विश्वविद्यालयों के कानूनों को यूजीसी के नियमों के अनुरूप करने की जरूरत
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के बीच जारी तीखी नोकझोंक उस समय एक राजनीतिक विवाद में तब्दील हो गई, जब खान ने नौ राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (वीसी) से इस्तीफा देने के लिए कहा। पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, तिरुवनंतपुरम के कुलपति की नियुक्ति को रद्द कर दिया।
शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुए खान ने नौ अन्य कुलपतियों को इस्तीफा देने का निर्देश दिया और उनके इस्तीफे के लिए एक समय सीमा तय की। उन्होंने वीसी को कारण बताओ नोटिस दिया और यह बताने के लिए कहा कि उनकी नियुक्तियों को क्यों न अवैध माना जाना चाहिए। गौरतलब है कि राज्यपाल सभी राज्य विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति होते हैं। मामले में शीर्ष अदालत के समक्ष सवाल आया कि क्या ए.पी.जे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में डॉ. राजश्री एम.एस की नियुक्ति यूजीसी के नियमों के अनुसार है।
इस सवाल का जवाब देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने गुजरात के सरदार पटेल विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति पर विचार करते हुए एक समान प्रश्न का फैसला किया। एसपी विश्वविद्यालय के मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि कुलपति की नियुक्ति में यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) के नियमों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि राज्य अधिनियम यदि यूजीसी के नियमों के बराबर नहीं है, तो इसे यूजीसी नियमों के समान बनाने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए और तब तक यूजीसी नियम लागू रहेगा।
शीर्ष अदालत ने इस साल 3 मार्च को सरदार पटेल विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को रद्दे करते हुए कहा राज्य के कानून और केंद्रीय कानून के बीच किसी भी संघर्ष की स्थिति में केंद्रीय कानून, यानी यूजीसी के नियम ही प्रभावी होंगे। गौरतलब है कि समवर्ती सूची में निहित है। ए.पी.जे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि खोज समिति की सिफारिश पर यूजीसी के प्रावधानों के विपरीत की गई वीसी की प्रारंभ से ही शून्य होगी।
शीर्ष अदालत ने कहा, राज्य व संघ के कानूनों में विरोध होने पर तो संघ का कानून संविधान के अनुच्छेद 254 के अनुसार उस सीमा तक प्रभावी रहेगा, जहां तक कि राज्य विधान का प्रावधान प्रतिकूल नहीं है। अदालत ने अपने पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि यूजीसी नियमों को राज्य सरकार द्वारा अक्टूबर 2010 में स्वीकार किया गया था। कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि बाद के संशोधन को राज्य द्वारा विशेष रूप से अपनाया/स्वीकार नहीं किया गया है, राज्य द्वारा यह तर्क देने का आधार नहीं हो सकता है कि नियमों में संशोधन राज्य / राज्य के विश्वविद्यालयों पर बाध्यकारी नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि कुलपति की नियुक्ति समय-समय पर संशोधित यूजीसी नियमों के अनुसार होगी।
राज्यपाल खान का कहना था कि नौ वीसी या तो खोज समिति द्वारा तीन से पांच नामों के पैनल के बजाय एक ही नाम प्रस्तुत कर नियुक्त किए गए थे या एक ही समिति द्वारा चुने गए थे। जब कुलपतियों ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया तो खान ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया। इस पर उन्हें 3 नवंबर तक जवाब देना था। लेकिन नोटिस को चुनौती देते हुए कुलपतियों ने केरल उच्च न्यायालय का रुख किया। केरल उच्च न्यायालय ने 24 अक्टूबर को राहत देते हुए कहा कि मामले में कुलाधिपति के आदेश को रद्द किया जाता है। न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन की एकल पीठ ने कहा कि किसी को भी इस्तीफा देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। एक बार कुलाधिपति ने याचिकाकर्ताओं को कारण बताओ का अवसर प्रदान किया है, इसका मतलब है कि वे अभी भी सेवा में हैं।
(आईएएनएस)
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Created On :   30 Oct 2022 5:00 PM IST