सियासी विरासत बचाने के मामले में खराब रहा है अखिलेश यादव की पत्नी का रिकॉर्ड, जानिए कौन सी कमजोरी डिंपल यादव की सफलता पर पड़ेगी भारी?
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डिजिटल डेस्क, लखनऊ। समाजवादी संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से खाली हुई मैनपुरी सीट लोकसभा पर उपचुनाव की तारीख का ऐलान होते ही सियासी पारा चढ़ गया है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस सीट से अपनी पत्नी डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि, पहले कयास लगाया जा रहा था कि इस सीट पर सपा सैफई परिवार से ताल्लुक रखने वाले तेज प्रताप यादव, धर्मेंद यादव या फिर चाचा शिवपाल को उतारा जा सकता है लेकिन डिंपल के नाम की घोषणा होने के बाद से सभी अटकलों पर विराम लग गया।
इन सभी के बीच यूपी के राजनीतिक गलियारों में सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या डिंपल यादव सैफई की राजनीतिक विरासत को बरकरार रख पाएंगी? दरअसल, बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से सपा फिरोजाबाद, आजमगढ़, बदायूं और रामपुर जैसी लोकसभा सीटें गंवा चुकी है। ऐसे में डिंपल के सामने अब मुलायम के गढ़ मैनपुरी को बचाने की चुनौती रहेगी। अगर डिंपल के रिकॉर्ड को देखा जाए तो इस मसले पर बहूत ज्यादा सफल नहीं रही हैं।
इस विरासत को पहले गंवा चुकी हैं डिंपल
राजनीति में अक्सर कहा जाता है कि जो बड़े राजनेता होते हैं, वह हमेशा सुरक्षित सीट पर ही चुनाव लड़ते हैं। हालांकि, राजनीति में जनता का मूड कब घूम जाए, इसका अंदाजा लगा पाना मुमकिन नहीं है। कुछ ऐसी ही कहानी सैफई परिवार की है। जिन सीटों पर दशकों से एक ही परिवार का कब्जा रहा हो, उस सीट पर हार मिलना अपने में बड़ी बात है। केंद्र व यूपी में बीजेपी की सरकार सत्ता में आने के बाद से ही सपा की उलटी गिनती शुरू हो गई और कई ऐसी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। जिस सीट पर दशकों से परचम लहराता रहा। साल 2009 अखिलेश यादव कन्नौज व फिरोजाबाद से सांसद चुने गए थे, बाद में उन्होंने फिरोजाबाद से इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में फिरोजाबाद उपचुनाव में अखिलेश ने पत्नी डिंपल को सपा से उतारा था। उस वक्त डिंपल के सामने कांग्रेस से राजबब्बर चुनावी मैदान में उतरे थे।
अखिलेश ने डिंपल को जिताने के लिए लाख कोशिश की लेकिन उनकी एक न चली और अंत में राजबब्बर की जीत हुई थी। इसके बाद वर्ष 2012 में डिंपल कन्नौज लोकसभा उपचुनाव निर्विरोध जीत कर संसद पहुंची। यह सीट अखिलेश के सीएम बनने के बाद इस्तीफा देने से खाली हुई थी। 2014 में मोदी लहर के सामने दोबारा डिंपल यादव काफी कम अंतर 19,907 वोटों से जीत दर्ज की थीं लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार रहे सुब्रत पाठक से चुनाव हार गई थीं। दिलचस्प बात यह थी 2019 लोकसभा चुनाव में बीएसपी व सपा गठबंधन कर चुनाव में उतरी थी और डिंपल को बसपा का समर्थन भी मिला था। फिर कन्नौज की जनता ने डिंपल व सैफई परिवार की बहू को नकार दिया था।
इसी बात की चर्चा अब सियासी गलियों में हो रही कि जब अखिलेश की विरासत को डिंपल नहीं बचा पाईं तो कैसे ससुर मुलायम सिंह यादव की विरासत को बचा पाएंगी। ये डिंपल के सामने बहुत बड़ी चुनौती होगी। मैनपुरी सीट पर अभी तक केवल सपा ने ही चुनाव में जीत दर्ज की है लेकिन मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद से ही बीजेपी इस सीट पर दमदारी से लड़ने की तैयारी बना रही है। क्योंकि हाल ही में आजमगढ़ व रामपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सपा से सीट छीनकर बीजेपी ने अपनी झोली में डाली। ऐसे में बीजेपी का मनोबल काफी बढ़ा है।
बीजेपी बन सकती है डिंपल के लिए मुसीबत
मैनपुरी उपचुनाव में इस बार बीजेपी पूरी तैयारी के साथ चुनाव लड़ने वाली है। यह सीट सपा का गढ़ माना जाता रहा है, बीजेपी ने सपा के उन अभेद्य किलों को भी तोड़ा है, जिस सीट पर सपा के सिवा किसी और दल का आज तक कब्जा नहीं रहा है। इससे बीजेपी की उम्मीदें इस मैनपुरी सीट को लेकर भी बढ़ी है। बताया जा रहा है कि बीजेपी मुलायम सिंह की बहू व बीजेपी नेत्री अपर्णा यादव को डिंपल के सामने चुनाव में उतार सकती है।
गुरूवार को अपर्णा यादव ने बीजेपी यूपी अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी से भी मुलाकात की हैं, साथ ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात कर चुकी हैं। ऐसे में ये माना जा रहा है कि बीजेपी के पास अगर मौजूदा वक्त में मजबूत कैंडिडेट है तो वह अपर्णा यादव ही हैं। एक तरफ मैनपुरी उपचुनाव में सपा के सामने साख बचाने की चुनौती है तो वहीं बीजेपी के लिए सेंध लगाकर सैफई परिवार को झटका देने का बड़ा मौका है। मैनपुरी उपचुनाव को लेकर तारीख का भी ऐलान हो चुका है। आगामी 5 दिसंबर को मैनपुरी लोकसभा पर उपचुनाव होगा।
तीन दशक से सैफई परिवार का कब्जा
मैनपुरी सीट मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि मानी जाती है। मैनपुरी ने मुलायम सिंह यादव को कभी भी निराश नहीं किया। यही वजह रही कि अखिलेश यादव पिता मुलायम की विरासत मैनपुरी के करहल से 2022 विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया था और बीजेपी प्रत्याशी रहे एसपी सिंह बघेल को भारी मतों से हराया था। हालांकि, अब मुलायम सिंह के निधन के बाद से यह सीट सैफई परिवार के लिए प्रतिष्ठा बन चुकी है। यादव परिवार का इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए डिंपल यादव को जिम्मेदारी मिली है। सपा अभी तक मैनपुरी सीट पर यादव, शाक्य व मुस्लिम परंपरागत मतों के आधार पर चुनाव जीतती आई है। इस बार बीजेपी इस सीट पर सेंधमारी करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ने वाली है। ऐसे में इस सीट पर जबरदस्त सियासी जंग देखने को मिल सकती है।
जातीय समीकरण में सपा मजबूत
मैनपुरी सीट पर सपा की दावेदारी हमेशा इसलिए भी मजबूत है क्योंकि इस सीट पर सपा के हिसाब से जातीय समीकरण फिट बैठता है। जिसके सामने अन्य विपक्षी दलों का समीकरण धरा रह जाता है। इस सीट पर यादवों और मुस्लिमों का एकतरफा वोट सपा को मिलता है। इसके अलावा भी अन्य जातियों का वोट भी सपा की झोली में जाता रहा है, आसानी से जीत मिलती रही है।
Created On :   11 Nov 2022 5:13 PM IST