संग्राम का जरिया बनी टोपियां

Caps became the means of struggle in the UP assembly elections
संग्राम का जरिया बनी टोपियां
यूपी विधानसभा चुनाव संग्राम का जरिया बनी टोपियां
हाईलाइट
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गोरखपुर रैली में टोपी पर दिए गये बयान ने विवाद पैदा कर दिया है

डिजिटल डेस्क,लखनऊ। उत्तर प्रदेश 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर लाल टोपी सुर्खियों में आ गयी है। सियासत में जहां इसे लेकर विपक्षी दलो पर हमले हो रहे हैं। वहीं विपक्षी इसे अपनी उम्मींद का किरण मान रहे हैं। बहरहाल कुछ भी हो लेकिन यूपी चुनाव में लाल टोपी संग्राम का जरिया बन गयी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गोरखपुर रैली में टोपी पर दिए गये बयान ने विवाद पैदा कर दिया है। हलांकि राजनीति में प्रतीकों का अपना एक अलग महत्व होता है। झण्डा, बैनर, पोस्टर, मुखौटा वेशभूषा के साहरे राजनीतिक दल वार-पलटवार करते रहते हैं।

लाल टोपी को लेकर संग्राम की शुरूआत यूपी विधानसभा से हुई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राज्यपाल के अभिभाषण पर बोल रहे थे तभी लाल टोपी पहने समाजवादी पार्टी के कुछ विधायकों ने टोका टाकी शुरू की। इस पर योगी ने चुटकी लेते हुए कहा कोई लाल टोपी कोई हरी टोपी। पता नहीं ये क्या परिपाटी बन गई है?

पता नहीं ये लोग घर पर भी टोपी पहन कर रहते हैं। फिर उन्होंने एक कहानी सुनाई। कहा कि एक कार्यक्रम में था, टोपी पहनकर आने वाले को ढाई साल के बच्चे ने कहा मम्मी-मम्मी ये देखो गुंडा। इस पर विधायकों ने खूब हल्ला भी किया था।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो प्रधानमंत्री ने जानबूझकर यह बात बोली है। जिससे विपक्षी उन पर हमले करने को मजबूर हो जाएं। मोदी हिन्दुत्व विकास और विश्वास को एक साथ साधते हुए पूरी सियासत का रूख अपनी ओर करने की झलक दिखायी हैं।

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि टोपियों के जरिए अपने-अपने वोटरों को साधने का एक अवसर है। सभी लोग अपने-अपने एजेंडे को धार देने में लगे हुए है।

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इस पर पलटवार भी किया है। वह अगले दिन संसद भवन में पार्टी के सभी सांसदों के साथ लाल टोपी में भी पहुंचे थे। लाल टोपी पर छिड़े जंग के बाद अखिलेश यादव ने ट्विटर और फेसबुक पर अपनी प्रोफाइल फोटो बदल ली है।

उन्होंने लाल टोपी वाली अपनी तस्वीर लगा ली है। उनके ऐसा करते ही सपा के बांकी नेता और समर्थकों में भी होड़ मच गई है। सब अपनी पुरानी तस्वीर बदल कर लाल टोपी वाली फोटो लगाने लगे हैं।

अखिलेश यादव जब भी किसी कार्यक्रम या रैली में जाते हैं तो लाल टोपी जरूर पहनते हैं। कई बार तो वे अपने साथ दो तीन ऐसी टोपियां रखते हैं। उनकी देखा देखी अब पार्टी के बाकी नेता और कार्यकर्ता भी ऐसा ही करने लगे हैं।

मुख्यमंत्री बनने से पहले अखिलेश टोपी नहीं पहनते थे, लेकिन पिता मुलायम सिंह यादव के कहने पर उन्होंने इसे नियमित रूप से पहनना शुरू किया। मुलायम अक्सर कार्यक्रमों में लाल टोपी में देखे जाते हैं।

भाजपा और सपा की चल रहे टोपी संग्राम में आम आदमी पार्टी भी कूद गयी। राज्यसभा सांसद और यूपी प्रभारी संजय सिंह ने काली टोपी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा है। संजय सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी की एक पुरानी तस्वीर ट्वीट कर लिखा है, मोदी जी काली टोपी वालों का दिल और दिमाग दोनो काला होता है।

कई दशकों से यूपी की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेषक रतनमणि लाल ने बताया, आज कल के दौर में बहुत कम राजनीतिक दल के लोगों को किसी उनके प्रतीक से पहचाना जा सके। भाजपा को भगवा कहते हैं लेकिन हर नेता भगवा कपड़े का इस्तेमाल तो करते नहीं है। बसपा के लिए नीला रंग कहते हैं।

लेकिन मायावती ने कभी नीला कपड़ा नहीं दिखा है। सपा पर हरे रंग का आरोप ज्यादा लगा। जबकि कांग्रेस सफेद रंग में चलती है। ऐसे में टोपी को सपा ने पहचान बनाने की कोशिश की है। सपा मुखिया ने इसे अब पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का पहचान पत्र बना दिया है। इससे बिना नाम लिए ही इस पर तंज हो सकता है।

भाजपा ने इसे जनमानस में संदेश देने का प्रयास किया है कि लाल टोपी यानि सपा के लोगों से बच के रहना है। हो सकता है आगे चलकर सपा का नाम न लिया जाए। सपा का अपरोक्ष रूप से फायदा होगा। सपा के अब ज्यादा लोग लाल टोपी पहनेंगे। बैठे-बैठाएं उनको पहचान मिल गयी है। भाजपा ने इंगित किया था। लेकिन सपा के लिए मुफ्त प्रचार का माध्यम बन गयी है।

 

(आईएएनएस)

Created On :   12 Dec 2021 10:00 AM IST

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