साधते हैं और ऐसा करने के पीछे उनका क्या सियासी मकसद होता है? इसके अलावा उद्धव ठाकरे इस मुद्दे पर क्यों अपने आप को कांग्रेस से अलग कर लेते हैं और उस पर हमलावर हो जाते हैं?  

उद्धव गुट को बर्दाश्त नहीं सावरकर की आलोचना

राहुल गांधी का सावरकर पर दिये बयान से शिवसेना का उद्धव गुट खासा नाराज है। 26 मार्च को महाराष्ट्र के मालेगांव में आयोजित एक जनसभा में कहा कि हम और कांग्रेस मिलकर जो लड़ाई लड़ रहे हैं वो देश, लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए है, लेकिन राहुल जो सावरकर पर बेतुके बयान देते हैं उनसे उनको बचना चाहिए। राहुल का सावरकर पर दिया बयान उद्धव गुट को कितना नागवार गुजरा इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने सभी विपक्षी दलों के सांसदों के लिए भोज का आयोजन किया। जिसमें सभी विपक्षी दलों के सांसद आए लेकिन शिवसेना उद्धव गुट का एक भी सांसद नहीं पहुंचा। यह कदम उठाकर शिवसेना ने साफ संदेश दे दिया है कि वो किसी भी कीमत पर सावरकर का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगी। 

हिंदुत्ववादी विचारधारा वाली शिवसेना विनायक दामोदर सावरकर को अपना आदर्श मानती है। बालासाहेब ठाकरे के समय से ही सावरकर पार्टी के लिए पूज्यनीय रहे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में भी सावरकर का अच्छा खासा कद है, महाराष्ट्र में उन्हें मानने वालों की संख्या भी बहुत है। 

सावरकर का महाराष्ट्र की राजनीति में कद बड़ा होने का कारण वहां के चितपावन ब्राम्हण वोटर भी हैं। जिनकी प्रदेश में मतदाता के रूप में बड़ी संख्या है। सावरकर भी इसी ब्राम्हण समाज से थे। इसके अलावा पूरा मराठी समाज है। यह सभी सावरकर को खूब मानते हैं। इसी वजह से सावरकर को मानने वाले इतने बड़े मतदाता समूह की वजह से ही चाहे बीजेपी हो या शिवसेना सावरकर के विरोध में कुछ भी नहीं सुनती है और यहां तक की हर विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें भारत रत्न देने की बात करती हैं।      

सावरकर की स्वाधीनता संग्राम में भूमिका और माफीनामे पर राजनीति

गांधी जी के जैसे ही सावरकर भी आजादी की लड़ाई में शामिल रहे थे। हालांकि दोनों की विचारधाराओं में जरूर अंतर था। गांधी जहां अहिंसा के जरिए स्वाधीनता पाना चाहते थे वहीं सावरकर क्रांति के जरिए स्वाधीनता प्राप्ति के पक्षधर थे। सन 1910 में नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या में शामिल होने के आरोप में सावरकर को इंग्लैंड से गिरफ्तार किया गया था और उन्हें 25-25 साल के लिए अंडमान की सेल्युलर जेल में कैद होने की सजा सुनाई गई थी। जेल के डॉक्यूमेंटों के मुताबिक, सजा के दौरान सावरकर ने अंगेजी हुकुमत को एक नहीं बल्कि 6 बार दया याचिका दी थी। सावरकर करीब 9 साल 10 महीने जेल में रहे। जानकारी के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार बीच-बीच में कैदियों को रिहा करती थी इसके लिए वह उनसे माफीनामे की मांग करती थी। इसी वजह से सावरकर ने भी उन्हें दया याचिका के लिए माफीनामे लिखे थे। 

शिवसेना, बीजेपी जहां सावरकर को एक देशभक्त के रूप में मानती हैं वहीं कांग्रेस उनके अंग्रेजों से माफी मांगने को लेकर बीजेपी के राष्ट्रवाद पर निशाना साधती है। राहुल गांधी की तरफ से तो कई बार सावरकर के मांफीनामे को लेकर उनपर निशाना साधा गया है। 

राहुल ने कई बार किया सावरकर पर हमला

राहुल ने दिसंबर 2019 में दिल्ली के रामलीला मैदान में भारत बचाव रैली के दौरान सावरकर पर हमला किया था। इस रैली में राहुल ने सावरकर के जरिए बीजेपी पर हमला किया था। इसके अलावा झारखंड में रेप इन इंडिया वाले बयान पर बीजेपी ने राहुल से माफी मांगने के लिए कहा गया था तब राहुल ने कहा था कि वो सावरकर नहीं जो माफी मांगे। 

