MP Crisis: कांग्रेस छोड़कर ज्योतिरादित्य ने दादी के सपने को किया साकार, जानें भाजपा से कितना पुराना है सिंधिया परिवार का कनेक्शन
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति के "महाराज" कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को होली के मौके पर ऐसा झटका दिया कि पूरी पार्टी के नेता होली का पर्व मनाना तो दूर किसी को हैप्पी होली भी नहीं कह पाए। दरअसल लंबे से समय से उपेक्षा का शिकार हो रहे सिंधिया ने मंगलवार को अखिरकार कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पार्टी छोड़ने का पत्र सौंपने के बाद बुधवार को भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। सिंधिया को दिल्ली मे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भाजपा की सदस्यता दिलाई। सिंधिया ने यह कदम कांग्रेस की ओर से 18 साल राजनीति में रहने के बाद उठाया, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया पहले ही चाहती थी कि वे भाजपा में शामिल हों। जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में रहीं राजमाता के नाम से मशहूर विजयाराजे सिंधिया चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में लौट आए।
बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से 4 बार सांसद और केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं, बावजूद इसके उन्हें मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद लगातार उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा थ। अब माना जा रहा है कि जिस सम्मान के लिए सिंधिया कांग्रेस में लड़ रहे थे, वो सम्मान उन्हें भाजपा में दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी राज्यसभा भेज सकती है और इस तरह उन्हें संसद सत्र के बाद कैबिनेट विस्तार कर मोदी सरकार में शामिल किया जा सकता है।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 से की राजनीति में शुरुआत
जानकारी के मुताबिक विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की। वह गुना लोकसभा सीट से पहली सांसद चुनी गईं, मात्र दस साल में उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया और 1967 में वह जनसंघ में चली गईं। विजयाराजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ यहां की 3 सीटें जीतने में कामयाब रहा। खुद विजयाराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने।
इमजेंसी के बाद मां से अलग हो गए थे माधवराव सिंधिया
गुना पर लंबे समय तक सिंधिया परिवार का कब्जा रहा। यहां से माधवराव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे, लेकिन वह बहुत दिन तक जनसंघ में नहीं रुके। 1977 में इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा इमरजेंसी लगाने के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयाराजे सिंधिया से अलग हो गए। 1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस का दामन थामा और केंद्रीय मंत्री भी बने।
वसुंधरा और यशोधरा की भाजपा में एंट्री
दूसरी ओर विजयाराजे सिंधिया की बेटियों वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया ने भी राजनीति में एंट्री की। 1984 में वसुंधरा राजे बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। वह कई बार राजस्थान की सीएम भी बन चुकी हैं। उनके बेटे दुष्यंत भी बीजेपी में शामिल होकर राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं। 1977 में यशोधरा राजे सिंधिया अमेरिका चली गईं। उनके तीन बच्चे हैं, लेकिन वे राजनीति से दूर हैं। 1994 में भारत लौटने पर यशोधरा मां की इच्छा के अनुसार भाजपा में शामिल हुईं और 1998 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। 5 बार विधायक रह चुकी यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रही हैं।
पिता की मौत के बाद विरासत में मिली राजनीति
पिता माधवराव सिंधिया की छत्रछाया में ज्योतिरादित्य राजनीति के गुर सिखते रहे। 2001 में एक विमान हादसे में पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद गुना सीट पर 2002 में हुए उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। इसके बाद वे कभी इस क्षेत्र से चुनाव नहीं हारे, 2002 की जीत के बाद वो 2004, 2009 और 2014 में भी सांसद निर्वाचित हुए।ज्योतिरादित्य केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकारों (2004-2014) में मंत्री रहे। 2007 में उन्हें संचार और सूचना तकनीक मामलों का मंत्री बनाया गया, 2009 में वे वाणिज्य व उद्योग मामलों के राज्य मंत्री बने और 2014 में वे ऊर्जा मंत्री बने। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में वे मोदी लहर के आगे नहीं टिक सके और चुनाव हार गए। सिंधिया को कभी उनके साथ सहयोगी रहे कृष्णपाल सिंह यादव ने उन्हें मात दी।
2018 विधानसभा चुनाव में सीएम पद के लिए पोस्टर बॉय थे सिंधिया
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य ने जमकर मेहनत की। वे मप्र विधानसभा चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा चुनावी सभा करने वाले नेता थे। इस दौरान वे कांग्रेस के सीएम पद के सबसे बड़े पोस्टर बॉय थे, लेकिन मतदान से कुछ समय पहले कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और कांग्रेस की सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी बनी। कांग्रेस ने सरकार तो बनाई, लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम नहीं बन सके और मन मसोस कर रह गए। इसके छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुई। सीएम न बन पाने के बावजूद लगभग 23 विधायक ऐसे हैं, जिन्हें सिंधिया के खेमे का माना जाता है। इसमें से 6 को मंत्री भी बनाया गया। इन्हीं में से कुछ विधायकों ने कमलनाथ की सरकार को मुश्किल में डाल दिया है।
राज्यसभा के लिए उम्मीदवार न चुने जाने पर भाजपा में जाने का फैसला लिया
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को अकेला महसूस कर रहे थे। बार-बार मांग करने के बावजूद उन्हें मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद भी नहीं दिया गया। इसके बाद जब राज्यसभा सदस्य चुनने की बारी आई तो भी सिंधिया को किनारा कर प्रियंका गांधी को उम्मीदवार बनाए जाने की खबर ने आग में घी डालने का काम किया और सिंधिया ने कांग्रेस दामन छोड़ भाजपा के साथ होने का फैसला लिया।
Created On :   10 March 2020 3:03 PM IST
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