पीएम मोदी को क्यों याद आए पसमांदा मुस्लिम? आखिर क्या है इसके सियासी मायने
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बीजेपी की दो दिवसीय कार्यकारिणी बैठक आज संपन्न हो गई है। आज की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मुस्लिम समाज के बारे में गलत बयानबाजी ना करें। पार्टी के कार्यकर्ताओं को पसमांदा मुस्लिम समाज से मिलना चाहिए। पीएम मोदी ने आगे कहा कि, समाज के सभी वर्गों से मुलाकात करें। चाहे वो वोट दें या ना फिर दें। आइए समझते हैं कि पीएम मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में पसमांदा मुस्लिम समाज का जिक्र क्यों किया? आखिर इसके सियासी मायने क्या हैं और क्या इसका फायदा बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनाव में मिल सकता है।
पीएम मोदी को याद आए पसमांदा मुस्लिम
मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी के कार्यकताओं को मुस्लिमों के बीच जाने और पसमांदा मुस्लिमों पर फोकस करने को कहा है। भले ही बीजेपी की पकड़ मुस्लिम समाज में बेहद कम हो, लेकिन भाजपा के पुराने रिकॉर्ड्स को देखे तो यह काफी चौंकाने वाले हैं। बता दें कि, पसमांदा मुस्लिमों का एक तबका बीजेपी को ही वोट देता आ रहा है।
पसमांदा मुस्लिम वोटर्स पर बीजेपी की नजर
अब भाजपा पसमांदा मुस्लिमों को तेजी से जुटाने में लग गयी है। बीजेपी लगातार इसके लिए प्रयास कर रही है। पिछले साल बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के बरेली में पसमांदा मुस्लिमों की रैली निकली थी। इस रैली में बड़ी संख्या में भीड़ मौजूद थी, मुस्लिमों की ओर से योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी के लिए जिंदाबाद के नारे लगाए गए थे। जिसके बाद से यह साफ हो गया कि बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों को एक जुट करने में लग गई है और इसका असर भी दिखने लगा। भाजपा यह कहती रही है कि उनकी सरकारें कभी भी किसी जाति और धर्म के आधार पर योजनाओं का निर्माण नहीं करती है। इन योजनाओं का ज्यादा फायदा अल्पसंख्यकों को मिला है।
भाजपा की मुस्लिमों के बीच पैठ से बाकी राजनीतिक दल जो सेकुलरिज्म की राजनीति करते हैं, उनकी भी नींद हराम हो चुकी है। यूपी में सपा और बसपा, महाराष्ट्र में कांग्रेस, गुजरात में कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियों को बीजेपी के रणनीति से बड़ा झटका लग सकता है। इससे पहले भाजपा ने कई राज्यो में 40 फीसदी से भी अधिक वोट मिल चुके हैं। ऐसे में अल्पसंख्यको के बीच बढ़ती पहुंच से फायदा होना साफ है। चुनाव के नतीजों से यह पता लग जाएगा कि असल में पार्टी की अल्पसंख्यकों के बीच कितनी पकड़ है।
जानें कौन हैं पसमांदा मुस्लिम?
जानकारों की माने तो पसमांदा मुसलमानों को बाकी मुस्लिमों की तुलना में निचले दर्जे का माना जाता है। बताया जाता है कि जिन लोगों ने अपने धर्म को त्याग कर इस्लाम को अपनाया है, उन्हें ही पसमांदा मुस्लिम माना जाता है। धर्म परिवर्तन करने वाले मुसलमान स्थानीय आबादी का हिस्सा थे और काफी समय के बाद इन लोगों ने धर्म अपनाया है। इनमें से ज्यादातर लोगों ने अपने व्यवसाय के आधार पर ही अपने नाम का टाइटल रखा। जैसे अंसारी लोगों को बुनकर, कुरैशी (कसाई) के रूप में पहचाना जाने लगा।
क्या पसमांदा मुसलमान बनेंगी 2024 में मोदी की जीत की वजह?
दिल्ली में हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद से ही पसमांदा मुसलमानों से बीजेपी ने खुद को जोड़ने के लिए अपना प्लान तैयार ही नहीं किया बल्कि उस पर काम भी करना शुरू कर दिया है। हालांकि 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भुवनेश्वर की रैली में पसमांदा मुसलमानों के मुद्दे को उठाया था। लेकिन 2017 में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने इस मुद्दे को नहीं छुआ। तब तक पार्टी कट्टर हिंदुत्व के मुद्दे पर ही चुनाव जीतना चाहती थी।
किंतु दो बार लोकसभा में स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाने वाली बीजेपी अब अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है। बीजेपी यह मानकर चल रही है कि कोर वोटर के रूप में हिंदू उसका समर्थन करते रहेंगे, वहीं पिछले दोनों राष्ट्रपति चुनावों में रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर उसने दलित वोटरों को भी मैसेज देने का काम किया कि बीजेपी केवल ब्राम्हण और पिछड़ों की ही नहीं बल्कि दलितों की भी पार्टी है। लेकिन बीजेपी का अगला लक्ष्य है कि मुसलमानों के एक बड़े वर्ग को अपने साथ लाना है इसलिए वह पसमांदा मुसलमानों पर फोकस कर रही है।
Created On :   17 Jan 2023 8:21 PM IST