नवंबर 2022 में जब उनकी भारत जोड़ो यात्रा महाराष्ट्र से गुजर रही थी। उस दौरान वाशिम जिले में आयोजित रैली में भी राहुल ने सावरकर के जरिए बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधा था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि एक तरफ बिरसा मुंडा जैसे महान क्रांतिकारी थे जो अंग्रेजी सरकार के सामने झुके नहीं थे वहीं एक ओर सावरकर थे जो उनसे माफी मांग कर रहे थे। 

राहुल के इस बयान पर काफी हंगामा हुआ था। सावरकर के पोते ने उनके इस बयान पर मुंबई के एक थाने में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। जिसके बाद राहुल ने एक चिठ्ठी दिखाते हुए दावा किया था उन्होंने कहा था, ये मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट है। ये सावरकर की चिठ्ठी है जो उन्होंने अंग्रेजों को लिखी थी। जिसकी आखिरी लाइन है- सर मैं आप का नौकर रहना चाहता हूं। वीडी सावरकार।' राहुल ने कहा, 'ये मैंने नहीं लिखा. सावरकर जी ने लिखा है। इस दौरान उन्होंने कहा था कि सावरकरजी ने अंग्रेजों की सहायता की थी। माफीनामा लिखकर देश के अन्य स्वातंत्रता संग्राम सेनानियों को धोखा दिया था।

यह है सावरकर पर बार-बार हमले करने के पीछे राहुल का मकसद

दरअसल, सावरकर पर लगातार हमले कर राहुल ये बताना चाहते हैं कि जिन सावरकर को बीजेपी और आरएसएस अपना आदर्श मानती है उन्होंने देश की आजादी में कोई योगदान नहीं दिया था। बल्कि उन्होंने तो माफी मांगकर गांधी जी समेत अन्य स्वातंत्रता सैनानियों का अपमान किया था। इसके अलावा वो इसके जरिए ये भी बताना चाहते हैं जिन सावरकर की विचारधारा को मानने वाले लोगों ने गांधी जी की हत्या की थी उन्हें बीजेपी उन सावरकर को अपना आदर्श और सच्चा देशभक्त मानती है। 

कांग्रेस इस बात से भी अच्छी तरह से अवगत है कि सावरकर को महाराष्ट्र के अलावा उतनी स्वीकार्यता या अहमियत नहीं मिली अन्य राज्यों में नहीं मिली है। इसी वजह से सावरकर के जरिए राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता बीजेपी के राष्ट्रवाद पर बार-बार सवाल खड़े करते हैं।  

सावरकर पर बोलना महाराष्ट्र में न पड़ जाए भारी 

सावरकर की लोकप्रियता महाराष्ट्र में कितनी है वो यहां के कांग्रेस नेता अच्छी तरह से समझते हैं। इस वजह से वो चाहते हैं कि राष्ट्रीय नेताओं द्वारा बार-बार सावरकर पर निशाना न साधा जाए क्योंकि इससे प्रदेश में पार्टी को सियासी नुकसान हो सकते हैं। हालांकि महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना साहेब पाटोले ये बात कह चुके हैं कि उनका शिवसेना के साथ गठबंधन जरूर हुआ है लेकिन वैचारिक तौर पर दोनों ही दल अलग-अलग हैं। हम बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए एकसाथ आए हैं। हमारे सावरकर के बारे में विचार पहले से ऐसे ही हैं। उनके इस बयान के बाद शिवसेना को भी अपना स्टैंड लेना पड़ रहा है।  

राहुल के इस तरह बार-बार सावरकर पर निशाना साधने से महाराष्ट्र में कांग्रेस-शिवसेना के गठबंधन पर बुरा असर पड़ रहा है। क्योंकि शिवसेना के उद्धव गुट की तरफ से साफ कह दिया गया है कि अगर राहुल इस तरह की बयानबाजी पर लगाम नहीं लगाते तो उन्हें कोई कड़ा निर्णय लेना पड़ेगा। ऐसे में अब देखना होगा कि राहुल पर अपने सहयोगी दल शिवसेना की नसीहत का कितना असर पड़ता है।    

Created On :   28 March 2023 9:55 PM IST

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