गुजरात सरकार कर रही आउटसोर्सिग, राज्य के सामाजिक-आर्थिक हालात बिगड़ने का अंदेशा
डिजिटल डेस्क, गांधीनगर। गुजरात सरकार वित्तीय जिम्मेदारियों को कम करने के मूड में है, जिसके लिए वह कॉन्ट्रैक्चुअल और विशेष एम्प्लॉमेंट, यहां तक कि आउटसोर्सिग भी ले रही है, जिसका दूरगामी सामाजिक-आर्थिक असर होगा। पिछले बुधवार को राज्य सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट की शर्तो पर 2006 से पहले काम पर रखे गए कर्मचारियों को निश्चित वेतन लाभ देने का फैसला किया। राज्य के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने कहा कि इससे करीब 42,000 कर्मचारियों को फायदा होगा। अनुमानों के अनुसार, कम से कम 5,00,000-6,00,000 कर्मचारी हैं, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा आउटसोर्सिग, संविदा सेवा या विशेष भर्ती के माध्यम से काम पर रखा गया है।
पाटन से कांग्रेस विधायक किरीट पटेल ने आरोप लगाया, मैंने विधानसभा में कई बार राज्य सरकार से ट्रफ आउटसोर्सिग पर रखे गए संविदा कर्मचारियों और श्रमिकों का सही आंकड़ा देने के लिए कहा है, लेकिन सरकार हमेशा इस सवाल से बचती नजर आई है। पटेल के अनुसार, स्वास्थ्य क्षेत्र में कम से कम 20,000 पदों को आउटसोर्स किया गया है, ठेकेदारों के माध्यम से किराए पर लिया गया है, जो सरकार से प्रत्येक कर्मचारी के लिए 28,000 रुपये से 40,000 रुपये चार्ज कर रहे हैं, लेकिन श्रमिकों को मुश्किल से 12,000 रुपये से 20,000 रुपये का भुगतान हो रहा है।
आप नेता युवराज सिंह जडेजा ने कहा कि पंचायत विभाग में 16,000 वैकेंसी हैं, जबकि तलाटी के 6,000 पद खाली हैं, लेकिन राज्य सरकार कोई वित्तीय जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती और भविष्य में पेंशन की देनदारी को लेकर चिंतित है। इसलिए सरकार इस शॉर्टकट का चयन कर रही है। उन्होंने कहा, राज्य सरकार ने लंबे समय से पेरोल पर स्वीपर, चपरासी और अन्य चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को काम पर रखना बंद कर दिया है - यह लैब तकनीशियनों, पैरामेडिक्स और यहां तक कि डॉक्टरों को अनुबंध या तदर्थ आधार पर रखना चाहता है, जिसका हमने नकारात्मक प्रभाव अनुभव किया।
जडेजा ने कहा, लंबे समय से राज्य सरकार ने पेरोल पर स्वीपर, चपरासी और अन्य कर्मचारियों को काम पर रखना बंद कर दिया है। वह लैब तकनीशियनों, पैरामेडिक्स और यहां तक कि डॉक्टरों को अनुबंध या विशेष भर्ती पर रखना चाहती है, जिसका नकारात्मक प्रभाव हमने कोविड महामारी के चरम के दौरान अनुभव किया था।
अर्थशास्त्री रोहित शुक्ला का मानना है कि जितनी अधिक संविदात्मक नौकरियां, कम सामाजिक सुरक्षा, मतलब समाज में उतना ही अधिक सामाजिक तनाव और असमानता, जो देश को एक अप्रत्याशित रास्ते पर ले जा सकती है। रोहित शुक्ला ने कहा, मैं यह समझने में विफल हूं कि सरकार ने यह क्यों सोचना शुरू कर दिया है कि उच्च वेतन-मान और पेंशन राज्य के खजाने पर बोझ होंगे। अर्थशास्त्र में, यह कहा जाता है कि लोगों के हाथों में अधिक धन का मतलब है कि खपत बढ़ेगी या बचत होगी, और दोनों ही जीडीपी को बढ़ावा देंगे।
(आईएएनएस)
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Created On :   21 Aug 2022 10:30 AM IST