जानिए गुजरात की उन सीटों का किस्सा, जहां कभी नहीं खिला भाजपा का कमल

Know the story of those seats of Gujarat, where BJPs lotus never blossomed
जानिए गुजरात की उन सीटों का किस्सा, जहां कभी नहीं खिला भाजपा का कमल
गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 जानिए गुजरात की उन सीटों का किस्सा, जहां कभी नहीं खिला भाजपा का कमल

डिजिटल डेस्क, अहमदाबाद। इलेक्शन कमीशन ने आज गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया। दो चरणों में होने वाले चुनावों को लेकर पार्टियों ने हर सीट को लेकर मंथन करना शुरू कर दिया है। 27 साल से गुजरात की सियासी गद्दी पर विराजमान बीजेपी पूरी दमखम के साथ चुनावों में जुट गई है और फिर से सत्ता पर काबिज होना चाहती है। आपको बता दें गुजरात में 1 दिसंबर को 89 सीटों पर पहला चरण व  93 सीटों पर दूसरा चरण 5 दिसंबर को होगा। जबकि चुनावी नतीजे 8 दिसंबर को घोषित होगे।

गुजरात गठन के इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि 1960 में महाराष्ट्र से अलग होकर गुजरात ने नए राज्य के रुप में अस्तित्व में आया।  1962 में सूबे में पहली बार चुनाव हुआ और जनता ने कांग्रेस के हाथों में गुजरात की कमान सौंपी। जो लंबे समय तक कांग्रेस के हाथों में बरकरार रही है। 1995 में पहली बार बीजेपी ने कांग्रेस को मात दी, और कांग्रेस के हाथों से गुजरात की सियासी कुर्सी छीनीं थी। 1995  में जीती बीजेपी का आज तक सूबे की सियासत पर कब्जा बरकरार है।  इससे पहले आपको बता दें कि, बीते 27 सालों से  भले ही प्रदेश में बीजेपी का कमल खिला हुआ है। यानि प्रदेश की सत्ता लगातार ढाई दशक से बीजेपी के पास रही है। लेकिन कुछ विधानसभा सीटें ऐसी है जहां कभी कमल नहीं खिला हैं।

बीजेपी के लिए 8 सीटें बनती है चुनावी सिर दर्द
गुजरात को बीजेपी का गढ़ ही नहीं सियासी प्रयोगशाला भी माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में  बीजेपी को कुल 182 विधानसभा सीटों में से 99 सीटें मिली थी। इस बार भी बीजेपी कांग्रेस के जीतने के सपने को चकनाचूर करने के फिराक में है। बीजेपी ने इस बार में 182 सीटों में से 160 प्लस सीटों का टारगेट रखा है। ऐसे में बोरसद, झगडिया, आंकलाव, दाणी लिमडा , महुधा, गरबाडा और व्यारा विधानसभा सीटें जीतना बीजेपी के लिए सिरदर्द बना हुआ है।  क्योंकि इन सीटों पर  आज तक बीजेपी ने जीत हासिल नहीं की है। बीजेपी इस बार इन सीटों को जीतकर इतिहास बदलने की कोशिश में है। 

नीचे उन सीटों के नाम  दिए गए है, जिन पर आज तक बीजेपी ने जीत दर्ज नहीं की।

बनासकांठा जिले की दांता
साबरकांठा की खेड ब्रह्मा
अरवल्ली की भिलोड़ा
राजकोट की जसदण और धोराजी
खेड़ा जिले की महुधा
आणंद की बोरसद
भरूच की झगडिया
तापी जिले की व्यारा

दांता, खेडब्रह्मा, भिलोड़ा, झागड़िया और व्यारा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें हैं जबकि जसडण, धोराजी, महुधा और बोरसड सामान्य श्रेणी में आती हैं। 

