इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ आवाज उठाने वाले आरिफ मोहम्मद खान होंगे अगले राष्ट्रपति?
- उन्होंने मुस्लिम समुदाय में सामाजिक सुधारों की वकालत भी की है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के अगले राष्ट्रपति को लेकर राजनीतिक गलियारों में फुसफुसाहट शुरू हो गई है। हालांकि राष्ट्रपति चुनाव जुलाई के मध्य में होंगे, लेकिन अटकलों का दौर अभी से शुरू हो गया है।राष्ट्रपति चुनाव से पहले इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ आवाज उठाने वाले केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का नाम चर्चा में बना हुआ है।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए संभावित एनडीए उम्मीदवार के रूप में खान का नाम चर्चा में है। कुछ भाजपा नेताओं का कहना है कि जिस तरह से उनकी पार्टी की परिकल्पना की गई है, उस लिहाज से खान इस पद के लिए बिल्कुल फिट बैठते हैं, जो इस्लाम का पालन तो करते ही हैं, लेकिन साथ ही भारतीय लोकाचार का पालन भी करते हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से कला में स्नातक, लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री के बाद, बुलंदशहर में जन्मे 71 वर्षीय खान हमेशा रूढ़िवादी इस्लामी प्रथाओं के बारे में अपने मजबूत विचारों के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने मुस्लिम समुदाय में सामाजिक सुधारों की वकालत भी की है।
वास्तव में, एएमयू में एक छात्र नेता होने के बाद भी और पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत करने के बाद, खान का प्रसिद्धि क्षण तब आया, जब उन्होंने 1986 में शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संवैधानिक संशोधन के कदम का कड़ा विरोध किया था।
खान ने राजीव गांधी का विरोध तब भी किया था जब उन्हें उनकी बुद्धिमत्ता और उज्जवल कौशल के कारण राजीव गांधी का करीबी सहयोगी माना जाता था। इस महत्वपूर्ण मामले में सत्तारूढ़ कांग्रेस की आधिकारिक लाइन की अवहेलना, जिसने देश के लिए हिंदू मुस्लिम समीकरण को बदल दिया, ने उनके कांग्रेस से बाहर निकलने का मार्ग प्रशस्त किया।
इसके बाद उन्होंने वी. पी. सिंह के जनता दल का दामन थाम लिया। हालांकि वह कुछ समय बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल हो गए।अपने लंबे राजनीतिक जीवन में, खान ने एक बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य और चार बार संसद सदस्य के रूप में कार्य किया। उन्होंने राजीव गांधी और वी. पी. सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली।
2004 में, वह भाजपा में शामिल हो गए मगर उस वर्ष वह लोकसभा चुनाव में असफल रहे। उन्होंने 2007 में भगवा खेमा छोड़ दिया था, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वह फिर से भाजपा में शामिल हो गए।खान ने कई मौकों पर तीन तलाक की प्रथा का भी कड़ा विरोध किया है और इसलिए उन्होंने इसे प्रतिबंधित करने के मोदी सरकार के फैसले का समर्थन भी किया।भगवा खेमे के कई लोगों का मानना है कि इस्लामिक कट्टरवाद के उनके विरोध ने उन्हें सितंबर 2019 में एनडीए शासन में राज्यपाल का पद दिलाया।
भाजपा में कई लोग मानते हैं कि खान की प्रगतिशील मुस्लिम छवि प्रधानमंत्री मोदी के सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास के ²ष्टिकोण में अच्छी तरह से फिट बैठती है और इसलिए उनके पास पीएम मोदी के लिए वह बनने का एक अच्छा मौका है, जो ए. पी. जे. अब्दुल कलाम 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के लिए थे। हालांकि, उन्हें एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारने का निर्णय पार्टी के संसदीय बोर्ड द्वारा अगले महीने अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ परामर्श के बाद ही लिया जाएगा।
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Created On :   7 May 2022 4:00 PM IST