बीजेपी कांग्रेस के लिए मुश्किल बने दो पूर्व मुख्यमंत्री, कद्दावर नेता इस तरह बढ़ा रहे हैं अपनी ही पार्टी की मुसीबतें, मुश्किलें होगा मिशन 2023

Big challenge for Shivraj and Kamal Nath before the assembly elections, two parties need to reform the party
बीजेपी कांग्रेस के लिए मुश्किल बने दो पूर्व मुख्यमंत्री, कद्दावर नेता इस तरह बढ़ा रहे हैं अपनी ही पार्टी की मुसीबतें, मुश्किलें होगा मिशन 2023
विधानसभा चुनाव 2023 बीजेपी कांग्रेस के लिए मुश्किल बने दो पूर्व मुख्यमंत्री, कद्दावर नेता इस तरह बढ़ा रहे हैं अपनी ही पार्टी की मुसीबतें, मुश्किलें होगा मिशन 2023
हाईलाइट
  • दोनों दलों को निकालना होगा गुटबाजी का हल

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी और कांग्रेस ने तैयारियां तेज कर दी हैं। लेकिन, प्रदेश में साल 2018 विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और बीजेपी में खूब उथल-पुथल देखने को मिली। चाहे वह राज्य में बीजेपी की बहुत कम अंतर से हार हो या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया का दलबदल कर कांग्रेस पर प्रहार का मुद्दा हो। साल की शुरूआत होने के साथ ही दोनों पार्टी के मौजूदा नेताओं की स्थिति पर आलाकमान की नजर बनी हुई है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दल अंदरूनी खींचतान से अछूते नहीं हैं। 

जानकारों के मुताबिक, मध्यप्रदेश की सियासत को तूल देने के लिए किसी पार्टी के पास कोई ठोस मुद्दे नहीं है। जिसको चुनावी मुद्दा बनाया जा सके। फिलहाल दोनों दल एक-दूसरे के सियासी दांव-पेच को करीब से देख रहे हैं और अपनी रणनीतियों को तैयार करने में लगे हुए हैं।  

कांग्रेस के लिए चुनौतियां
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी है। अटकलें है कि राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और अरूण यादव के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बीते साल दिसंबर माह में अविश्वास प्रस्ताव में कमलनाथ की गैरमौजूदगी ने भी कई सवाल खड़े किए थे। साथ ही पार्टी में होर्डिंग सियासत भी काफी तेज है। कहा जाता है कि कमलनाथ के अलावा किसी वरिष्ठ नेता की होर्डिंग्स में तस्वीर नहीं है। हालांकि, कुछ होर्डिंग्स में पार्टी के राज्य स्तर के प्रवक्ता नजर आते हैं। 

जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत
वहीं जमीनी हकीकत की बात करें, तो कांग्रेस ने भले ही ग्वालियर में 6 दशक के बाद मेयर पद का चुनाव जीता हो लेकिन पार्टी को वार्ड स्तर पर ऐसी जीत हासिल नहीं हुई है। इधर, बीजेपी लगातार कांग्रेस के आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।  

दोनों दलों को निकालना होगा गुटबाजी का हल

फिलहाल, भले ही दोनों दल आंतरिक गुटबाजी की बात से इनकार कर रहे हैं, लेकिन इस पर राजनीतिक जानकारों की राय कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं। उनका मानना है कि इस वक्त दलों की आंतरिक गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती है। इसके अलावा दिग्विजय सिंह के भाई और कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह ने आंतरिक सर्वे से मिली रिपोर्ट्स के हवाले से पार्टी के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे। जिसमें कहा गया था कि पार्टी के 40 फीसदी विधायक खराब प्रदर्शन खराब कर रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कांग्रेस नेताओं के बीच दो धड़ो में होना पार्टी के लिहाज अच्छे संकेत नहीं थे। 

वहीं भाजपा में भी स्थिति ठीक नहीं है, शिवराज सरकार के पूर्व मंत्री दीपक जोशी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र ने चर्चाएं तेज कर दी थीं। उन्होंने अपने गृह जिले देवास में प्रधानमंत्री अवास योजना हो रहे भ्रष्टाचार का आरोप लगाए थे। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की गतिविधियों पर भी राजनीतिक विशेषज्ञ नजर बनाए हुए हैं। 

बीजेपी के लिए टिकट संकट

केंद्रीय मंत्री सिंधिया के साथ आए नेताओं को बीजेपी यदि टिकट देने के लिए खुद के नेताओं का टिकट काटना शुरू कर देती है, तो पार्टी में बगावत की स्थिति पैदा हो सकती है। यदि नेताओं ने चुनाव से पहले बगावत करना शुरू कर दिया तो चुनाव से बीजेपी को अंदरूनी कलह से दो-चार होना पड़ जाएगा। साथ ही इसका चुनाव पर पड़ सकता है। 

40 प्रतिशत विधायकों का खराब प्रर्दशन 

साल 2022 के अंतिम माह में आंतरिक सर्वे जारी होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी मुश्किलें बढ़ी हैं। इसके बाद राज्य में बैठकों का दौर शुरू हुआ था। गौरतलब है कि आंतरिक सर्वे में पार्टी के करीब 40 फीसदी विधायकों का प्रदर्शन खराब रहा है। बैठकों को विधायको के लिए चेतावनी के तौर पर देखा गया था।  


 

Created On :   31 Jan 2023 9:59 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story