बोरसद सीट 
गुजरात की बोरसद विधानसभा सीट  आणंद जिले के अधीन है। यहां बीजेपी ने कभी भी जीत हासिल नही की है। बोरसद सीट पर 1962 से अब तक कुल 15 बार चुनाव हुए हैं। यहां दो बार उपचुनाव भी हुआ था, पर 1962 में हुए प्रदेश के पहले चुनाव में इस सीट पर एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल करी थी। 1967 के चुनाव के बाद से आज तक यहां कांग्रेस का कब्जा रहा है। वर्तमान में यहां से राजेंद्र सिंह परमार कांग्रेस के विधायक हैं। 
झगडिया सीट 
गुजरात की झगडीया विधानसभा सीट पर 1962 से अब तक13 बार चुनाव हुए हैं। यहां कांग्रेस, जनता दल, जेडीयू और बीटीपी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है, पर आजतक बीजेपी जीत हासिल नहीं कर सकी है। झगडिया सीट आदिवासी बहुल सीट मानी जाती है। झगडिया सीट पर पिछले 35 सालों से छोटू भाई वसावा जीतें आ रहे है। 
व्यारा सीट 
गुजरात में व्यारा विधानसभा सीट को कांग्रेस का घर कहा जा सकता है।  पिछले 60 सालों से गुजरात की व्यारा विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। यह भी आदिवासी बाहुल्य सीट है। यहां अब तक 14 बार चुनाव हुए और हर बार कांग्रेस को जीत मिली है। वर्तमान में यहां कांग्रेस के गामीत पुनाभाई ढेडाभाई विधायक है।  

महुधा सीट 
गुजरात की खेड़ा जिले की महुधा विधानसभा आदिवासी बहुल सीट है। यहां से 6 बार कांग्रेस के नटवर सिंह ठाकोर विधायक रहे  हैं। कांग्रेस ने 2017 के चुनाव में इंद्रजीत सिंह परमार को महुधा से टिकेट दिया था। जिन्होंने बीजेपी के भरत सिंह परमार भारी मतो से हार का सामना देखने को मिला। 

गरबाडा सीट 
गरबाडा विधानसभा सीट गुजरात के दाहोद जिले के अंतर्गत  आती है। यह विधानसभा सीट भी आदिवासी बहुल सीट है, जहां कांग्रेस के बारिया चंद्रिकाबेन छगनभाई लगातार दो बार विधायक रहे हैं।

दाणी लिमडा सीट
दाणी लिमडा सीट अहमदाबाद (शहरी ) में आती हैं। यहां पर 1975 से कांग्रेस का जीतते आ रही है। यहां कांग्रेस के परमार शैलेष मनहर भाई विधायक है। कांग्रेस यहां अपना दबदबा कायम रखने के लिए इस बार एड़ी चोटी का जोर लगा रही है।

आंकलाव सीट 
आणंद जिले का आंकलाव सीट 2012 में घोषित की गई। इसके पहले आंकलाव बोरसद विधानसभा क्षेत्र के अंदर आती थी। इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। अभी यहां से अमित चावड़ा विधायक हैं। 

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित वलसाड जिले की कपराडा सीट ऐसी सीट है, जिसे बीजेपी 1998 के बाद हुए किसी भी चुनाव में जीत नहीं सकी है। हालांकि आपको बता दें  यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। परिसीमन से पहले यह सीट मोटा पोंढा के नाम से अस्तित्व में थी।  इसके ज्यादातर हिस्से को शामिल कर 2008 में कपराडा सीट अस्तित्व में आई थी और 1998 से इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा।

आपको बता दें इनमें से अधिकतर सीट आदिवासी बहुल सीट है। एसटी वोटर को कांग्रेस का परंपरागत मतदाता माना जाता है। जिसके चलते इन सीटों पर अभी तक कांग्रेस ही जीतती चली आ रही है। लेकिन आने वाले चुनाव में इन सीटों पर कड़ा मुकाबला होते हुए नजर आएंगा।

 

Created On :   3 Nov 2022 4:51 PM IST

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