राज्यसभा में झारखंड निवासी पहली महिला सांसद बनीं महुआ माजी, बोलीं- जल, जंगल, जमीन की आवाज उठाऊंगी

Mahua Maji became the first woman MP from Jharkhand in Rajya Sabha, said - I will raise the voice of water, forest, land
राज्यसभा में झारखंड निवासी पहली महिला सांसद बनीं महुआ माजी, बोलीं- जल, जंगल, जमीन की आवाज उठाऊंगी
झारखंड राजनीति राज्यसभा में झारखंड निवासी पहली महिला सांसद बनीं महुआ माजी, बोलीं- जल, जंगल, जमीन की आवाज उठाऊंगी

डिजिटल डेस्क, रांची। हिंदी की जानी-मानी लेखिका-साहित्यकार महुआ माजी संसद के उच्च सदन राज्यसभा के लिएचुनी जाने वाली झारखंड निवासी पहली महिला बन गयी हैं। झारखंड से इसके पहले वर्ष 2006 में माबेल रिबेलो कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में झारखंड से राज्यसभा पहुंची थीं, लेकिन वह कर्नाटक की रहनेवाली हैं।

महुआ माजी तीन वर्षों तक झारखंड प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष रही हैं, परउनकी सबसे बड़ी पहचान हिंदी साहित्य की लेखिका-साहित्यकार के रूप में रही है। यह पहली बार है, जब इस तरह की पृष्ठभूमि की कोई शख्सियत राज्यसभा में झारखंड का प्रतिनिधित्व करेगी। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर शुक्रवार को निर्विरोध जीत दर्ज की।

निर्वाचन का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद महुआ माजी ने आईएएनएस से कहा कि वह झारखंड के जल, जंगल, जमीन के हक की आवाज संसद में उठायेंगी। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन गुरुजी, राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और पार्टी के प्रति आभार जताते हुए कहा कि राज्यसभा भेजकर राज्य की बेटियों को सम्मान दिया गया है। उन्होंने कहा कि झारखंड की अपनी माटी का कर्ज और इसके प्रति अपना फर्ज कभी भूल नहीं सकती। झारखंड प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष के तौर पर काम करते हुए इस राज्य की आधी आबादी की छोटी-बड़ी तमाम समस्याओं से बेहद करीब से अवगत हुई हूं। समाजशास्त्र की छात्रा और साहित्य से गहरे जुड़ाव होने ने मुझे संवेदनशीलता दी है और मुझे उम्मीद है कि मैं सदन में इस प्रदेश के मुद्दों की ओर देश और सरकार का ध्यान खींचूंगी।

बता दें कि महुआ माजी के दो उपन्यास मैं बोरिशाइल्ला और मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ न सिर्फ बेहद चर्चित हुए, बल्कि इनके लिए देश-विदेश में उन्हें कई सम्मान भी मिले। उन्हें मैं बोरिशाइल्ला के लिए वर्ष 2007 में लंदन के हाउस ऑफ लॉर्डस में आयोजित समारोह में अंतरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान से नवाजा गया। इस उपन्यास में उन्होंने बांग्लादेश के उदय के पहले विभाजन की पीड़ा बयां की है। महुआ माजी का परिवार बांग्लादेश बनने से बहुत पहले भारत आकर बसा था।

मैं बोरिशाइल्ला अंग्रेजी में मी बोरिशाइल्ला के नाम से छपा, जिसे सापिएन्जा युनिवर्सिटी ऑफ रोम में मॉडर्न लिटरेचर के स्नातक पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है। उनका दूसरा उपन्यास मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ झारखंड के जादूगोड़ा में यूरेनियम खनन के दुष्प्रभावों पर केंद्रित था। उनकी रचनाओं का प्रकाशन हंस, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वागर्थ जैसी पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है।

कई रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी, बांग्ला, पंजाबी सहित कई भाषाओं में हो चुका है। उन्हें मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी तथा संस्कृति परिषद के अखिल भारतीय वीर सिंह देव सम्मान, उज्जैन की कालिदास अकादमी के विश्व हिंदी सेवा सम्मान, लोक सेवा समिति के झारखंड रत्न सम्मान, झारखंड सरकार के राजभाषा सम्मान और राजकमल प्रकाशन कृति सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।

10 दिसम्बर, 1964 को जन्मीं महुआ माजी का परिवार दशकों से रांची में हैं। समाज शास्त्र में स्नातकोत्तर और पीएचडी की डिग्री ली है और यूजीसी की नेट परीक्षा पास हैं। इसके अलावा फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट पुणे से फिल्म ऐप्रिसिएशन कोर्स तथा रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से फाइन आर्ट्स में अंकन विभाकर की डिग्री भी उन्होंने हासिल की है।

 

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Created On :   3 Jun 2022 9:00 PM IST

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