मप्र में भाजपा और कांग्रेस की नजर असंतुष्टों पर
डिजिटल डेस्क,भोपाल। मध्यप्रदेश में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और राज्य के दोनों प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की दूसरे दलों के ऐसे नेताओं पर नजर है जो असंतुष्ट चल रहे हैं। दल बदल के मामले में कोई पीछे नहीं रहना चाहता और इसकी राज्य में शुरूआत भी हो चुकी है। राज्य में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला लगभग बराबरी का रहा था मगर पांच सीटें ज्यादा होने पर कांग्रेस के हाथ में सत्ता आई थी। राज्य की 230 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा को 109 और कांग्रेस केा 114 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस की सरकार महज 15 माह चल पाएगी और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में विधायकों की बगावत ने सरकार गिरा दी।
अब दोनों ही राजनीतिक दल सत्ता पर कब्जा जमाने की जीतोड़ कोशिश करने में लगे हैं। इसमें सबसे ज्यादा नजर दोनों ही दलों की एक दूसरे के असंतुष्ट नेताओं पर बनी हुई है। यह असंतुष्ट ऐसे नेता हैं जो बगावत के मूड में हैं, लिहाजा दोनों राजनीतिक दल इन असंतुष्टों को अपने पाले में शामिल करके जनाधार को मजबूत करना चाहते हैं। राज्य में बीता सप्ताह दल-बदल की शुरूआत करने वाला रहा, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ अशोकनगर से भाजपा के वरिष्ठ नेता यादवेंद्र सिंह यादव अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। यादवेंद्र सिंह के पिता तीन बार भाजपा के विधायक रहे हैं। साथ ही यादव समाज में उनकी अच्छी खाासी पकड़ भी है।
कांग्रेस ने भाजपा को ग्वालियर-चंबल इलाके में बड़ा झटका दिया तो भाजपा ने भी राजगढ़ से कांग्रेस की लोकसभा में उम्मीदवार रही मोना सुस्तानी को अब अपनी पार्टी में शामिल कर करारा जवाब दिया। इसके साथ ही बसपा की पूर्व विधायक उषा चौधरी भी भाजपा में शामिल हुई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार के विधानसभा चुनाव सियासी तौर पर काफी अहम रहने वाला है। दोनों राजनीतिक दल हर हाल में सत्ता चाहते हैं। लिहाजा दलबदल कराने में गुरेज नहीं करेंगे, हां वर्तमान में स्थितियां ऐसी हैं कि दोनों ही राजनीतिक दलों में असंतुष्टों की संख्या भरपूर है। ऐसे में कई लोग आम आदमी पार्टी का भी दामन थाम सकते हैं।
(आईएएनएस)
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Created On :   27 March 2023 2:00 PM IST