विपक्ष के पास मंदिर-मस्जिद विवाद का सामना करने का कोई मजबूत एजेंडा नहीं
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत पूर्ण बहुमत की सरकार का बीजारोपण पार्टी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने साल 1990 में अपनी रथयात्रा के दौरान ही कर दिया था।
सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए निकली आडवाणी की इस रथयात्रा ने भाजपा के विस्तार में मदद की। साल 1984 के लोकसभा चुनाव में महज दो सीट पर सिमटी भाजपा रथयात्रा के बाद 1991 के चुनाव में करीब 120 लोकसभा सीटों पर विजयी रही।
अयोध्या ने भाजपा को पांच-पांच बार सत्ता में आने का मौका दिया। भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी की अगुवाई में पहली बार साल 1996 में 13 दिन की, दूसरी बार साल 1998 में 13 माह की और फिर 1999 में पांच साल की गठबंधन सरकार सत्ता में रही। इसके बाद आया साल 2014, जब भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में आई और उसने 2019 के चुनाव में भी अपनी जीत की गति बरकरार रखी।
साल 2014 और साल 2019 का लोकसभा चुनाव, जहां भाजपा को अर्श पर पहुंचाने में कामयाब रहा, वहीं दूसरी तरफ इसने कांग्रेस को फर्श पर पहुंचा दिया।
रथयात्रा एक धार्मिक यात्रा थी, लेकिन इसका लक्ष्य राजनीतिक था। आडवाणी ने यह रथयात्रा बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्थन में निकाली थी।
इसी यात्रा के बाद बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया और अब उस जगह पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मंदिर का निर्माण कार्य किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही मस्जिद के निर्माण के लिए प्राइम लोकेशन पर पांच एकड़ जमीन मुहैया कराए जाने का आदेश भी उत्तर प्रदेश सरकार को दिया था।
अब जब बाबरी मस्जिद के विवाद का निपटारा हो चुका है तो ज्ञानवापी मस्जिद विवाद सुर्खियां बटोर रहा है। कांग्रेस ने इसे भाजपा की मुद्दों से भटकाने की नीति कहा है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक विनोद शुक्ला इस पर बिल्कुल जुदा राय रखते हैं।
शुक्ला का कहना है कि भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए इस तरह का कोई मुद्दा उठाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हिंदू पहले ही जागृत हो गए हैं। इस बात का परिणाम 2019 का लोकसभा चुनाव का नतीजा है। भाजपा बहुत मजबूत है और उसे ऐसे भावनात्मक मुद्दों को भुनाने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा कि अन्य जगहों पर भी यह मामला उठ रहा है, क्योंकि अब समुदाय के अंदर यह बात आ गई है कि अतीत में की गई गलतियों को अब ठीक किया जाना चाहिए।
दूसरे विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने असली मुद्दों को पीछे की सीट पर रख दिया है और मीडिया भी इसमें सहयोगी रहा है। राजनीतिक विश्लेषक शकील अख्तर ने कहा कि भाजपा को महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जवाब देना चाहिए ।
उन्होंने कहा कि किसी भी भावनात्मक मुद्दे का राजनीति पर प्रभाव रहता है और भाजपा के पास बहुमत है और उसके पास सभी संसाधन हैं। ऐसे में वह मौके का लाभ उठाएगी।
अगला लोकसभा चुनाव 2024 में है और तब तक इस माहौल को बनाए रखना भाजपा के हित में है। भाजपा पहले ही राममंदिर का पूरा क्रेडिट ले चुकी है।
एक तरफ भाजपा इस मुद्दे को लेकर इतनी मजबूती से खड़ी है लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस के पास इसे चुनौती देने का कोई मजबूत एजेंडा नहीं है। हाल में संपन्न हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में पार्टी ने हिंदुत्व के मुद्दे पर चर्चा की, लेकिन ज्ञानवापी को लेकर कोई चर्चा नहीं की गई।
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Created On :   22 May 2022 6:30 PM IST