केसीआर : भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देने वाले पहला तेलंगाना नेता

KCR: First Telangana leader to challenge BJP at national level
केसीआर : भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देने वाले पहला तेलंगाना नेता
तेलंगाना केसीआर : भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देने वाले पहला तेलंगाना नेता
हाईलाइट
  • केसीआर : भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देने वाले पहला तेलंगाना नेता

डिजिटल डेस्क, हैदराबाद। तेलंगाना को अलग राज्य बनने की मांग तत्कालीन निजाम के स्वतंत्र भारत में विलय और तेलुगू भाषी राज्य आंध्र प्रदेश का हिस्सा बनने के दिनों से उठने लगी थी। इसी मांग को लेकर कई आंदोलन विफल रहे, लेकिन 2001 में जब तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के साथ केसीआर के रूप में लोकप्रिय के. चंद्रशेखर राव ने कदम रखा, तो मानो आंदोलन को एक नई ताकत मिल गई।

2014 में केसीआर ने तेलंगाना राज्य के आंदोलन को एक निष्कर्ष तक पहुंचाया और एक अलग राज्य का दर्जा हासिल किया। साथ ही अपनी पार्टी को चुनावी जीत के लिए प्रेरित किया और नवोदित राज्य के पहले मुख्यमंत्री बन गए। अपने राजनीति करियर में इतनी बड़ी सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

वह 2018 के विधानसभा चुनावों में भी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटे। 2023 में चुनाव में तीसरी जीत के लक्ष्य के साथ वह अब राष्ट्र के लिए एक गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेसी विकल्प की पेशकश करके राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करते हुए केसीआर एनटी रामाराव द्वारा स्थापित तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) में शामिल हो गए थे। अप्रैल 2001 में केसीआर चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेदेपा से बाहर हो गए, जो आंध्र प्रदेश में शीर्ष पर थी।

केसीआर ने तेलंगाना राज्य को प्राप्त करने और अपने शोषित सहयोगियों के हितों की रक्षा करने के लिए सिंगल-प्वाइंट एजेंडे के साथ टीआरएस के गठन की घोषणा की। इस दौरान कई नेताओं ने उनका विरोध किया, उपहास किया, लेकिन इन सबके बावजूद केसीआर ने अपने अभियान को जारी रखा।

पहला कामयाबी तब मिली, जब केसीआर ने 2004 के आम चुनावों के लिए वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया। 10 साल बाद आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में मदद करने के अलावा, गठबंधन ने केंद्र में एनडीए को बेदखल करने में मदद की। 5 लोकसभा सीटों और 26 विधानसभा सीटों के साथ टीआरएस ने राज्य की राजनीति में कमजोर खिलाड़ी होने की धारणा को तोड़ा। केसीआर को केंद्र में मनमोहन सिंह कैबिनेट में शामिल किया गया था।

हालांकि, वह तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने के मामले में कांग्रेस पार्टी के कदम से नाखुश थे। इस अवधि में टीआरएस विधायकों और नेताओं को लुभाने के लिए कांग्रेस ने भरपूर प्रयास किया, लेकिन टीआरएस ने 2006 में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार छोड़ दी। केसीआर ने कैबिनेट और लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। वह अपनी बात को साबित करने के लिए भारी बहुमत के साथ संसद लौटे और तेलंगाना राज्य के लिए समर्थन जुटाने के अपने प्रयासों को फिर से शुरू किया।

2009 में केसीआर ने महाकुटमी या गैर-यूपीए, गैर-एनडीए महागठबंधन बनाने के लिए अपने पूर्व बॉस चंद्रबाबू नायडू और कुछ अन्य दलों के साथ हाथ मिलाया। इस कदम का प्रत्यक्ष उद्देश्य राज्य का दर्जा हासिल करना और कांग्रेस को हराना था।

हालांकि, आम चुनावों में कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में जीत हासिल की और लगातार दूसरी बार केंद्र में यूपीए की अप्रत्याशित रूप से सत्ता में वापसी में बड़े पैमाने पर योगदान दिया। दिलचस्प बात यह है कि मतदान के लगभग तुरंत बाद केसीआर ने एनडीए के साथ गठबंधन कर लिया, जो यूपीए से हार गया था।

इस कदम से केसीआर को काफी आलोचनाओं को सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा।कुछ महीने बाद एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी का निधन हो गया। खाली हुई सीएम की कुर्सी को पाने के लिए केसीआर फौरन हरकत में आ गए। उन्होंने अपने राज्य के निर्माण के लिए भूख हड़ताल शुरू कर दी। उनके आह्वान से लोगों ने खुद को सामाजिक और जाति-आधारित समूहों में संगठित किया और सड़कों पर उतर आए।

बढ़ते-विरोध को देख यूपीए ने आखिरकार राज्य की मांग को स्वीकार कर लिया। काफी ड्रामे के बीच संसद के दोनों सदनों में इस मामले को मंजूरी दे दी गई और 2 जून 2014 को तेलंगाना एक राज्य बन गया।कांग्रेस जब 2014 के चुनावों के लिए केसीआर के साथ गठबंधन करने का मौका तलाश रही थी, तब केसीआर ने उन्हें झटका देते हुए अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया और विधानसभा में 63 सीटों के साथ टीआरएस की जीत का नेतृत्व किया।

केसीआर एक ऐसे राजनेता के रूप में उभरे, जो जानते हैं कि हवा किस तरफ बह रही है। केसीआर का भाजपा के साथ प्यार और नफरत का रिश्ता रहा है। अपने शुरुआती कार्यकाल में वह सौहार्दपूर्ण शर्तो पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रहे। हाल के वर्षो में जब प्रधानमंत्री पर हमला करने की बात आती है तो केसीआर बोलने से बचते नजर आए थे।

केसीआर ने संकेत दिए हैं कि वह विरोधी दलों को एकजुट कर क्षेत्र में चुनावी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। विभिन्न राज्यों में मृत किसानों और शहीद सैनिकों के परिवारों को नकद सहायता देने, देशभर के किसानों के लिए संभावित मुफ्त की घोषणा करने के लिए केसीआर राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं।

 

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Created On :   11 Sept 2022 2:00 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story