गुजरात मॉडल नहीं, इस तर्ज पर बनेगी बीजेपी की रणनीति! ना विकास, ना धर्म जातीय समीकरण के सहारे ही सियासी कुर्सी पाना चाहते हैं राजनैतिक दल

Political party wants to get political chair on the basis of neither development nor religion caste equation
गुजरात मॉडल नहीं, इस तर्ज पर बनेगी बीजेपी की रणनीति! ना विकास, ना धर्म जातीय समीकरण के सहारे ही सियासी कुर्सी पाना चाहते हैं राजनैतिक दल
बीजेपी की रणनीति गुजरात मॉडल नहीं, इस तर्ज पर बनेगी बीजेपी की रणनीति! ना विकास, ना धर्म जातीय समीकरण के सहारे ही सियासी कुर्सी पाना चाहते हैं राजनैतिक दल

डिजिटल डेस्क,भोपाल। अगले महीने कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी वहां विकास और धर्म के मॉडल के साथ साथ जातीय मॉडल को प्राथमिकता देते हुए नजर आ रही है। यही नजारा कुछ महीनों बाद होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की रणनीति में दिखाई पड़ रहा है।  इन राज्यों में बीजेपी यूपी और गुजरात मॉडल को अधिक तवज्जो न देकर जातीय समीकरण साधने में जुटी हुई है। इन कुछ उदाहरणों से इसे समझ सकते हैं। 

कर्नाटक में जाति और आरक्षण नीति

कर्नाटक में मई के महीने में विधानसभा चुनाव होने है, इसके लिए बीजेपी और कांग्रेस ने ताल ठोकना शुरू कर  दिया है। कर्नाटक की भाजपा सरकार ने राहुल गांधी के चुनावी आरक्षण मंत्र को अपने पाले में करने के लिए मुसलमानों को अन्य पिछड़े समुदायों यानि ओबीसी की सूची से हटाकर ईडब्ल्यूएस में शामिल कर दिया है। अब यहां मुस्लिम ईडब्ल्यूएस कोटे के आरक्षण में शामिल हो गए है, जिसका आर्थिक कमजोर वर्ग के समुदाय विरोध कर रहे है। वहीं मुस्लिम वर्ग को मिले 4 प्रतिशत आरक्षण को  2-2 प्रतिशत के हिसाब से लिंगायत और वोक्कालिगा जाति में बांट दिया। इसके जरिए बीजेपी लिंगायत और वोक्कालिगा वोटों पर सेंध लगाने की कोशिश में है।

वहीं एससी के रिजर्वेशन को 15 से 17% और एसटी के आरक्षण को 3 से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया। यहां तक आरक्षण की नीति बीजेपी के पक्ष में आते हुए दिखाई दे रही थी, लेकिन बीजेपी ने जब एससी आरक्षण को उसी की चार जातियों में बांटा जिसका भाजपा को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। चुनावी साल के लिहाज से सरकार की आरक्षण चाल केवल जातीय वोटरों को अपने पाले में करने की रणनीति मानी जा रही थी। पर जो भी हो कर्नाटक में नए संशोधन के बाद आरक्षण का दायरा बढ़कर अब 56% हो गया है। इसमें अनुसूचित जाति के लिए 17%, अनुसूचित जनजाति के लिए 7% और अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए 32% आरक्षण की व्यवस्था की गई है। आरक्षण की रणनीति और जातीय समीकरण को देखते हुए ये आसानी से कहा जा सकता है कि बीजेपी कर्नाटक में न तो धार्मिक मॉडल अपनाना चाहती है ना ही विकास मॉडल ।

मध्यप्रदेश में रणनीति

बात मध्यप्रदेश की कि जाए तो कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व सीएम कमलनाथ ने भी चुनाव में धर्म की चादर ओढ़ना शुरू कर दिया है। बीते दिन कांग्रेस का पूरा कार्यालय भगवा रंग में रंगा हुआ नजर आया। कमलनाथ के चुनावी कदम धर्म संवाद को बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड की काट माना जा रहा है लेकिन बीजेपी इससे एक कदम आगे धर्म के सहारे जातियों को भी साधने में जुट गई है। बीजेपी ने कार्यक्रमों से इसे समझ सकते है, पीएम मोदी ने आदिवासियों को साधने के लिए उस स्टेशन से वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दी जिसका नाम एक आदिवासी महिला के नाम पर है। वहीं दलित वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने राम मंदिर की तर्ज पर सागर में संत रविदास मंदिर निर्माण बनाने की प्लानिंग करने के लिए है, वहीं इसी महीने अंबेडकर जयंती पर बीजेपी  अंबेडकर महाकुंभ करने की रणनीति बना चुकी है। इसके लिए भाजपा हर गांव से मुट्ठी पर मिट्टी और हर घर से ईंट और चावल जुटाएगी। बीते दिनों जंबूरी मैदान में तैलिक साहू-राठौर समाज का सम्मेलन किया। हजारों की संख्या में पहुंचे बीजेपी कार्यकर्ताओं ने संगठन का शक्ति प्रदर्शन किया। बीजेपी ने तैलिक साहू-राठौर के महाकुंभ को हुंकार रैली का नाम दिया। इसके लिए सरकार जल्द ही तेलघानी बोर्ड का गठन करेगी। इस महाकुंभ के  लिए एक साल तक जन जागरण यात्रा निकाली जाएगी। बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस भी तैलिक साहू समाज की सभी मांगों को पूरा करने का वचन दे चुकी है। 

Created On :   3 April 2023 10:14 AM GMT

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