सीजेआई ने माना चुनाव के दौरान तर्कहीन मुफ्त की सौगात एक गंभीर मुद्दा, 17 अगस्त तक मांगे सुझाव

CJI accepted irrational freebies during elections a serious issue, sought suggestions by August 17
सीजेआई ने माना चुनाव के दौरान तर्कहीन मुफ्त की सौगात एक गंभीर मुद्दा, 17 अगस्त तक मांगे सुझाव
नई दिल्ली सीजेआई ने माना चुनाव के दौरान तर्कहीन मुफ्त की सौगात एक गंभीर मुद्दा, 17 अगस्त तक मांगे सुझाव
हाईलाइट
  • रेवड़ी कल्चर पर राजनीति

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रेवड़ी कल्चर को लेकर आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने ट्विट कर प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। जयंत चौधरी ने एक के बाद एक कर कई ट्विट कर पीएम मोदी से सवाल दागे और उनके रेवड़ी कल्चर पर सवालिया निशान लगाया। सुको ने चुनाव में मुफ्त के वादे के लिए राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया। पीठ ने इसे अलोकतांत्रिक बताया। सुको ने साफ कहा कि हम विधायी क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करेंगे। हालांकि सुको ने ये भी स्पष्ट किया कि मुफ्त की सौगात और सामाजिक कल्याणकारी योजना अलग अलग चीजें हैं। अर्थव्यवस्था और कल्याणकारी योजनाओं  के बीच बैलेंस रखना जरूरी है। 

चौधरी ने सुको द्वारा की गई टिप्पणी को साहसिक बताया, हालांकि उन्होंने इसे सही भावना से प्रेरित होना नहीं बताया! पिरामिड के निचले हिस्से को सीधे हस्तक्षेप की आवश्यकता है चाहे वह राशन में हो या वित्तीय सहायता के माध्यम से। यह जीवन के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है

जब पार्टियां घोषणापत्र घोषित किए बिना चुनाव प्रचार शुरू करती हैं, तभी ये समस्याएं पैदा होती हैं। विशेषज्ञ और सार्वजनिक प्रतिक्रिया पर आधारित एक घोषणापत्र, समय पर घोषित किया गया ताकि मतदाता प्रमुख मुद्दों को समझ सकें और वादे लोकतांत्रिक मतदान प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के लिए अभिन्न हैं 

दरअसल जयंत चौधरी ने ये सवाल तब दागे है, जब रेवड़ी कल्चर पर शीर्ष कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुको में फ्री योजनओं को लेकर एक याचिका लगाई गई है, जिसमें इन फ्रीबीज  योजनाओं पर चुनाव के दौरान रोक लगाने की मांग की गई है। 

इसी बीच चौधरी ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने अपने ट्विट में पीएम मोदी से पूछा है कि प्रधानमंत्री जी को बताना चाहिए क्या अग्निपथ भी रेवड़ी नहीं है?


कोर्ट में लगी याचिका में मांग की गई है कि देश की राजनीति में चुनाव के दौरान ज्यादातर दल मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त का वादा करते है, जिन पर बैन लगना चाहिए । इस याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को कोर्ट ने कहा कि इलेक्शन के समय राजनैतिक पार्टियों द्वारा उपहार का वादा और उसे बांटना एक गंभीर विषय का मुद्दा है।जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान होने की बात की जा रही है। आरएलडी नेता ने अदालत की इस टिप्पणी को साहसिक तो बताया पर उस पर सही भावना से होना नहीं बताया है। 

इसे लेकर पीएम मोदी ने भी विपक्ष पर तंज कसा था। लेकिन तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने पीएम मोदी पर भी निशाना साधा।

इससे पहले दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा । केजरीवाल ने कहा देश का पैसा देश की जनता के लिए है, नेताओं के दोस्तों के लोन माफ़ करने के लिए नहीं।

न्यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक  केंद्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए घोषित मुफ्त सुविधाओं को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करे, जब तक कि विधायिका इसके लिए एक तंत्र तैयार नहीं कर लेती। मुफ्त सुविधाओं से जुड़े मुद्दों को शीर्ष अदालत ने भी संज्ञान में लिया, जिसमें कहा गया था कि अर्थव्यवस्था और लोगों का कल्याण, दोनों को संतुलित करना होगा।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि तर्कहीन मुफ्त उपहार निश्चित रूप से चिंता का विषय है और वित्तीय अनुशासन होना चाहिए। हालांकि उन्होंने बताया कि भारत जैसे देश में, जहां गरीबी एक मुद्दा है, गरीबी को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा: हम एक समिति का प्रस्ताव कर रहे हैं, जिसमें सचिव, केंद्र सरकार, प्रत्येक राज्य सरकार के सचिव, प्रत्येक राजनीतिक दल के प्रतिनिधि, नीति आयोग के प्रतिनिधि, आरबीआई, वित्त आयोग, राष्ट्रीय करदाता संघ और अन्य शामिल हैं। उन्होंने कहा कि जब तक विधायिका कदम नहीं उठाती, तब तक अदालत कुछ तय कर सकती है।

एक वकील ने तर्क दिया कि अधिकांश मुफ्त उपहार घोषणापत्र का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन रैलियों और भाषणों के दौरान घोषित किए जाते हैं। पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है और कहा कि जो लोग मुफ्त उपहार का विरोध कर रहे हैं, उन्हें यह कहने का अधिकार है, क्योंकि वे कर का भुगतान कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि राशि को बुनियादी ढांचे आदि के निर्माण पर खर्च किया जाना चाहिए, न कि पैसे बांटने में। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि विशेषज्ञ पैनल इस पर गौर कर सकता है, और यह कानून बनाने में शामिल नहीं हो सकता।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सवाल यह है कि अदालत किस हद तक हस्तक्षेप कर सकती है या इस मामले में जा सकती है? उन्होंने दोहराया कि यह एक गंभीर मुद्दा है और लोगों के कल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं की ओर इशारा किया। मेहता ने कहा कि मुफ्त उपहार कल्याणकारी नहीं हो सकते और लोगों को कल्याण प्रदान करने के अन्य वैज्ञानिक तरीके भी हैं। उन्होंने कहा कि अब चुनाव केवल मुफ्तखोरी के आधार पर लड़े जाते हैं। मेहता ने कहा, अगर मुफ्त उपहारों को लोगों के कल्याण के लिए माना जाता है, तो यह एक आपदा की ओर ले जाएगा। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि 31 मार्च, 2021 तक राज्यों की कुल बकाया देनदारी 59,89,360 करोड़ रुपये है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने वित्तीय अनुशासन पर जोर दिया और कहा, यह पैसा कहां से आएगा? हम करदाता हैं।

राजनीतिक दलों द्वारा सोने की चैन और टीवी के वितरण का हवाला देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा कि इस अदालत का एक फैसला है जिसमें कहा गया है कि मुफ्त देना संविधान के तहत राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का पालन है, जिस पर गौर करने की जरूरत है। पीठ ने कहा कि वित्तीय अनुशासन होना चाहिए और अर्थव्यवस्था को पैसा गंवाना और लोगों का कल्याण, दोनों को संतुलित करना होगा। न्यायाधीश ने कहा कि वह कानून के लिए बने क्षेत्रों पर अतिक्रमण नहीं करना चाहते हैं। आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मुफ्त और कल्याण के बीच भ्रम है, मुफ्त शब्द का इस्तेमाल बहुत गलत तरीके से किया जाता है। दलीलें सुनने के बाद, शीर्ष अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 17 अगस्त को निर्धारित किया।

 

Created On :   12 Aug 2022 9:56 AM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story