गुटों में बंटी पार्टी, अंदरूनी कलह और कार्यकर्ता हतोत्साहित
डिजिटल डेस्क, गांधीनगर। जहां राजस्थान कांग्रेस में मतभेद और गुटबाजी सार्वजनिक रूप से दिखाई दे रही है, वहीं गुजरात कांग्रेस में अभी तक अंदरूनी कलह सार्वजनिक नहीं हुई है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कलह यहां भी गहरी जड़ें जमा चुकी हैं, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास घट रहा है और उनका मनोबल गिर रहा है।
गुजरात कांग्रेस ने केवल दो कार्यकारी अध्यक्षों को नियुक्त करने की योजना बनाई थी, लेकिन जातिगत समीकरणों के नाम पर विभिन्न समूहों को खुश रखने के लिए पांच कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की। नेताओं के पार्टी छोड़ने के डर ने कांग्रेस को इतना जकड़ लिया है कि वह 70 राज्य सचिवों, मीडिया प्रवक्ता और टीम को नियुक्त करने में विफल रही है। पार्टी ने अपने 64 मौजूदा विधायकों को फिर से मनोनीत करने का भी लगभग फैसला कर लिया है, जिससे अन्य महत्वाकांक्षी नेताओं का मनोबल टूट गया है। ऐसे फैसलों की वजह से स्थानीय नेताओं ने पार्टी छोड़ना शुरू कर दिया है, उदाहरण के लिए महिसागर जिले के उपाध्यक्ष उदेसिंह चौहान ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और अब आप के चुनाव चिह्न् पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
पार्टी के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोडवाडिया मानते हैं, राज्य के नेताओं के बीच मतभेद हैं, लेकिन ये मतभेद पार्टी के भीतर तक ही सीमित हैं, हममें से किसी ने भी कभी कोई आरोप नहीं लगाया या सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे को निशाना नहीं बनाया।
विपक्ष के पूर्व नेता परेश धनानी का दावा है कि मतदाताओं के सामने पार्टी की छवि खराब करने के लिए विपक्षी भाजपा और आरएसएस द्वारा कांग्रेस नेताओं के बीच मतभेदों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। दुर्भाग्य से कांग्रेस इस दुष्प्रचार का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में सक्षम नहीं है, यही वजह है कि मतभेद उनके मुकाबले कहीं अधिक दिखते हैं।
वह कहते हैं कि एक भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं है जिसे गुटबाजी का सामना न करना पड़ता हो, लेकिन भाजपा और कांग्रेस में अंतर यह है कि कांग्रेस में गुटबाजी सार्वजनिक रूप से दिखाई देने लगती है। अंदरूनी बातें केवल पार्टी के मंचों पर होनी चाहिए, जबकि भाजपा में गुटबाजी होते हुए भी अदृश्य है। कांग्रेस में गुटबाजी पार्टी की संभावनाओं को चोट पहुंचाती है, भाजपा में व्यक्तिगत नेता इसे ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकते।
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गोहिल कहते हैं कि भाजपा में आप समूहों और मतभेदों के बारे में केवल घटना खत्म होने के बाद ही जान सकते हैं, जबकि कांग्रेस में यह आयोजन से पहले शुरू हो जाता है और कार्यकर्ताओं को प्रभावित करता है और उनका मनोबल गिराता है।
अध्ययन से पता चलता है कि सिद्धार्थ पटेल के नेतृत्व वाले पुराने जनता दल समूह ने पार्टी में राजनीतिक महत्व खो दिया है, जबकि दिवंगत अहमद पटेल के दो कट्टर समर्थक शक्तिसिंह गोहिल और अर्जुन मोडवाडिया सौराष्ट्र में दो छोटे समूहों का नेतृत्व कर रहे हैं। कुछ समय पहले तक भरतसिंह सोलंकी के नेतृत्व में केवल एक समूह था, लेकिन जगदीश ठाकोर को जीपीसीसी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कांग्रेस ओबीसी समूह अब ठाकोर और सोलंकी समूहों में विभाजित हो गया है।
गुजरात कांग्रेस पर राजस्थान संकट का असर चुनाव के समय पार्टी को मिलने वाले फंड पर होगा। गोहिल का मानना है कि चूंकि गुजरात कांग्रेस प्रभारी रघु शर्मा और वरिष्ठ प्रभारी अशोक गहलोत दोनों राजस्थान से आते हैं, इसलिए पार्टी का प्रचार और उम्मीदवारों का चयन कम से कम पंद्रह दिनों तक प्रभावित रहेगा।
(आईएएनएस)
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Created On :   1 Oct 2022 11:30 AM GMT